झालटापाटन का ‘हर्बल गार्डन'

संसार में जब से मानव-सभ्यता रोग और औषधि- दोनों शब्द प्रचलित " किसी शारीरिक कष्ट से व्यथित का ध्यान आता है। वर्तमान में भले ही आधुनिक चिकित्सा के रूप में औषधि का स्थान इंजेक्शन, टेबलेट, कैप्सूल, आदि ने ले लिया हो, परन्तु उक्त प्रकार की रासायनिक दवाओं के दुष्प्रभाव जैसे-जैसे दिखाई देने लगे है, वैसेवैसे व्याधि नियंत्रण में प्राकृतिक औषधीय पौधों के उपयोग की महत्ता बढ़ती जा रही है। औषधीय पौधों के उपयोग की जानकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होती रही है। किन्तु पिछले कुछ समय से धीरे-धीरे वनों एवं पर्यावरण के हो रहे ह्रास के कारण अनेक औषधीय वनस्पतियाँ लुप्त होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में औषधीय पौधों के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रबन्धन पर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।



वन विभाग द्वारा औषधीय पौधों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कुछ विशेष उद्यानों को स्थापित किया गया है जिसका एक उदाहरण ‘हर्बल गार्डन' के रूप में हमारे सामने आता है। राजस्थान में पुष्कर (अजमेर), उदयपुर एवं झालरापाटन (झालावाड़) में हर्बल गार्डन बनाए गए हैं। जयपुर में हर्बल गार्डन विकसित किया जा रहा है। हाड़ौती क्षेत्र के झालावाड़ जिले की झालरापाटन नगरी में गोमती सागर तालाब के किनारे इस प्रयास को सार्थक करते हुए ‘हर्बल गार्डन' को मूर्त रूप प्रदान किया गया है। हर्बल गार्डन को ‘अंधेरा बाग' भी कहा जाता था। इसका निर्माण झाला जालिम सिंह द्वारा करवाया गया था। यहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर भी है। इसे ठण्डी झिर' के नाम से भी जाना जाता है। झाला जालिम सिंह ने इस बाग को विभिन्न पौधों एवं वृक्षों से सजाया था। ऐसा कहा जाता  है कि उन्होंने अण्डमान द्वीप समूह से केवड़े आदि के वृक्ष मंगाकर यहाँ लगवाए थे। पूर्व में इस उद्यान का निर्माण द्वारकाधीश मन्दिर के दर्शनार्थ आनेवाले दर्शनार्थियों के विश्राम हेतु करवाया गया था, परन्तु रखरखाव के अभाव में यह उद्यान जीर्ण-शीर्ण होकर दलदलीय भूमि में परिवर्तित हो चुका था। वर्ष 2004-05 में राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ और उन्होंने राजस्थान सरकार द्वारा ‘ठण्डी झिर' में हर्बल गार्डन विकसित किए जाने हेतु निर्देश दिये एवं इस क्षेत्र को पर्यटन के उद्देश्य से उपयोगी बनाए जाने हेतु अनेक विकास-कार्य करवाये।


वर्तमान में ‘हर्बल गार्डन' के संरक्षण एवं संवर्धन का सम्पूर्ण दायित्व वन-विभाग झालावाड़ के हाथों में है। इस हेतु एक विशेष समिति भी बनी हुई है। इस गार्डन के निर्माण का उद्देश्य जैव विविधता संरक्षण, लुप्तप्राय दुर्लभ एवं स्थानीय रूप से उपलब्ध औषधीय पौधों की विविध प्रजातियों की पहचान में मदद, औषधीय पौधों के प्रति जन समुदाय में जाग्रति पैदा करना तथा कृषकों को औषधीय खेती के लिए प्रेरित करना रहा है। शोधार्थियों, विद्यार्थियों तथा जिज्ञासु व्यक्तियों को प्रकृति के इस अनुपम उपहार से परिचित करवाना भी इसका उद्देश्य है।


वर्तमान में ‘हर्बल गार्डन' सर्वश्रेष्ठ औषधीय उद्यान के रूप में सौन्दर्यता, रमणीयता एवं औषधीय उत्पादन में अद्वितीय है। झालावाड़ जिले के वासियों के साथ-साथ राजस्थान ही नहीं अपितु देश-विदेश के व्यक्ति भी इसे देखने यहाँ आते हैं, जिससे पर्यटन मानचित्र में झालावाड़ की एक विशेष पहचान कायम हुई यह उद्यान ठण्डी झिर क्षेत्र के नाले के वर्षपर्यन्त रहनेवाले जल से भरा रहता है। इस क्षेत्र में अनुकूल जलवायु के कारण इसे ठण्डी झिर नाम से जाना जाता है। यहाँ एक प्राचीन शिव मन्दिर भी है। यहाँ पर स्नान हेतु प्राचीन कुण्ड भी बने हुए हैं। इस उद्यान के पश्चिम में गोमती सागर तालाब है जिसके कारण उद्यान क्षेत्र में जल की उपलब्धता सदैव बनी रहती है। मन्दिर के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पतियों से आच्छादित है, जिसमें जलयुक्त क्षेत्र में केवड़ा बहुत अधिक मात्रा में है जो लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्र में उगा हुआ है। यहाँ आम, अशोक, गूलर, बड़, पीपल, ढाक, आदि के अनेक पुराने वृक्ष हैं जिनकी शीतल छाया में अपार शान्ति का अनुभव होता है।


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