यूट्यूब और गुरुमुखी ज्ञान

किसी ने ठीक ही कहा है- ‘पानी पीजिए जानकर और गुरु रखिए छानकर।' इस मुहावरे का अर्थ यह है कि पानी को बिना ठीक से छाने नहीं पीना चाहिए और छानने के बाद यह आवश्यक नहीं कि इसमें जो अशुद्धियाँ हैं, वह निकल गई हैं। इसलिए इसे पीने के पहले ठीक से जान लेना आवश्यक है। उसी तरह गुरु को कभी जाना नहीं जा सकता। एक शिष्य अपने प्रारंभिक अवस्था में, कितनी भी कोशिश कर ले, अपने गुरु को गुरु की महिमा नहीं जान सकता। लेकिन बहुत सारे गुरुओं में से अपने मन-मिजाज़ और रुचि के गुरु को छान अवश्य सकता है। पुरानी कहानियों में आपने पढ़ा होगा कि बहुत सारे शिष्य, सौम्य गुरुओं को चुनते थे|| जबकि बहुत सारे शिष्य विश्वामित्र-जैसे क्रोधी गुरु को चुनते थे। यह अपने-अपने स्वभाव और पसंद की बात है और इस तरह के मानकों के आधार पर किया गया चयन, गुरु के ज्ञान से परे होता है। भगवान् श्रीराम के गुरु महर्षि वसिष्ठ थे जो बहुत ही मृदु स्वभाव के थे और बहुत सारे महारथियों के दुर्वासा, परशुराम आदि गुरु क्रोधी स्वभाव के थे।


आजकल बात उल्टी हो गई है। आज लोग गुरु रखते हैं जानकर, और पानी पीते हैं छानकर और उसका परिणाम यह होता है। कि चारों ओर से शारीरिक और मानसिक रुग्णता आती है। सबसे पहले तो यह समझना आवश्यक है कि ज्ञान की कसौटी क्या है। कोई शिष्य, कैसे इस बात को समझे कि उसे समुचित ज्ञान प्राप्त हो चुका है। इसका सीधा-सा उत्तर है कि इस शंका का समाधान केवल गुरु ही कर सकते हैं। सहस्राब्दियों से गुरु-शिष्य परम्परा का प्रचलन रहा है जिसमें शिष्य, गुरु के सम्मुख बैठकर शिक्षा ग्रहण करते आए हैं। गुरु के सम्मुख बैठकर शिक्षा ग्रहण करने से होनेवाले लाभों की गिनती नहीं की जा सकती है; क्योंकि यह नाप-तौल, क्रमांक और संख्या से परे है। यह एक तरह का व्यापक अनुभव है जो गुरु के सान्निध्य में | वर्षों तक रमे रहने से आता है।



विगत कुछ वर्षों से इंटरनेट के प्रचलन में आने के बाद यूट्यूब डॉट कॉम' एक नया गुरु बनकर उभरा है। यूट्यूब एक ऐसा मंच है जिस पर हर विषय से संबंधित ज्ञानवर्धक वीडियो-सामग्री बहुतायत में मिलती है। दुनिया के हर हिस्से में लोग इससे लाभान्वित होते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है, जिसमें समय की बचत होती है और अपनी इच्छानुसार अध्ययन करना सरल होता है। इसके साथ-साथ सीखनेवाला व्यक्ति अपनी दिनचर्या के हिसाब से इसके लिए समय निकाल सकता है। ऐसा नहीं है कि यूट्यूब पर मिलनेवाले ज्ञानवर्धक वीडियो से लोग सीख नहीं सकते। ऐसा नहीं है कि यूट्यूब शिक्षण-परंपरा में केवल दोष-ही-दोष हैं। इसमें बहुत-सी खूबियाँ भी हैं, परंतु सबसे प्रमुख बात यह है कि आप इन खूबियों का लाभ तभी उठा सकेंगे जब आप जानेंगे कि सही और गलत अध्ययन-सामग्री में अंतर क्या है। यूट्यूब पर तो अध्ययन-सामग्रियों की भरमार है। ठीक उसी तरह जैसे द्रोणगिरि पर्वत पर जड़ी-बूटियों की भरमार थी, परंतु समुचित औषधीय ज्ञान के अभाव मेंपरमवीर, परमज्ञानी, पवनपुत्र हनुमान भी उन बूटियों में से संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए और अंत में उन्हें पूरा पर्वत उठाकर लाना पड़ा ताकि वैद्य सुषेण संजीवनी बूटी की पहचान कर उपयोग में ला सकें। परन्तु, वे तो हनुमान जी थे, इसलिए पूरा पर्वत उठाकर ले आए, लेकिन क्या एक सामान्य मनुष्य यूट्यूब के प्लेटफॉर्म से ऐसे ही ज्ञानरूपी पर्वतों को उठाकर ला सकता है। कदापि नहीं! आइए, सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि यूट्यूब ज्ञान- परंपरा किस तरह के लोगों के लिए लाभदायक हो सकती है और किस तरह के लोगों के लिए हानिकारक। एक कहानी से शुरू करते हैं।


एक पिता अपने पुत्र को लेकर एक संगीत के जाने-माने गुरु के पास पहुँचा। पिता ने गुरु को बताया कि उसके पुत्र को संगीत में अत्यधिक रुचि है और वह दिन में कई- कई घंटे इसका अभ्यास भी करता है। पिता ने यह भी बताया कि किस तरह उसका पुत्र संगीत की बड़ी-बड़ी गोष्ठियों में जाने के बहाने ढूँढ़ता है ताकि अच्छे-से-अच्छे, बड़े-से-बड़े संगीतकारों का संगीत उसे सुनने को मिले। गुरु यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उस लड़के से कुछ गाने को कहा। वह लड़का एक गीत गाने लगा। उसका पिता उसके गाने को सुन मंत्रमुग्ध अवस्था में चला गया जबकि गुरु मंद-मंद मुस्कुराने लगे। पिता का ध्यान इस बात पर गया कि गुरु बहुत प्रभावित नहीं है और उसके पुत्र पर वैसे ही मुस्कुरा रहे हैं जैसे कोई बहुत बड़ा संगीतकार किसी बच्चे के प्रयास पर मुस्कुराता है। जब बच्चे ने गाना समाप्त किया तो पिता ने कौतूहलवश गुरु से पूछा कि क्या उन्हें उसके पुत्र का गाना अच्छा नहीं लगा। तब गुरु ने कहा कि उसके पुत्र में काफी संभावनाएँ हैं और वह निश्चित ही कुछ वर्षों के सतत प्रयास और अनुभव के बाद अच्छा गायक बनेगा; परंतु वह अभी गुरुमुखी विद्या से अनजान है और उसने जो भी सीखा है, सुन-सुनकर ही सीखा है। अतः यदि आप सहमत हैं तो मैं इसे सिखाने के लिए तैयार हूँ, किंतु इसे मेरे सान्निध्य में कम-से-कम चौदह बरस तक रहना होगा। पिता ने कहा कि यह तो बहुत अधिक है। पिता ने कहा कि यह तो बहुत अधिक है। तब गुरु ने कहा कि यही मेरी शर्त है और यदि आप मेरी इस शर्त को नहीं मानते तो मैं आपके पुत्र को नहीं सिखा पाऊँगा। पिता ने कई नामी-गिरामी संगीतकारों से उस गुरु का नाम सुना था, इसलिए वह उस शर्त को मान गया और अगले दिन से गुरु ने उसके पुत्र को सिखाना शुरू कर दिया। दो दिन बाद पिता किसी काम के सिलसिले में परदेस चला गया जब एक साल बाद वह परदेस से लौटा, तब उसने अपने पुत्र से पूछा कि क्या उसके संगीत की शिक्षा में कुछ प्रगति हुई है। तब पुत्र हँसने लगा और बोला कि यह गुरु तो बड़े विचित्र हैं। इन्होंने अभी तक संगीत के बारे में एक पल भी चर्चा नहीं की है। हाँ, वे दिनभर मुझसे धनिया की चटनी अवश्य पिसवाते हैं और कहते हैं कि खाने के साथ चटनी को मैं खाता हूँ और जिस दिन तुम्हारी बनी चटनी को खाने के बाद मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम चटनी पीसने लायक हो, तब तुम्हें मैं संगीत सिखाना शुरू करूंगा।


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