आधुनिक भारत के एक नायक

वास्तव में किसी में भी नहीं। लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज समूचे भारत और भारतीयों में बसे हैं। किसी भी धर्म या सांस्कृतिक मूल के लोग हों, उनके लिए शिवाजी महाराज साहस, राजकौशल, देशप्रेम और ईमानदार प्रशासन की सनातन प्रतिमूर्ति हैं। वास्तव में उनमें ऐसे विलक्षण गुण थे जो मौजूदा भारत के राजनेताओं में होने चाहिए, लेकिन किसी-किसी में ही नजर आते हैं। शिवाजी पूरे भारत के शिखर-पुरुष थे।


इसके बावजूद, अगर आज आप भारत के किसी बुक स्टोर पर शिवाजी की जीवनी लेने जाते हैं, तो आपको एक भी खोजे नहीं मिलेगी। कइयों के तो प्रिंट भी खत्म हो चुके हैं। इनमें से जेम्स लेन द्वारा लिखी जीवनी को छोड़कर, जिसमें पश्चिमी विचारधारा के तमाम पूर्वाग्रह नज़र आते हैं, अन्य सभी बीस से तीस वर्ष पुरानी हैं। हमारे यहाँ फ्रांस में भी नेपोलियन के रूप में ऐसा ही एक हीरो हुआ है। सभी बच्चों को किंडर गार्डन से ही नेपोलियन की महान् गाथाओं के बारे में बताया जाता है। शिवाजी की तरह नेपोलियन न सिर्फ एक जांबाज योद्धा, वरन अनूठी सोचवाले राजनेता भी थे। उन्होंने जो नियम-कायदे बनाए थे, उनमें से कई आज भी चलन में हैं। फ्रांसीसियों को नेपोलियन पर गर्व है और होना भी चाहिए। हर साल कम-से-कम चार या पाँच किताबें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नेपोलियन के बारे में लिखी जाती हैं। इसकी तुलना में भारत में शिवाजी के बारे में न सिर्फ एक किताब तक खोज पाना मुश्किल है, वरन पिछले साल केरल सरकार ने ऐसी स्कूल नोटबुक्स को प्रतिबंधित कर दिया, जिनमें छत्रपति शिवाजी की तस्वीरें अंकित थीं। यह सरासर गलत है। कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता, यदि उसे खुद पर गर्व नहीं है। और अपनी संस्कृति से जुड़े नायकों से अपने बच्चों को परिचित नहीं करवाता। लेकिन भारत में ऐसा हो रहा है।



आखिर ऐसा क्यों है? शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि यहाँ तकरीबन तीन सदियों तक अंग्रेजों का साम्राज्य रहा। भारत के कई राजनेता, नौकरशाह और पत्रकार अक्सर पश्चिम की नकल करते नज़र आते हैं या उन्हें हमेशा इस बात की चिंता लगी रहती है कि पश्चिमी जगतु उनके बारे में क्या सोचता है। उन्हें शेक्सपीयर के बारे में तो सब पता है, लेकिन कालिदास के बारे में नहीं, जो दुनिया के महानतम कवियों में से एक थे।


उन्होंने अब्राहम लिंकन को बहुत पढ़ा है, लेकिन श्रीअरविन्द-जैसे महान् दार्शनिक, कवि, क्रांतिकारी और महायोगी के बारे में कुछ नहीं जानते। चंद लोगों ने ही भगवद्गीता पढ़ी है या वे यह जानते हैं कि यह कर्मयोग को बढ़ावा देती है और यह सिखाती है कि अपने देश, संस्कृति और सीमाओं की रक्षा के लिए ज़रूरत पड़ने पर बलप्रयोग करना उचित है, जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया। यह भी एक गलत धारणा है कि


यह भी एक गलत धारणा है कि शिवाजी मुस्लिम-विरोधी थे, क्योंकि उन्होंने औरंगजेब से लड़ाई लड़ी। शिवाजी ने सभी धर्मों को खुली छूट दी और जबरन धर्मातरण का विरोध किया। शिवाजी ने एक फतह के बाद सबसे पहला काम यह किया कि मस्जिदों और मकबरों की सुरक्षा का फरमान जारी कर दिया। उनकी सेना में एक-तिहाई मुसलमान थे और उनके ज्यादातर सेनापति भी मुस्लिम थे।


औरंगजेब एक क्रूर शासक था। उसने अपने दो भाइयों की हत्या कर दी और पिता शाहजहाँ को कारागार में डाल दिया और बाद में जहर दे दिया। शिवाजी इकलौते ऐसे शख्स थे जो उसके खिलाफ तब खड़े हुए, जब हिंदुओं पर बहुत जुल्म ढाए जा रहे थे, उनके मन्दिरों को तोड़ा जा रहा था और उन्हें कई तरह से प्रताड़ित किया जा रहा था, जैसे- सीमा-शुल्क का मसला, उनके उत्सवों और त्योहारों पर प्रतिबंध, उन्हें सरकारी ओहदों से हटाना और मुगल-साम्राज्य की घोषित नीति के तहत उनका बड़े पैमाने पर धर्मांतरण। उन्हें हिंदू होने की वजह से 'जजिया कर अदा करना पड़ता और यह भी तब, जबकि हिंदुओं की तादाद कुल आबादी की तकरीबन अस्सी फीसदी थी।


आगे और---