जीवन को प्रभावित करती है ऊर्जा

आदिकाल से ही मनुष्य ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का प्रयत्न करता आ रहा है। उसके सामने ब्रह्मांड की उत्पत्ति, स्थिति और लय के विभिन्न पहलू एक गुत्थी के रूप में सामने आते रहे हैं। भारतीय ऋषियों ने अपनी अलौकिक शक्तिओं के द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैली ऊर्जाओं के रहस्यों को जाना और इनका वर्णन भी अलग-अलग तरीकों से किया। उनके मतानुसार यह सम्पूर्ण विश्व ऊर्जा से सञ्चालित है। जिसके पास जितनी ऊर्जा है, उसकी स्थिति उतनी ही अच्छी है। पृथिवी पर मूल रूप से ऊर्जा के तीन प्राकृतिक स्रोत माने गए हैं जिनसे निरंतर ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है। ये हैं- सूर्य, पृथिवी एवं मानव-मस्तिष्क। सूर्य से हमको विभिन्न प्रकार के विकिरण के रूप में ऊर्जा प्राप्त हो रही है, सौर ऊर्जा पाने की दृष्टि से पूर्व एवं पश्चिम की दिशाओं का महत्त्व होता है। पृथिवी से चुंबकीय ऊर्जा मिलती है व उत्तर और दक्षिण की दिशाओं का महत्त्व पृथिवी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के प्रभाव से सम्बद्ध है। उत्तरी ध्रुव से चुंबकीय ऊर्जा दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होती है। चुंबकीय ऊर्जा का प्रभाव भी हमारे लिए सौर ऊर्जा की तरह ही लाभप्रद है। मानव-मस्तिष्क से भी ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है, इस बात को अब वैज्ञानिक भी मानते हैं। इसको विज्ञान की भाषा में ‘औरा' कहा जाता है। हमारे महापुरुषों के सिर के पीछे चमकता हुआ जो गोला दिखाया जाता है, वह यही 'औरा' है।



प्राकृतिक ऊर्जा दो प्रकार की मानी गई है- सकारात्मक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा। इन ऊर्जाओं को केवल हमारा मस्तिष्क ही पहचानता है। जब हम किसी धार्मिक स्थल, बगीचे अथवा जल के किनारे जाते हैं, तब हमारे मन को बहुत शांति मिलती है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि वहाँ पर सकारात्मक ऊर्जा की अधिकता के कारण हमारा प्रकृति से सामञ्जस्य हो जाता है। लेकिन इसके विपरीत जब हम शोर-गुल, आँधी-तूफान, कचरा-गंदगी या कब्रिस्तान आदि के संपर्क में होते हैं, तो हमारा मन बेचैन हो जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है।


वैदिक मतानुसार प्रकृति में तीन ब्रह्माण्डीय ऊर्जा समाहित है- सत्त्व, रजस व तमस। हिंदू-दर्शन में ब्रह्मा, विष्णु और शिव को इन तीन ऊर्जाओं का प्रतिनिधि माना गया है। ब्रह्मा रजस स्वरूप हैं जो सृष्टि के रचयिता हैं, विष्णु सत्त्वस्वरूप हैंजो विश्व का संरक्षण करते हैं और शिव को तामसिक ऊर्जा का पर्याय माना जाता है जो विनाशक महाकाल हैं।


तीनों की संयुक्त ऊर्जाओं का प्रतीक है- त्रिकोण। सत्त्व ऊर्जा ऐसी शक्ति है जो स्थिरता, मूल्यवत्ता और सकारात्मकता से जोड़ती है, जबकि तमस ऊर्जा समस्त मूल्यों व आदर्शों का नाश करती है और नकारात्मकता की ओर ले जाती है । रजस ऊर्जा सत्त्व और तमस के बीच की शक्ति है जो सक्रियता, परिवर्तन और गतिशीलता प्रदान करती है।


विश्व में हमारे चारों तरफ जो कुछ भी है, वह इन तीन ऊर्जाओं की ही अभिव्यक्ति है। प्रत्येक जीव एवं पदार्थ में इन गुणों की कम या अधिक मात्रा सन्निहित होती है। इस पृथिवी पर तमस ऊर्जा अधिक हावी है जबकि अग्नि व जल में रजस ऊर्जा की मात्रा अधिक है। एक गुण का अस्तित्व बिना दो गुणों की मौजूदगी के असंभव है। यदि अपनी दिनचर्या पर दृष्टि डाली जाए, तो बदलते मूड एवं व्यवहार से उनके गुणों को पहचाना जा सकता है, जैसे जब हम खुश व बौद्धिक होते हैं तो इसका अर्थ है कि सत्त्व ऊर्जा हावी है। इसी तरह रजस के सान्निध्य में हम सक्रिय, भावुक और अस्थिर होते हैं। जबकि तमस ऊर्जा से ग्रस्त होने पर अकर्मण्य, सुस्त, निरुत्साही हो जाते हैं। 


आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति के अनुसार भी इन तीन ऊर्जाओं की मात्रा ही व्यक्ति की वात, पित्त व कफ की मात्रा को घटाती-बढ़ाती है। चार दिशाएँ- पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण एवं दिशाओं की संधियों में चार कोण (विदिशाएँ) होते हैं। उत्तर-पूर्व कोण को ईशान, दक्षिण-पूर्व कोण को आग्नेय, दक्षिण-पश्चिम कोण को नैऋत्य तथा उत्तर-पश्चिम कोण को वायव्य कहा जाता है। इन सभी दिशाओं और कोणों पर सत्त्व, रजस और तमस ऊर्जाओं का प्रभाव अलग-अलग होता है, जो निरंतर पृथिवी और मानव-जीवन को प्रभावित करती हैं। सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति इन तीन प्राकृतिक ऊर्जाओं की मात्रा पर निर्भर करती है। इन मात्राओं के अनुसार ही वह अलग-अलग ढंग से व्यवहार करता है।