शिशु-टोग की आयुर्वेद चिकित्सा

मनुष्य सर्वप्रथम एक स्वस्थ एवं नीरोग जीवन स्वयं व परिवार तथा बच्चों के साथ यापन करना चाहता है, इसके लिए उसे सर्वप्रथम अपनी दिनचर्या को सुधारना होगा। ब्राह्म मुहूर्त में उठने से बच्चे, बूढ़े- सभी में सौंदर्य-वृद्धि, धन-धान्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार ऋतुओं के अनुसार आचरण करने से स्वस्थ एवं सुंदर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हमारी प्रथम ज़िम्मेदारी है कि हम बच्चों को सही पोषण देवें।।



बच्चों में सूखा रोग


हमारी जनसंख्या दिनों दिन बढ़ रही है उसी तरह बढ़ रही है मृत्यु-दर। छोटे बालक ठीक परिचर्या न होने से अकाल में ही काल के गाल में चले जाते हैं। बहुत-से बालक आहार की कमी, दूध की कमी रहने के साथ वस्त्रों की कमी के कारण, उचित चिकित्सा न होने के कारण मृत्यु के मुख में चले जाते


मृत्युका कारण


ज्वर, खाँसी, दस्त, पेचिश, पसली, मोतीझरा माता और सूखा रोग से बहुत-से बालकों की मृत्यु होती है। सब रोगों में सूखा रोग सर्वाधिक कष्टदायक तथा असाध्य है। यह रोग हमारे देश में बालकों में अधिक पाया जाता है। इस रोग से पीड़ित 100 में 80 बालक अच्छे नहीं हो पाते हैं।


सूखा रोग किसे कहते हैं?


इस रोग को आयुर्वेदशास्त्र में ‘शोष' कहते । यह क्षयरोग का ही एक रूप है। क्षय रोग तपेदिक) असाध्य होता है। शोष का अर्थ है सूखना। जिस रोग में बालक दिन-प्रतिदिन घटता जाता है और ज्वर, खाँसी, दस्त, उदरविकार, रक्त, मांस, और अस्थि की तीव्र क्षीणता होती है, उसे सूखा रोग कहते हैं।


सूखा रोग के लक्षण


सूखा रोग का बालक बहुत दुर्बल हो जाता है। उसे बराबर बुखार बना रहता है, खाँसी रहती है, खाँसी में कफ आता है, कभी नहीं भी आता है, खाँसी के कारण फेफड़ों से कफ की आवाज़ आती रहती है। पेट कड़ा हो जाता है। और पेट में अजीर्ण से मल की गाँठे पड़ जाती हैं। कभी बच्चे को पतले दस्त भी होते हैं। बच्चे को कभी भूख ज्यादा और कभी कम भी लगती है यहाँ तक की माँ का दूध भी नहीं पीता है। उसका स्वभाव काफी चिड़चिड़ा हो जाता है वह हर समय रे रें किया करता है। शरीर में रक्त-मांस की कमी हो जाती है और उसके हाथ-पैर लकड़ी की तरह पतले हो जाते हैं। पीठ, रीढ़, कमर, अंगों का मांस सूख जाता है और सीट की जगह लटककर सलवटें पड़ जाती हैं। बच्चे की आवाज़ बहुत क्षीण हो जाती है, वह हर प्रकार से अशक्त हो जाता है।


5 सूखा रोग क्यों होता है?


सूखा रोग होने के मुख्य तीन कारण हैं-


1. माता के पोषक तत्त्व हीन दूषित दूध से


2. . दूषित ऊपरी दूध से।


3. दूसरे रोगियों के संसर्ग से


यह रोग बच्चों में दूध की खराबी से होता है। बच्चे तो कुपथ्य करते नहीं, माँ या धाय माँ ही कुपथ्य करती है। छोटे बालक माँ का दूध पीते हैं, उससे ही उनके शरीर का पोषण होता है। शरीर को पोषित करने के लिए दूध अच्छा मिलना चाहिए। जो माँ अनेक प्रकार के खट्टे, बासी और दूध को दूषित करनेवाले पदार्थ का सेवन करती है या चिन्ता, शोक, क्रोध, ईष्र्या, द्वेष, कलह और कामवासना से ग्रस्त रहती है, उसका दूध दूषित हो जाता है। दूषित दूध पीने से अनेक रोग होते हैं, जैसे- कब्ज, अजीर्ण, खून की कमी, मांस का न बनना, इत्यादि। अतः माँ को चाहिए कि वह बच्चे को अपना दूध पिलाए और दूध को बिगाड़नेवाले अजीर्ण कारणों से बचकर रहे तथा सदा शुद्ध ताजा दूध ही बच्चे को पिलाये। छह मास अथवा नौ मास या एक वर्ष तक माँ अपना दूध पिलाए।


माँ को चाहिए कि वह दूध-दलिया, दुग्धवर्धक और दुग्धपोषक पदार्थों का सेवन अवश्य करे। जो माताएँ ऐसा नहीं करतीं, किन्तु इसके विपरीत दूध को बिगाड़नेवाले पदार्थों को सेवन करती हैं, उनका दूध दूषित हो जाता है। बच्चे के शरीर को पोषण करने के लिए दूध में उचित तत्त्व का होना जरूरी है। यदि दूध में पोषण नहीं और दूध पिलाया जायेगा तो बच्चा दुर्बल हो जायेगा, उसके शरीर में रक्त, रस, मांस, चरबी, अस्थि, मज्जा, आदि धातुओं का बनना कम हो जाता है। इसके बाद दूषित दूध पीने से बच्चे में खाँसी, दस्त, ज्वर अजीर्ण, सूखा रोग उत्पन्न हो जाता है। बालक के जन्म के बाद माँ के अन्दर काफी कमजोरी आ जाती हैइसलिए माँ को अपने आहार-विहार का पूरा ध्यान रखना चाहिए। उसकी जरा भी असावधानी से बच्चे को खाँसी, दस्त, क्षय, आदि रोग शीघ्र आ जाते हैं और माता का दूध भी रोगी हो जाता है।


ज्यादातर माताओं को बच्चों को दूध पिलाना नहीं आता है। हमारा विचार है कि माँ को कम-से-कम नौ मास तक शिशु को अपना दूध पिलाना चाहिए। माता का दूध ही सर्वोत्तम है। अपना दूध न होने की स्थिति में बच्चे को गाय या बकरी का दूध समभाग पानी मिलाकर हल्की आँच पर गरम करके हल्की चीनी डालकर पिलाया जाये। छोटा बालक किसी रोगी बालक या पुरुष-स्त्री का जूठा जल, दूध, अन्नादि वस्तुएँ खा लेता है। तो उसके शरीर में रोग के कीटाणु बहुत शीघ्रता से प्रविष्ट होकर रोग उत्पन्न कर देते हैं। अतः माँ-बाप को चाहिए कि वे अपने नन्हे, कोमल कलोवर बालक को रोगी मनुष्यों से सदा अलग ही रखा करें।


रोग से बचाव तथा औषधि


बालक को शुद्ध दूध-अन्न ही दें और अन्न खाने लगा हो तो अन्य खाने-पीने की वस्तु को ठीक से दें। बच्चे को चाय, शीतल पेय और नमकीन भी न दें। बच्चे को शुरू में दलिया खिलाएँ, क्योंकि वह सुपाच्य और पौष्टिक है। यदि बच्चे को सूखा रोग है तो माता अपना दूध शुद्ध कराने के लिए चिकित्सा कराए तथा अपना दूध पिलाना बन्द कर दे। गाय, बकरी का दूध दे। और बच्चे की योग्य चिकित्सा करानी चाहिए। इस रोग में शिथिलता उचित नहीं है।