भारत-जापान सम्बन्ध : रिश्तों का सूर्योदय

भारत-जापान सम्बन्धों का इतिहास बहुत प्राचीन है। ईसा से छह शताब्दी पूर्व जापान में बौद्ध मत के प्रसार के माध्यम से दोनों देश पहली बार एक-दूसरे के निकट आये। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने वर्ष 1916, 1924 एवं 1929 में जापान की यात्राएँ की थीं। रूस पर जापान की विजय (1905) ने भारत के स्वाधीनता सेनानियों को प्रेरणा दी। जापानी शासन की मदद से ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी।


जापान द्वारा द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के दौरान आत्मसमर्पण करने पर भारत ही ऐसा देश था जिसने जापान के प्रति गहरी सहानुभूति दिखाई थी। अंतरराष्ट्रीय सैन्य अधिकरण ने जब जापान के 28 युद्धबन्दियों को फाँसी की सजा सुनाई, तब भारत के न्यायाधीश राधाबिनोद पाल (1886-1967) ने इस निर्णय पर अपना कड़ा विरोध दर्ज किया था।


भारत-जापान सम्बन्धों के इतिहास को चार चरणों में विभक्त करके देखा जा सकता है।


1. उत्सुकतापूर्ण मित्रता का आरम्भ


2. राजनीतिक मतभेद के बावजूद । आर्थिक सहयोग


3. मजबूत आर्थिक सहयोग के संकेत


4. सामरिक निकटता



द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान आर्थिक तबाही, राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक, मानसिक असन्तोष के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में असमर्थ था। इसी दौर में भारत-जापान सम्बन्धों की शुरूआत मद्धिम ही सही किन्तु उत्सुकतापूर्ण रही। 1951 में शान्ति-सन्धि के तहत भारत ने सुदूर पूर्व आयोग सदस्य के नाते जापान के सम्बन्ध में लिए निर्णय में एक मित्रतापूर्ण रुख अपनाया तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों में जापान की भागीदारी को प्रोत्साहित किया था। अक्टूबर, 1959 में दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक समझौता हुआ। इन सबके बाद भी अनेक मुद्दों पर दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर टकराते नज़र आये। दोनों देशों की आर्थिक नीतियों को देखा जाये, तो जमीनआसमान का अन्तर नज़र आता है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान जापान की तटस्थता से भारत को निराशा हाथ लगी। 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी जापान ने भारत का समर्थन नहीं किया। 1971 की भारत-सोवियत मैत्री सन्धि के पश्चात् भारत को दी जानेवाली सहायता पर विराम लगा दिया। जब भारत ने 1974 में शान्तिपूर्ण उद्देश्य की भावना लेकर पोखरन-1 का परीक्षण किया, तब जापान ही था जिसने सबसे तीखी प्रतिक्रिया दी थी। कई राजनीतिक मतभेदों के बावजूद भी जून, 1976 में भारत-जापान के मध्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सहयोग का समझौता हुआ।


भारतीय आर्थिक उदारीकरण के दौरान दोनों देश आर्थिक सहयोग के रास्ते पर चलने लगे। 1985 में जापान ने आशियान देशों के साथ प्लाजा समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसका मुख्य कारण शायद यह रहा हो कि व्यापार के लिए दक्षिण एशिया में विशेष रूप से भारत एक लाभकारी क्षेत्र नज़र आने लगा। इस अवधि में दक्षेश की स्थापना के कारण दोनों देशों में मतभेद की स्थिति भी रही, लेकिन इस काल में भारतजापान आर्थिक सम्बन्धों की नींव पड़ी। विगत दो दशक से जापान का भारत के प्रति नजरिया बदल रहा है, जिसका मुख्य कारण चीन की दादागिरी को भी माना जा सकता है। राजनीति व कूटनीति के गलियारों में एक कहावत भी मशहूर है कि शत्रु का शत्रु मित्र होता है। चीन को समझना होगा कि एक और एक दो ही नहीं, ग्यारह भी होते हैं। इस सन्दर्भ में ‘चीन आँख मूंदे बैठा है आने वाली शामत से, घायल शेर वार करता है अपनी दोगुनी ताकत से'- सटीक बैठती पंक्तियाँ हैं।


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