आयुषो वेदः आयुर्वेदः

‘जीव की विद्यमानता ही जीवन है, लेकिन वह अनेक कारणों से रोगावास हो जाता है और रोगों के निदान व निराकरण की विधियाँ जिस ज्ञानुशासन में हों, वह आयुर्वेद है। आयुर्वेद को जीवन का सच्चा सहयोगी कहा गया है। यह जीवनोपयोगी विज्ञान है जिसमें आदर्श जीवनीय शैली का निर्देश है और यह प्राणीमात्र के लिए ऋषियों के स्तरीय अनुभवों की सञ्चित निधि है। यह हर श्वास को गौरवपूर्वक जीने का अधिकार दिलानेवाला है- जीवेम शरदः शतम्। यह उपवेद के रूप में स्वीकार्य है- आयुर्वेदो धनुर्वेदो गन्धर्वश्चेति ते त्रयः। स्थापत्य वेदमपरमुपवेदः चतुर्विधः॥ सच में यह आयु का वेद है- आयुषो वेदः आयुर्वेदः। इसमें आयु के स्वरूप और पूर्णायु-प्राप्ति का हेतु निहित है। महर्षि चरक ने शरीर, इन्द्रिय, प्राणान्तःकरण और आत्मा की सस्थिति को आयु के अर्थ में स्वीकार किया है



शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम्।


नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते॥


-चरकसंहिता, 1.42


इस प्रकार आयु की साधना ही आयुर्वेद का प्रधान और निरूपित विषय है। शरीर को व्याधियों का मन्दिर माना गया है- शरीरं व्याधिमन्दिरम्। इसके स्वास्थ्य के लिए नाना उपाय, रसायन, भेषजकृत्यादि आयुर्वेद में अन्तर्निहित हैं। यह सनातन निर्देश है कि इदं शरीरं खलु धर्मसाधनम्। ऐसे में यह परमावश्यक है। कि व्यक्ति का शरीर नीरोग, निरापद, स्वस्थ रहे। इसकी साधना के लिए लक्षण, परीक्षण, निदान, चिकित्सोपाय आदि किए जाते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शास्त्र का सर्वाङ्ग ज्ञान हो, चिकित्सा-कर्म का प्रत्यक्षतः अभ्यास हो, कुशलता सिद्ध हो और कार्य में पवित्रता का समावेश हो। परम्परा से आयुर्विज्ञान को आठ भागों में विभाजित किया गया है। ये हैं- शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या,कौमारभृत्य, अगदतन्त्र, रसायनतन्त्र एवं वाजीकरण


आयुषः पालकं वेदमुपवेदमथर्वणः।


कायबालग्रहोङ्गशल्यदंष्टजरावृषैः॥


गतमष्टाङ्गतां पुण्यं बुबुधे यं पितामहः।


गृहीत्वा ते तमाम्नायं प्रकाश्य च परस्परम्॥


-अष्टाङ्गसंग्रह, 2.10-11


इसलिए ऋषियों ने इसके विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया। अनेक ऋषियों ने इस विज्ञान के विषय-क्षेत्रों पर अपना गहन ध्यान आकर्षित किया और शरीर में होनेवाले प्रत्येक स्पन्दन से लेकर आधि व्याधि तक का उपचार रोग की प्रकृति के अनुसार निर्धारित करने का निश्चय किया, यह निश्चय सदा-सर्वदा निरापद रहे- इस पर भी सर्वाधिक ध्यान दिया गया। इस अर्थ में आयुर्वेद सार्वकालिक महत्त्व रखे हुए है।


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