जल-संरक्षण की वैदिक प्रार्थना

पानी के वेदों में यह प्रार्थना की गई है। कि आपो भवन्तु पीतये अर्थात् पीने के लिए आप नामक व्याप्तिशील जल बना रहे, यह प्रार्थना है। आप्यांश या आप के अंश से जीव शरीर स्पंदनमय है, जो भी द्रव प्रवाही, मन्द, स्निग्ध, मृदु, पिच्छिल भाग हैं यथा- रस, रक्त, वसा, कफ, मूत्र, पसीना आदि तथा रस एवं जिह्वा- ये सब शरीर में आप्य अंश हैं : यद् द्रवसरमन्दस्निग्धमृदुपिच्छिलं रसरुधिरवसाकफपित्तमूत्रस्वेदादि तदाप्यं रसो रसनं च। (चरकसंहिता, शरीरस्थान, शरीर संख्या शारीराध्याय, 7.16)



चरक का मत है कि रस, रसनेन्द्रिय, शीतलता, लचीनापन, चिकनाई और नमी शरीर में जलीय भाव है। सुश्रुत का मत है कि रस, रसनेन्द्रिय, सर्वद्रव्य समूह, भारीपन, शीतलता, चिकनाई और शुक्र जलीय भाव है। काश्यपसंहिता का मत उक्त मतों का ही अनुसरण करते हुए प्रतिपादित करता है कि कफ, मेद, रक्त, मांस भी जलीय भाव है।


जल जीवन है। जल में जीवन है और जल से जीवन है। जलविहीन पृथिवी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।


वाग्भटाचार्य का मत है कि पानीय या पीने योग्य जल प्राणिमात्र का प्राण है और समस्त विश्व जलमय है, इसलिए जल का अत्यन्त निषेध होने पर भी किसी भी दशा में जल-पान का पूर्ण रूप से निवारण नहीं किया जा सकता है, क्योंकि सर्वथा जल नहीं मिलने पर मुँह सूखने लगता है, शिथिलता बढ़ने लगती है। अथवा मृत्यु तक हो जाती है। पानी स्वस्थ के लिए ज़रूरी है और बीमार के लिए भी :


पानीयं प्राणिनां प्राणा विश्वमेव च तन्मयम्।।


अतोऽत्यन्तनिषेधेऽपि न क्वचिद् वारि वार्यते॥


तस्य शोषांगसादाद्या मृत्युर्वा स्यालाभतः।


च॥ न हि तोयाद् विना वृत्तिः स्वस्थस्य व्याधितस्य


-अष्टांगसंग्रह, सूत्रस्थान,


द्रवद्रव्यविज्ञानीय अध्याय 6, 30-31 आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ भावप्रकाश निघण्टु में पानी के कई पर्याय आए हैं :


पानीयं सलिलं नीरं कीलालं जलमम्बु च।


आपो वार्वारि कं तोयं पयः पाथस्तथोदकम्॥


जीवनं वनमम्भोऽर्णोऽमृतं घनरसौऽपि च॥


 


-भावप्रकाश निघण्टु, मिश्रप्रकरण, 13.1 अर्थात् पानीय, सलिल, नीर, कीलाल, जल, अंबु, आपः, वार् वारि, क, तोय, पयः (पयस्), पाथः (पाथस्), उदक, जीवन, वन, अम्भः (अंभस), अर्णः (अर्णस्), अमृत और घनरस- ये सब पानी के पर्याय हैं। यह भी कहा गया है कि पानी श्रम को दूर करनेवाला, थकाननाशक, मूच्र्छा तथा प्यास को दूर करनेवाला एवं तंद्रा, वमन और विबंध को हटानेवाला, बलकारक, निद्रा को दूर करनेवाला, तृप्तिदायक, हृदय के लिए हितकारक, अव्यक्त रसवाला, अजीर्ण का शमन करनेवाला, सदा हितकारक, शीतल, लघु, स्वच्छ, संपूर्णादि मधुरादि रसों का कारण एवं अमृत के समान जीवनदाता है।


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