चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा

हा'ल ही में भारतीय सेना के उप प्रमुख शरत चंद ने एक सम्मलेन के दौरान कहा कि उत्तर की तरफ़ चीन है, जिसके पास विशाल आबादी, भारी संसाधन तथा एक पूर्णकालिक बड़ी सेना है। हमारे बीच हिमालय होने के बावजूद आनेवाले वर्षों में चीन हमारे लिए खतरा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सैन्यीकरण के क्षेत्र में चीन, अमेरिका के साथ मुकाबला कर रहा है। सेना उप-प्रमुख ने कहा, 'दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते यह अमेरिका को पछाड़ने की दौड़ में शामिल है।'


स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी हालिया आँकड़ों के मुताबिक, अमेरिका रक्षा के क्षेत्र में दुनिया का सर्वाधिक खर्च करनेवाला देश है। अमेरिका का रक्षा-खर्च साल 2015 के मुकाबले 2016 में 1.7 फीसदी बढ़ोत्तरी के साथ 611 अरब डॉलर रहा, जबकि चीन का रक्षा खर्च इस अवधि में 5.4 फीसदी बढ़कर 215 अरब डॉलर रहा। सर्वाधिक सैन्य खर्च के मामले में दुनिया में भारत का पाँचवाँ स्थान है, जिसने रक्षा पर साल 2016 में 8.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ 55.9 अरब डॉलर खर्च किया, लेकिन रक्षा-खर्च के बड़े हिस्से का खुलासा ही नहीं किया है।



वर्तमान सन्दर्भ में यदि हम राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी शक्तियों की बात करें, तो निःसन्देह देश की सुरक्षा और संप्रभुता को सबसे बड़ा खतरा चीन से है। यह खतरा 1962 के समय से निरंतर बना हुआ है, लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने सदैव पाकिस्तान को भारत के लिए बड़े खतरे को तौर पर दर्शाया एवं भारत के पद, कद और प्रतिष्ठा को कम करते हुए सदैव भारत-पाकिस्तान कोण को ही वरीयता दी। जिस पाकिस्तान को हम 3 मुख्य युद्धों एवं कारगिल-जैसे छद्म युद्ध में हरा चुके थे, जिससे बहुत पहले हम परमाणु शक्ति प्राप्त कर चुके थे, जिसका परमाणु-कार्यक्रम भी उधार का था, जो हमसे सामाजिक, आर्थिक, सामरिक, वैज्ञानिक और हर दृष्टि से बेहद पिछड़ा हुआ था, हमारे देश की पूर्ववती सरकारों ने भारत को उस पाकिस्तान के समकक्ष रख उससे देश की तुलना की, जो सही मायनों में एक देश है ही नहीं, मात्र भूमि का एक टुकड़ा है।


इस मामले में निश्चित ही देश मोदी- सरकार का आभारी रहेगा कि उन्होंने विश्वस्तर पर भारत की छवि को एक मजबूत, उभरते हुए शक्तिशाली देश के रूप में प्रस्तुत किया। आज अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया से लेकर समस्त यूरोपीय देश भारत की शक्ति को पहचान रहे हैं और उसे महाशक्ति का दर्जा दे रहे हैं।


डोकाला या डोकलाम-विवाद इसकी ताजा झलक थी। जिस सहनशीलता एवं परिपक्वता से भारत ने इस पूरे मुद्दे का संयम से समाधान निकाला, उससे भारत की साख विश्व में कई गुणा बढ़ गई है। चीनी सरकार एवं मीडिया की तमाम गीदड़भभकियाँ न तो भारत को विचलित कर सकीं और न ही झुका सकीं। डोकलाम-विवाद में जिस तरह हमने अपने छोटे पड़ोसी भूटान के लिए अडिगता दिखाई, उसके दक्षिण एशिया की राजनीति में दूरगामी परिणाम भारत के पक्ष में निश्चित ही बेहद सुखद रहेंगे और ऐसे छोटे देशों का भारत के प्रति सम्मान बढ़ेगा। वर्तमान समय में जब चीन का 28 देशों के साथ सीमा विवाद चल रहा है, ये सभी देश न केवल भारत के प्रति अपना समर्थन जताएँगे, बल्कि भारत को एशिया की एक महाशक्ति के रूप में देखेंगे जो चीन के दादागिरी को रोक सकती है। जापान के साथ हमारी बढ़ती मित्रता, म्यांमार में प्रधानमंत्री मोदी का ब्रिक-सम्मलेन के बाद 3 दिन का दौरा, ब्रिक-सम्मलेन में भारत की कई मांगों को स्वीकृति मिलना, डोकलाम-विवाद के समय नेपाल के प्रधानमंत्री का तुरत-फुरत में भारत आनासब इसी कड़ी में ही जुड़ता है। अपने पड़ोसियों के प्रति सहिष्णुता का, भारत का एक लम्बा इतिहास है जिससे लगभग सभी परिचित हैं, और मोदीजी के नेतृत्व में हम अपनी बात ज्यादा सक्षमता से अन्य देशों को समझा पा रहे हैं।


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