पारम्परिक भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति को बढ़ावा दे रहे गुरुकुल

एक समय था जब भारतवर्ष के गाँव-गाँव में गुरुकुल और वैदिक पाठशालाएँ होती थीं जिनमें समस्त शास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। विदेशी शासनकाल में इन गुरुकुलों को काफी क्षति पहुँचाई गयी। आधुनिक काल में तो देश में विदेशी शिक्षा-प्रणाली के आधार पर बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है। इसके बाद भी देश के अनेक हिस्सों में आज भी गुरुकुल-परम्परा परम्परागत रूप में विद्यमान है। वह परम्परा, जहाँ शिक्षा और संस्कार-साधना के लिए कोई आर्थिक कीमत नहीं चुकानी पड़ती। यूरोपीय शिक्षा-पद्धति की नकल करते हुए वैदिक शिक्षा प्रणाली के अनमोल सर्वांग सुन्दर वृक्ष को जिस प्रकार षड्यन्त्रपूर्वक ध्वस्त किया गया, उसी के दुष्परिणाम हम निठारी-काण्ड, किडनी-काण्ड, पाटण में छात्राओं के शोषण, दिल्ली के महाविद्यालयों में अध्यापिकाओं से छेड़छाड़, स्कूलों-अस्पतालों तक में बच्चियों से बलात्कार, किशोरवय उम्र में हिंसक मनोवृत्ति प्रकट करनेवालीभीषण वारदातों के रूप में घटित होते देखते हैं। वर्तमान विकृत शिक्षा-प्रणालीका विकल्प भारत की श्रेष्ठगुरुकुल-परंपरा है, इसके पुनरुज्जीवन में देश का पुनरुज्जीवन है।


ये गुरुकुल और वैदिक पाठशालाएँ भले ही आज के आधुनिक समाज में सर्वमान्य न हों, किन्तु भारत की पौराणिक संस्कृति, परम्परा और विश्व की समस्त भाषाओं की जननी संस्कृत की सेवा करनेवाले इन गुरुकुलों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यहाँ हम देश के कुछ चुनिन्दा गुरुकुलों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।