10वीं पास मैकेनिक ने बनाई पानी से चलनेवाली कार

'हकीकत की जिंदगी में भी कई ऐसे किरदार होते हैं जो बिना किसी औपचारिक शिक्षा के कोई ऐसा बड़ा कारनामा कर दिखाते हैं, जिसे देखकर दुनिया दातों तले अंगुली दबाने का मज़बूर हो जाती है। 10वीं पास 54 वर्षीय एक कार मैकेनिक रईस महमूद मकरानी ने पेट्रोल की बजाय पानी से चलनेवाली कार और मोबाइल से कार ऑपरेट करने की तकनीक से वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के होश उड़ा दिए हैं। इस कामयाबी के बाद कई देशों की नामी-गिरामी कंपनियाँ उनसे तकनीक बेचने या फिर उनके देश में आकर सेवा देने का आग्रह कर चुकी हैं, लेकिन मकरानी उनका ऑफर ठुकरा चुके हैं। वह अपनी तकनीक की इस्तेमाल प्रधानमंत्री के 'मेक इन इण्डिया' मुहिम के तहत सिर्फ देशवासियों और देश के लिए करना चाहते हैं।


मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 200 किमी की दूरी पर स्थित सागर जिले के सदर बाजार में सालों से रईस महमूद मकरानी का परिवार रहता है। गाड़ियों की मरम्मत और रखरखाव का उनका पुश्तैनी कारोबार है। पिछले 50 सालों से हिंद मोटर' नाम से उनका गैराज चल रहा है, जो उनकी जिंदगी का अटूट हिस्सा है। लगभग 35 साल पहले पढ़ाई के दौरान 12वीं में फेल करने के बाद मकरानी अपने पिता के कहने पर अपने इस पुश्तैनी गैराज का काम देखने लगे। अपने काम को वह इस समर्पण और ईमानदारी से करने लगे कि काम और मोटरगाड़ियों से उन्हें कब मुहब्बत हो गई, पता ही नहीं चला। नयी-नयी गाड़ियों के बारे में जानना और उसकी तकनीक को समझना, उनके शौक में शुमार हो गया। वह एक तजुर्बेकार डॉक्टर की तरह गाड़ियों के इंजन की आवाज को सुनकर और उसे देखकर बड़ी-से-बड़ी खराबी चुटकियों में ठीक कर देते हैं। मकरानी के चार बेटे भी इसी कोराबार में उनका साथ देते हैं। मकरानी अपने पिता सईद मकरानी को अपना उस्ताद मानते हैं।



पेटोल नहीं पानी से चलनेवाली कार


हाल में मकरानी अपनी पानी से चलनेवाली कार को लेकर देश और दुनिया में सुर्खियों में हैं। डिस्कवरी और बीबीसी से लेकर देश के प्रमुख न्यूज-चैनलों और अखबारों में उनके इस आविष्कार का कवरेज हो चुका उनके इस आविष्कार का कवरेज हो चुका है। पानी से चलनेवाली उनकी कार ट्रायल रन में पूरी तरह कामयाब साबित हुई है। सरकारी संस्थाओं से लेकर कई निजी संस्थानों ने उनकी कार को जाँच-परख कर उसे भविष्य की कार घोषित कर दिया है, और रईस मकरानी को इस बात का प्रमाण- पत्र भी जारी कर दिया है।


मकरानी ने बताया कि वह इस कार को बनाने में वर्ष 2005 से जुटे हुए हुए थे, लेकिन अपेक्षित सफलता वर्ष 2012 में मिली। इसके बाद वह लगातार इस कार को अपग्रेड करने में जुटे रहे। उन्होंने अपना प्रयोग कार के 800 सी के इंजन पर किया है। उन्होंने कार को पानी और कैल्सियम कार्बाइड से चलाने की कोशिश की। इन दोनों मिश्रण से एसिटिलीन नाम की गैस पैदा होती है, जिससे कार चलती है। पेट्रोल इंजन में फेरबदल के बाद एसिटिलीन से चलनेवाला इंजन बनाया। बाद में कार में पीछे की तरफ एक सिलेंडर लगाया है। इसमें पानी और कैल्शियम कार्बाइड को मिलाकर एसिटिलीन पैदा किया जाता है। कुछ ही देर में एसिटिलीन बनते ही कार चलने लगती है।


इस कार में चार लोग बैठ सकते हैं। इसे चलाने में प्रति दस किमी में लगभग 20 रुपए का खर्च आता है, जो वर्तमान पेट्रोल, डीजल, सीएनजी, एलपीजी और एथनॉल से चलनीवाली कारों से बेहद सस्ती है। फॉर्मूले को पेटेंट कराने के लिए उन्होंने 2013 में इंटलेक़ुअल प्रॉपर्टी ऑफ इंडिया के मुंबईस्थित ऑफिस में अर्जी भी लगाई थी, जहाँ से उनकी कार को पेटेंट मिल गया है।


चीन और दबई से मिलाकार-निर्माण में सहयोग का ऑफर


मकरानी की इस कामयाबी के बाद उन्हें चीन और दुबई की वाहन-निर्माता कंपनियों ने कार-निर्माण में मदद करने का ऑफर दिया है। उन्होंने बताया कि चीन के सियाग शहर से इलेक्ट्रिक वाहन बनानेवाली कंपनी कोलियो के एमडी सुमलसन ने इस फॉर्मूले पर मिलकर काम करने का प्रस्ताव रखा है। कंपनी ने बड़े स्तर पर पानी और कार्बाइड से एसिटिलीन बनाकर इसे इलेक्ट्रिक एनर्जी लिक्विड फ्यूल में बदलकर देने पर बात की है। मकरानी 26 मई, 2015 को चीन गए थे। लगभग 11 दिन तक वह इस सिलसिले में चीन में रहे, लेकिन उन्होंने चीनी कंपनी से भारत और खासकर सागर में कार बनाने की शर्त रखी थी। इसके बाद कंपनी ने उनसे इस दिशा में सोचने का समय मांगा था। रईस के अनुसार, इससे पहले 2013 में दुबई की निवेश-कंपनी लस्टर ग्रुप ने भी उन्हें इस फॉर्मूले पर काम करने के लिए सहयोग करने का ऑफर दिया था। लेकिन भारत में रहकर फॉर्मूला तैयार और लॉन्च करने की बात को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी।


आगे और---