‘शहीद' : जो आधी शताब्दी बाद भी जगाती है देशभक्ति का जज्बा

 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक महानायक अमर शहीद सरदार भगत सिंह के जीवन पर निर्मित फिल्म 'शहीद' का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। 1965 में बनी यह फिल्म अपने समय में लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन गई थी। सरदार भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त द्वारा लिखित कहानी को आधार मानकर दीनदयाल शर्मा ने पटकथा का सुन्दर एवं संतुलित लेखन किया। ‘शहीद' का निर्माण एस.राम. शर्मा के निर्देशन में हुआ। सरदार भगत सिंह के जीवन पर निर्मित कई फिल्मों 'शहीद' सर्वाधिक लोकप्रिय है। इससे पूर्व 1954 में 'शहीद-ए-आजम भगत सिंह का निर्माण हुआ था। जगदीश गौतम के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में नायक भगत सिंह की भूमिका में अभिनेता प्रेम अबीद ने अभिनय किया था। इसके बाद 1963 में ही के.एन. बंसल ने 'शहीद भगत सिंह नाम की फ़िल्म का निर्माण किया, जिसमें भगत सिंह का अभिनय विख्यात अभिनेता शम्मी कपूर ने किया था। 1974 में ओमी बेदी ने 'अमर शहीद भगत सिंह' नामक फ़िल्म बनायी।


इक्कीसवीं शती में सरदार भगत सिंह को केन्द्र में रखकर तीन फिल्मों को निर्माण किया गया। वर्ष 2002 में लगभग एक ही साथ भगत सिंह पर तीन-तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं- 1. 'द लीजेंड ऑफ भगत सिंह', 2. 'शहीद-ए-आजम' और 3. 23 मार्च 1931-शहीद'। इन तीनों फ़िल्मों में 'द लीजेंड ऑफ़ भगत सिंह' सर्वाधिक पसन्द की गयी। इनके अतिरिक्त 2006 में भगत सिंह से सम्बन्धित एक अन्य फ़िल्म 'रंग दे बसंती' भी बनी। इतनी फिल्मों से सरदार भगत सिंह के महत्त्व का अन्दाज़ा सहज रूप से लगाया जा सकता है।



भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जानेअनजाने असंख्य देशवासियों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। स्वाधीनता आन्दोलन में नरम दल, गरम दल के अलावा क्रान्तिकारी दल की भी जबर्दस्त भूमिका रही है। इस कड़ी में देश-विदेश में अपने कारनामों से अंग्रेजों और अंग्रेजी सरकार को दहला देनेवाले कई नाम हैं।


फ़िल्म की कहानी स्वाधीनता आन्दोलन के समय की है। बालक सरदार भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह, अंग्रेजी साम्राज्य का विरोध करते थे। पुलिस विद्रोही अजीत सिंह को गिरफ्तार कर ले जाती है। बालक भगत सिंह के बाल-मन पर इसका गहरा असर पड़ा। उन्होंने चाचा के पदचिह्नों पर चलने का दृढ़ निश्चय किया। भगत सिंह का पूरा परिवार देशभक्त था। उनके पिता सरदार किशन सिंह और माँ विद्यावती ने पारिवारिक दायित्व का निर्वाह बखूबी किया। स्वाधीनता आन्दोलन के बीच कई पड़ाव आये। इस क्रम में साइमन कमीशन का भारत आगमन हुआ। पूरे देश में इसका घोर विरोध हुआ, प्रदर्शन किए गए तथा आन्दोलन हुए। अंग्रेजसरकार ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी बरसायीं, जिसमें अनेक लोग घायल हुए। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर क्रूरतापूर्वक लाठियाँ बरसाई गयीं, जिसमें लालाजी का निधन हो गया। पूरे देश में शोक की लहर छा गयी। क्रांतिकारियों ने उनकी मौत का बदला लेने का संकल्प किया। क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आजाद एवं अन्य ने मौत का बदला लेने की योजना बनायी। पुलिस और खुफिया विभाग भगत सिंह एवं अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए परेशान थी। भगत सिंह ने चालाकी से अपना वेश बदलकर पगड़ी के स्थान पर हैट पहनना शुरू किया। यूरोपियन हैट वाला उनका रूप आज भी भारतीय जनमानस में लोकप्रिय है। दिल्ली एसेम्बली में बम विस्फोट करने के बाद वह नारे लगाकर वहीं मौजूद रहे जबकि वह आसानी से भाग सकते थे। इतना दुस्साहस उनके जैसा वीर क्रांतिकारी ही कर सकता है। उन पर चले मुकदमे (असेम्बली बम काण्ड और लाहौर दशहरा बम विस्फोट) के बाद उनको सजा-ए-मौत दी गयी। वह अपने साथियों के साथ प्रसन्नतापूर्वक भारतमाता के लिए फाँसी का फंदा चूमने के लिए तैयार हो गये।


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