दूरदर्शी नेता : आध्यात्मिक दूत

दूरदर्शी नेता सही अर्थों में आध्यात्मिक दूत हैं। बोले तो, भगवान् के दूतों को मानव जाति को शांति और अनुरूपता के साथ रहने के लिए राह दिखाने और निर्देश देने एवं राष्ट्र, विश्व, पृथिवी ग्रह और मानवता के कर्मों पर काम करने के लिए भेजा गया है।


प्रत्येक व्यक्ति को पृथिवी ग्रह पर अपनी यात्रा के दौरान एक भूमिका निभानी होती है। किसी व्यक्ति को सौंपी गई भूमिका उसकी जन्म से पूर्व और जन्म के बाद की प्रवृत्तियों की सीमाओं के भीतर ही निभानी होती है जो वैश्विक चक्र से गुजरने के जरिये उसके किए गए कर्मों से पैदा होकर संगृहीत होती है। व्यक्ति को, शास्त्रों के अनुसार ऐसी स्थिति में रखा गया है जो उसके लिए प्रकृति में सर्वाधिक उपयुक्त होती है। तर्क करने के लिए यह तर्कसम्मत लगता है कि विषुव खगोलीय चक्र से गुजरने के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा किए जानेवाले कार्य प्रकृति द्वारा नियोजित होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में सोचने की क्षमता और कार्य करने की आजादी है, ऐसा गुण जो पशुओं या अन्य जीवधारियों को प्रदान नहीं किया गया है। इसलिए प्रकृति के क्रमिक विकास की प्रक्रिया से गुजरने के दौरान व्यक्ति के अपने नियंत्रण में एक चीज होती है और वह है प्रकृति के क्रमिक विकास को तेज या धीमी गति प्रदान करना। यही है जहाँ वह अपनी इच्छानुरूप काम कर सकता है और यह उसकी पसंद है कि वह अच्छे कर्म करता है या बुरे कर्म करता है, महान् कार्य या अमानवीय कार्य। प्रकृति निगरानी की अपनी भूमिका में बहुत स्पष्ट और निष्पक्ष है। क्रमिक विकास को बढ़ाते हुए वह अच्छे कर्म करनेवालों को पुरस्कृत करती है और लालच, हवस, क्रूरता, बेईमानी आदि जैसे बुरे कर्मों में लिप्त, व्यक्तियों के लिए निष्पक्ष है। जो क्रमिक विकास की प्रक्रिया में बाधा बनते हैं। 



स्वामी युक्तेश्वर गिरिजी ने अपनी गणना के अनुसार 24,000 वर्षों के वैश्विक चक्र का वर्णन किया है जिसमें 12,000 वर्ष आरोही क्रम में और 12000 वर्ष अवरोही क्रम के वृत्त-चाप में हैं। प्रत्येक वृत्त-चाप को चार युगों/काल में विभाजित किया गया है जिनसे होकर मानव गुजरता है। आरोही वृत्त-चाप 1,200 वर्षों के कलियुग/लौह काल, 2400 वर्षों के द्वापरयुग/ताम्र काल, 3600 वर्षों के त्रेतायुग/रजत काल और 4800 वर्षों के सत्ययुग/स्वर्ण काल के साथ शुरू होता है, जिसमें आरोही क्रम में कुल 12,000 वर्ष और अवरोही क्रम के वृत्त-चाप में 12,000 वर्ष हैं।


स्वामी युक्तेश्वर जी के अनुसार, वर्तमान सन्दर्भ में, 1200 वर्ष की अवधि का कलियुग वर्ष 500 ई.पू. में शुरू हुआ और 1698 ईसापूर्व में समाप्त हुआ। विषुव खगोलीय चक्र के आरोही क्षेत्र में वर्तमान युग, द्वापरयुग 4098 ई.पू. में समाप्त होगा। उसके बाद वर्ष 11502 में चक्र के बढ़ते क्रम में 3600 वर्ष के त्रेता और 4800 वर्ष के सत्ययुग की अवधि 12000 वर्ष में पूरी होगी, जिनका कुल योग 9,485 वर्ष होता है।


त्रेता और सत्ययुग की अवधियों की विशेषताओं के साथ सहमत न होते हुए, युक्तेश्वर गिरिजी ने द्वापर युग को ऊर्जा के युग के तौर पर बताया है जिसमें सभी ऊर्जाओं और खास तौर पर परमाणु ऊर्जाओं की जाँच-पड़ताल की जायेगी। 1698 से 4098 ई.पू. तक के इस युग में कई आविष्कार किए जायेंगे और इलेक्ट्रॉनिक्सों में विश्व अत्यंत उन्नत होगा। स्वामी युक्तेश्वर गिरिजी की भविष्यवाणी सच हो रही है। हम इलेक्ट्रॉनिक्स में उन्नत आविष्कारों को होता हुआ देख रहे हैं। यद्यपि स्वामी युक्तेश्वर ने प्राण ऊर्जा (जीवन शक्ति) के संबंध में खास तौर पर कुछ नहीं बताया है, तथापि योग की वर्तमान स्वीकार्यता, जो प्राण ऊर्जा की खोज करती है, ऐसा प्रतीत होता है उनकी भविष्यवाणियों की गति पाने के लिए उनका मुख्य अनुसंधान क्षेत्र बन गया है। यदि हम निष्पक्ष रूप से निरीक्षण करें और आधुनिक संतोंश्रीश्री रविशंकर, जिदू कृष्णमूर्ति, विवेकानन्द, योगानन्द और दलाई लामा को सुनें, तो वे सभी आत्मनियंत्रण पाने के लिए भीतरी ऊर्जा (प्राणशक्ति) को खोजने और सुंदर मनवाले लोगों का देश बनाने का सुझाव देते हैं। हमारे शास्त्र भी सरल शब्दों में योग को हमारे अस्थिर मन को शांत करने या दिमाग के असंतुलित विचारों को नियंत्रित करने की तकनीक के तौर पर बताते हैंवर्तमान आपदाओं और वर्तमान पर्यावरण-प्रभाव से । पीड़ित होने के कारण असामञ्जस्य, नफ़रत, असहिष्णुता और लालच बढ़ते हैं।


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