ककोलत जलप्रपात प्रकृति का अनुपम उपहार

बिहार प्रारम्भ से ही अपने असीम नैसर्गिक सौन्दर्य, रमणीयता और प्राकृतिक नयनाभिरामवाले स्थलों के लिए विश्व-प्रसिद्ध रहा है। यहाँ ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक सहित विविध धरोहरों का अद्भुत भण्डार है। इस श्रृंखला में यहाँ का विश्व- प्रसिद्ध ‘ककोलत' जलप्रपात पर्यटन एवं आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ की शीतल जलधारा में किया गया स्नान लोगों को अद्भुत सुख प्रदान करता है। भौगोलिक रूप से पहाड़ी नदी ‘लोहबर' हजारीबाग की पर्वत-श्रेणी से निकलती हुई लोहदंड पहाड़ी से लगभग 150 फीट की ऊँचाई से नीचे पहुँचकर जलाशय में परिवर्तित हो जाती है। ऊपर से नीचे की ओर आता हुआ जल वर्षा की फुहारों का अनुभव कराता है। गिरता हुआ जल विस्तृत सफेद रूई का दृश्यावलोकन कराता है। यह दृश्य मनमोहक एवं नयन सुख प्रदान करनेवाला है।



ककोलत जलप्रपात (वाटरफॉल) ‘पातालगंगा' के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसे ‘बिहार का कश्मीर' भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में महर्षि मार्कण्डेय यहाँ पर निवास करते थे। महर्षि मार्कण्डेय का नाम ‘दुर्गा सप्तशती' के सृजनकर्ता-रचयिता के रूप में विख्यात है। एक अन्य मान्यता के अनुसार पाण्डवों ने अपने अज्ञातवाश का कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था। इस सम्बन्ध में कहा जाता है कि पाण्डवों ने त्रेतायुग के एक ऋषि के शाप से सर्प बने राजा निगासे को सर्पयोनि से मुक्त कराया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्नान करनेवालों को सर्पयोनि से गुजरना नहीं पड़ता है। इस क्षेत्र को चार धाम चौरासी क्षेत्र में से एक माना जाता है। एक धारणा के अनुसार पर्वत के ऊपर निर्मित 365 कुंडों का निर्माण श्रीकृष्ण ने किया था। द्रौपदी के चीरहरण के पश्चात् श्रीकृष्ण सत्यभामा के संग यहाँ पहुँचे थे। यह कुंड- संख्या 6 के रूप में प्रसिद्ध है। जलप्रपात से बना जलाशय गहरा होने से खतरनाक बन गया था। 19वीं शताब्दी में एक अंग्रेज़ अफसर ने स्नान करनेवालों को जलाशय में एक-एक पत्थर डालने का आदेश दिया था। इससे खतरनाक जलाशय की गहराई कम होती चली गई। अभी पयर्टक निडर और उन्मुक्त होकर देर-देर तक स्नान करने का आनन्द प्राप्त करते हैं। ककोलत पटना-राँची मुख्य मार्ग के बीच नवादागोविन्दपुर पथ होकर पहुँचा जाता है। यह इस रास्ते में थाली से 3 किलोमीटर दक्षिण एकतारा जंगल के प्राकृतिक वातावरण में अवस्थित है। यहाँ पर सड़क-मार्ग के समीप ही ककोलत प्रवेश-द्वार निर्मित है। पर्यटकों के लिए मार्च से जुलाई तक का समय अनुकूल रहता है। मई-जून का समय अच्छा माना जाता है। बिहार सरकार ने इस क्षेत्र के समग्र विकास के अन्तर्गत सीढ़ियों और रेलिंग का निर्माण करवाया है। वस्त्र बदलने के लिए स्नानागार की भी व्यवस्था है। प्रति वर्ष अप्रैल माह में ककोलतमहोत्सव का आयोजनकर पर्यटकों को आकर्षित किया जाता है। प्रतिवर्ष 14 अप्रैल से पाँच-दिवसीय मेला मेष संक्रान्ति के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इसे सतुआनी मेला (सत्तू खाने का पर्व) भी कहा जाता है। पर्यटकों को इस विश्वप्रसिद्ध जलप्रपात तक पहुँचने के लिए पर्यटन-कार्यालय से सम्पर्क करना चाहिए, ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो।