ऊर्जा एवं उसके विभिन्न रूप

भॊतिकी में ऊर्जा का अर्थ, कार्य करने की क्षमता से लगाया जाता है। यह स्थितिज, गतिज, तापीय, विद्युतीय, रासायनिक और आणविक-जैसे कई रूपों में हो सकती है। आप इन सबों के बारे में, प्रारंभिक से लेकर उच्च शिक्षा पाने के क्रम में पढ़ चुके हैं। आप यह भी जानते हैं कि ऊर्जा अपना रूप बदल सकती है। जैसे, विद्युतीय ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में बदलना या आणविक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलना, इत्यादि। इसके अलावा बहुत सारे उपकरणों में, जैसे- बैटरी इत्यादि में रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलना, इत्यादि। ऊर्जा से संबंधित कई नियम हैं, जिनका प्रतिपादन विभिन्न वैज्ञानिकों ने विभिन्न सन्दर्भो में किया है। उसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है- ऊर्जासंरक्षण का नियम। इस नियम के अनुसार, ऊर्जा का न तो सृजन किया जा सकता है। और न ही इसका विनाश किया जा सकता है अपितु इसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। 


यदि हम अपने जीवन पर नजर डालें, तो पाएँगे कि हम ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों पर इस तरह निर्भर हैं कि इसके बिना जीवन दुष्कर हो जाए। सबसे पहले विद्युत ऊर्जा की बात करते हैं। आज बिजली के बिना मनुष्य लगभग अपाहिज है। इससे घर की कितनी आवश्यक वस्तुओं को ऊर्जा मिलती है, यह सभी जानते हैं। घर में रोशनी करने के अलावा, भोजन बनाने, कंप्यूटर चलाने, मोबाइल चार्ज करने, गीजर, हीटर, ए.सी., जूसर, ग्राइंडर-मिक्सर, ऑडियो-वीडियो उपकरण, अलार्म, सी.सी.टी.वी. कैमरा-जैसे कई महत्त्वपूर्ण और उपयोगी उपकरणों के लिए इसकी आवश्यकता होती है। ध्वनि- ऊर्जा भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मनुष्य के गले में बना ध्वनि यन्त्र, मांसपेशी में स्थित, स्थितिज ऊर्जा को पहले गतिज और पुनः ध्वनि ऊर्जा में न बदले, तो हम मनुष्य एक दूसरे की आवाज कभी नहीं सुन पाएंगे। 



यदि हम सामान्य जीवन में उपयोग में आनेवाली सभी चीजों को ऊर्जा के आधार पर वर्गीकृत करें, तो हम पाएँगे कि हम कितनी सहजता से स्थितिज, गतिज, तापीय, विद्युतीय, रासायनिक और पवन ऊर्जा का उपयोग करते चले आ रहे हैं। लेकिन, क्या हमने सोचा है कि ऊर्जा के ये स्रोत कब तक हमें ऊर्जा दे पाएँगे। जब वैज्ञानिक यह कहते हैं कि ऊर्जा का न तो सृजन हो सकता है और न ही विनाश, तो इसका अर्थ पूरे ब्रह्माण्ड की समेकित ऊर्जा से है न कि किसी एक विशेष ऊर्जा के स्रोत से। यदि हम उस विशेष ऊर्जा के स्रोत को ही नष्ट कर दें या उसे अकारण बर्बाद करते रहें, तो समय आने पर हम अपनी उपयोग के लायक ऊर्जा उससे नहीं ले पाएँगे; क्योंकि वह ऊर्जा अपने रूप बदल चुकी होगी। यह बात जान लेना आवश्यक है कि ऊर्जा के हर तरह के स्रोत को एक ही तरह के तंत्र और यन्त्र से उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। हर तरह की ऊर्जा को कार्य करने हेतु उपयोग में लाने के लिए विशेष तंत्र और यन्त्र की आवश्यकता होती है। तापीय ऊर्जा से रासायनिक ऊर्जा अथवा यांत्रिक ऊर्जा पर कार्य करनेवाले यन्त्र को नहीं चलाया जा सकता। यह तभी संभव है जब उस तापीय ऊर्जा को किसी यन्त्र की मदद से पहले रासायनिक अथवा यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाए।


उपलब्धता के आधार पर ऊर्जा के स्रोत को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। पहले, वैसे स्रोत जो नवीकरणीय स्रोत हैं। ऊर्जा के ऐसे स्रोत असीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और जिनका उत्पादन और उपयोग सालों-साल तक किया जा सकता है। लेकिन यह असीमित मात्रा कितने वर्षों तक असीमित रहेगी, यह उस स्रोत के बने रहने पर निर्भर करता है। इन नवीकरणीय स्रोतों में पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, बायोमास अथवा जैव ऊर्जा, सौर ऊर्जा और महासागरीय ऊर्जा, इत्यादि आते हैं। आप जानते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सूर्य, जो वास्तव में एक तारा है, की एक निश्चित जीवन अवधि है, और यह सम्भव है कि सूरज के समाप्त होने के बाद यह धरती और यह सौरमंडल भी समाप्त हो जाए। दूसरी तरह के ऊर्जा के स्रोत वैसे स्रोत हैं जो बहुत कम मात्रा में बनते हैं और सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। इनका उपयोग लम्बे समय तक नहीं किया जा सकता है और इसलिए इन्हें अनवीकरणीय स्रोत कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, इत्यादि।


 


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