राजस्थान में प्रथम स्वाधीनता संग्राम

आज भारत स्वा ज भारत स्वाधीन है, पर इस स्वतन्त्रता का सुख हम इसलिये उठा पा रहे हैं, क्योंकि सदियों तक हमारे पूर्वजों ने अपना लहू बहाया है। पहले मुगलों से आजादी के लिए देश की रियासतों ने अलग-अलग मुकाबला किया और फिर जब अंग्रेज़ आए, तब भी रियासतें थीं परन्तु उनका बिखरा होना अंग्रेजों के लिए वरदान जैसा था। वे अलग-अलग रियासतें जीतते चले गए। तब भी उनका विरोध होता था, पर उनके लिए तब परेशानी शुरू हुई जब 1857 में पूरा देश एकसाथ उठ खड़ा हुआ। तात्या टोपे से लेकर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई एवं आमजन तक अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोलकर खड़े हो गये। इस स्वातन्त्र्य समर के बहुत से नायक थे। परन्तु किसी भी संघर्ष को सफल बनानेवाले आमतौर पर वे लोग होते है, जिनका नाम भी कोई ठीक से नहीं जानता, ये लोग चुपचाप अपना काम करते हैं और मातृभूमि पर न्यौछावर हो जाते हैं। लोग उनका यशगान नहीं गाते, परन्तु जानते हैं कि ऐसे अनजान नायक ही किसी देश को आजाद कराने के लिए नींव की ईंट बनते हैं।


सन् 1857 की क्रान्ति की शुरूआत राजस्थान में अजमेर के निकट नसीराबाद से हुई थी। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि ब्रिटिश सरकार ने अजमेर की 15वीं बंगाल इन्फेन्ट्री को नसीराबाद भेज दिया था; क्योंकि सरकार को इस पर विश्वास नहीं था। सरकार के इस निर्णय से सभी सैनिक नाराज हो गये थे और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रान्ति का आगाज़ कर दिया। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार ने बम्बई के सैनिकों को नसीराबाद बुलवाया और पूरी जाँच-पड़ताल करने को कहा। ब्रिटिश सरकार ने नसीराबाद में कई तोपें तैयार करवायीं। इससे भी नसीराबाद के सैनिक नाराज हो गये और उन्होंने विद्रोह कर दिया। विद्रोह इतना बढ़ गया कि सेना ने कई ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। साथ-ही-साथ उनकी सम्पत्ति को भी नष्ट कर दिया। इन सैनिकों के साथ अन्य लोग भी शामिल हो गये।



इस अपूर्ण क्रान्ति यज्ञ में राजसत्ता के सपूतों ने भी अपनी समिधा अर्पित की। देश के अन्य केन्द्रों की तरह राजस्थान में भी सैनिक छावनियों से ही स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत हुई। उस समय ब्रितानियों ने राजपुताने में कुछ सैनिक छावनियाँ बना रखी थीं। उनमें सबसे प्रमुख छावनी थी नसीराबाद की। अन्य छावनियाँ थीं- नीमच, ब्यावर, देवली (टोंक), एरिनपुरा जोधपुर) तथा खैरवाड़ा (उदयपुर) से 100 किमी. दूर इन्हीं छावनियों की सहायता से ब्रितानियों ने राजपुताने के लगभग सभी राजाओं को अपने वश में कर रखा था। चन्द राजघरानों के अतिरिक्त सभी राजवंश ब्रितानियों से सन्धि कर चुके थे। इन छावनियों में भारतीय सैनिक पर्याप्त संख्या में थे तथा रक्तकमल और रोटी का सन्देश उनके पास आ चुका था।


राजपुताने (राजस्थान) में क्रान्ति का विस्फोट प्रथम बार 28 मई, 1857 को हुआ था। राजस्थान के इतिहास में यह तिथि स्वर्णाक्षरों में लिखी जानी चाहिए तथा हर वर्ष इस दिन स्मृति-उत्सव मनाया जाना चाहिए। इसी दिन दोपहर दो बजे नसीराबाद में तोप का एक गोला दागकर क्रान्तिकारियों ने युद्ध का डंका बजा दिया था। सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए 31 मई, रविवार का दिन तय किया गया था, किन्तु मेरठ में 10 मई को ही स्वाधीन समर का शंख बज गया। दिल्ली में क्रान्तिकारियों ने ब्रितानियों के खिलाफ शस्त्र उठा लिए। यह समाचार जब नसीराबाद की छावनी में भी पहुँचा, तो यहाँ के क्रान्तिवीर भी गुलामी का कलंक धोने के लिए उठ खड़े हुए। नसीराबाद में मौजूद 15वीं नेटिव इन्फेन्ट्री के जवानों ने अन्य भारतीय सिपाहियों को साथ लेकर तोपखाने पर कब्जा कर लिया। इनका नेतृत्व बख्तावर सिंह नाम के जवान कर रहे थे। वहाँ मौजूद सैन्य अधिकारियों ने सेना तथा लाइट इन्फेन्ट्री को स्वाधीनता सैनिकों पर हमला करने का आदेश दिया। आदेश मानने के स्थान पर दोनों टुकड़ियों के जवानों ने अंग्रेज अधिकारियों पर बन्दूकें तान दीं। कर्नल न्यूबरी तथा मेजर स्पाटबुड को तत्काल वहीं ढेर कर दिया गया। लेफ्टिनेण्ट लॉक तथा कप्तान हाडी बुरी तरह घायल हुए। छावनी का कमांडर बिग्रेडियर फेनविक वहाँ से भाग छूटा और उसने ब्यावर में जाकर शरण ली। नसीराबाद छावनी में अब भारतीय सैनिक ही बचे। उन सब स्वतंत्र सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच किया।


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