प्राचीन भारत मे पारमाणविक युद्ध

आधुनिक समय में परमाणु बम का पहला सफल परीक्षण 16 जुलाई, 1945 को न्यू मैक्सिको के एक दूरदराज स्थान पर किया गया। इस बम का निर्माण अमेरिका के एक वैज्ञानिक जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर (1904-1967) के नेतृत्व में किया गया। इन्हें परमाणु बम का जनक भी कहा जाता है। इस एटम बम का नाम उन्होंने ‘ट्रिनीटी' अर्थात् त्रिदेव रखा।


ट्रिनीटी नाम क्यों?


परमाणु-विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया में 235 भारवाला यूरेनियम परमाणु, बेरियम और क्रिप्टन तत्त्वों में विघटित होता है। प्रति परमाणु 3 न्यूट्रान मुक्त होकर अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते हैं। कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिणित हो जाता है। आइंस्टाइन के सूत्र ऊर्जा = द्रव्यमान x (प्रकाश का वेग) {E=MC2} के अनुसार अपरिमित ऊर्जा अर्थात् उष्मा व प्रकाश उत्पन्न होते हैं।



सन् 1893 में जब स्वामी विवेकानन्द (1863-1902) अमेरिका में थे, उन्होंने वेद और गीता के कतिपय श्लोकों की अंग्रेजी में व्याख्या की थी। यद्यपि परमाणु बम विस्फोट कमेटी के अध्यक्ष ओपेनहाइमर का जन्म स्वामी जी की मृत्यु के बाद हुआ था, तथापि रॉबर्ट ने श्लोकों का अध्ययन किया था। वह वेद और गीता से बहुत प्रभावित हुए थे। वेदों के बारे में उनका कहना था कि पाश्चात्य संस्कृति में वेदों की पहुँच इस शती की विशेष कल्याणकारी घटना है। उन्होंने जिन तीन श्लोकों को महत्त्व दिया, वे इस प्रकार हैं।


1. रॉबर्ट ओपेनहाइमर का अनुमान था कि परमाणु बम विस्फोट से अत्यधिक तीव्र प्रकाश और उच्च ऊष्मा होगी, जैसा कि भगवान् कृष्ण द्वारा अर्जुन को विराट् स्वरूप के दर्शन देते समय उत्पन्न हुआ होगा। गीता के ग्यारहवें अध्याय के बारहवें श्लोक में लिखा है।


दिविसूर्य सहस्य भवेयुग पदुत्थिता।


यदि मा सदृशीसा स्यादा सस्तस्य महात्मनः॥  


अर्थात् आकाश में हजारों सूर्यों के एकसाथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा, वह भी विश्वरूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश्य शायद ही हो।


2. ओपेनहाइमर ने सोचा कि इस बम विस्फोट से बहुत अधिक लोगों की मृत्यु होगी, दुनिया में विनाश-हीविनाश होगा। उस समय उन्हें गीता के ग्यारहवें अध्याय के 32वें श्लोक में वर्णित बातों का ध्यान आया


कालोऽिस्म लोकक्षयत्प्रवृद्धो


लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्रः।।


ऋतेह्यपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे


येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥


अर्थात् मैं लोकों का नाश करनेवाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ, अतः। जो प्रतिपक्षी सेना के योद्धा लोग हैं, वे तेरे युद्ध न करने पर भी नहीं रहेंगे अर्थात् इनका नाश हो जाएगा।


रॉबर्ट का बम भी विश्व-संहारक और महाकाल ही था।


3. ओपेनहाइमर ने सोचा कि बमविस्फोट से जहाँ कुछ लोग प्रसन्न होंगे तो जिनका विनाश हुआ है वे दुःखी होंगे, विलाप करेंगे, जबकि अधिकांश तटस्थ रहेंगे। इस विनाश का जिम्मेदार खुद को मानते हुए वह दुःखी हुए। तभी उन्हें गीता के द्वितीय अध्याय के 47वें श्लोक का भावार्थ ध्यान आया : कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।


मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥


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