जब पुरु ने झेलम के युद्ध में सिकन्दर को पराजित किया

जो इतिहास में पढ़ाया जाता है, वह अंग्रेजों के समय लिखा गया था। अंग्रेज़ इतिहासकारों ने जान-बूझकर ऐसा इतिहास लिखा जिसमें भारतीय इतिहास के गौरवशाली प्रसंगों को छिपाया गया या तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया। भारतवासियों के मन में अपने देश, देश के इतिहास और संस्कृति के प्रति स्वाभिमान उत्पन्न न होने पाए, इसकी पूरी कोशिश की गई।


उदाहरण के लिए, यशस्वी सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य ने सिकन्दर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस को भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर बुरी तरह हराया था। इस घटना की इतिहास में मामूली-सी चर्चा ही की गई है, जबकि सिकन्दर के हाथों पुरु की तथाकथित हार का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। आज से लगभग 2,300 वर्ष पहले झेलम (अब पाकिस्तान में) के किनारे हुए उस युद्ध में सिकन्दर की जीत हुई थी- यह तथ्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। उस ऐतिहासिक युद्ध के जो प्रमाण मिलते हैं, उनसे तो यही सिद्ध होता है कि वास्तव में जीत तो पुरु की हुई तथा सिकन्दर ने पुरु से सन्धि कर आगे बढ़ने का प्रयास किया।


भारत के प्राचीन इतिहास में पुरु और सिकन्दर के युद्ध का कोई वर्णन नहीं मिलता। कर्टियस (प्रथम शताब्दी ई.), जस्टिन (द्वितीय शताब्दी ई.), डायोडोरस (90-27 ई.पू.), एरियन (86-146), प्लूटार्क (46-120), आदि ने विस्तार से पुरु और सिकन्दर के युद्ध का वर्णन किया है। इनको पढ़ने व विवेचना करने से प्रचलित मान्यता, कि सिकन्दर ने पुरु को परास्त किया, ध्वस्त हो जाती है।



द्वन्द्व युद्ध का आह्वान


इतिहासकार जस्टिन के अनुसार, 'जैसे ही युद्ध शुरू हुआ, पुरु ने अपने सैनिकों को यूनानियों पर आक्रमण करने के लिए कहा। पुरु ने यूनानियों से कहा कि सिकन्दर को मुझसे द्वन्द्व युद्ध करने दो ताकि व्यर्थ के रक्त पात से बचा जा सके। सिकन्दर इसके लिए तैयार नहीं हुआ तथा भारतीय सेना पर आक्रमण कर दिया। पहले ही हमले में सिकन्दर का घोड़ा मारा गया और वह जमीन पर जा गिरा। उसके सैनिक उसे बचाकर ले गये।'


बताया जाता है कि एक रात को नावों से झेलम पारकर सिकन्दर ने पुरु की सेना पर हमला किया तथा पुरु को हरा दिया। इस सम्बन्ध में इतिहासकार एरियन ने लिखा है, 'कई दिनों तक पड़े रहने के बाद एक अंधेरी रात में सिकन्दर ने नदी पार की। वहाँ उसने पुरु के राजकुमार को तैयार खड़ा पाया। राजकुमार ने युद्ध में सिकन्दर को घायल कर दिया तथा उसके घोड़े ब्यूसेफेलस' को मार गिराया।'


इतिहासकार प्लूटार्क के अनुसार, सिकन्दर की सेना में, ‘एक लाख बीस हजार पैदल तथा पन्द्रह हजार घोड़े थे। दूसरी ओर पुरु के पास मात्र बीस हजार पैदल तथा दो हजार घोड़े थे।' पुरु की मुख्य ताकत उसके हाथी थे। एक अन्य इतिहासकार डायोडोरस ने लिखा है, 'विशालकाय हाथियों में गजब की शक्ति थी तथा युद्ध में वे बहुत उपयोगी सिद्ध हुए। सैकड़ों यूनानी सैनिकों को उन्होंने अपने पैरों तले कुचल दिया।' एरियन ने भी लिखा है कि, ‘हाथियों ने यूनानियों का पीछा किया और उन्हें कुचल दिया।'


यूनानी हाथियों के लिए लालायित थे


फिर भी इतिहास की पुस्तकों में हमें पढ़ाया जाता है कि हाथियों के कारण ही पुरु की हार हुई। इन्हीं पुस्तकों में यह भी लिखा है। कि सैल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से मात खाने के बाद सन्धि में चन्द्रगुप्त से सौ हाथी देने की प्रार्थना की थी। सिकन्दर के अन्य उत्तराधिकारियों में भी हाथी प्राप्त करने की होड़ लगी रहती थी। सैल्यूकस ने अपना राजकीय चिह्न ही ‘हाथी बना लिया था। प्रश्न उठता है कि यदि पुरु की हाथियों के कारण युद्ध के मैदान में हार हुई थी तो यूनानी सेनापति हाथियों के लिए इतने उत्सुक क्यों थे? इसका उत्तर यही है, कि पुरु और सिकन्दर के युद्ध में यूनानियों ने हाथियों का कमाल देखा था और वास्तव में युद्ध में पुरु को ही विजयश्री प्राप्त हुई थी।


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