निगोडी नियति

जब वह बस से उतरा तो सूर्य अस्ताचल को जा रहा था। उसे ध्यान था शीघ्र ही अंधेरा हो जायेगा। पैदल चलने का और वह भी ऊँचे-नीचे बीहड़ मार्ग से, उसे अब अभ्यास नहीं रहा था। वे दिन और थे जब प्रतिदिन 6 कोस चलकर भी वह थकान का अनुभव तक नहीं करता था। बीस वर्ष के लगभग हुए होंगे, एक दिन तो वह ब्राह्म मुहूर्त में चार बजे घर से गाय का दूध निकालकर चला था और 15 मील दूर अलीगढ़ कचहरी का काम पूरा कर, दिन छिपे बाद देर से घर वापिस आकर उसने ही गाय दुही थी।


खेत की मेंढ़ पर बढ़ते उसके पैरों के बीच से अचानक एक मेढ़क उछलकर दूसरी ओर छपाक से पानी में जा कूदा। सूर्य अब पूरी तरह डूब चुका था। बायीं ओर वाले आम के बाग में पक्षी अपने-अपने नीड़ में विश्राम करने चले गये लगते थे। यह बाग गाँव के सबसे बड़े जमींदार सेठ रामलाल का था। इसके पहले नम्बर में केवल रटोल आम था और रजबाहे के साथवाले हिस्से में सरौली तथा दशहरी। गंगा ने गर्दन तनिक ऊँची कर बाग की तरफ देखा। बरसात का महीना है, ज़रूर आम लदे पड़े होंगे। अब तो माली शायद रोटी बना रहे होंगे। उसने ध्यान से देखा, परन्तु रोशनी नज़र नहीं आयी। हो सकता है लालटेन का तेल समाप्त हो गया हो या दिनभर के थके-मांदे शहर से लौटकर आये माली हुक्का गुड़गुड़ा रहे हों। मच्छरों की वजह से लालटेन जलाई ही न हो। अंधेरा गहरा था, अमावस की रात थी न। दोनों ओर के खेतों में बरसात का पानी ठहर गया था। मेढ़कों की टर्र-टर्र के अतिरिक्त सबकुछ खामोश था। तो भी उसे भला लग रहा था।



क्या हुआ यदि गड्ढे में अचानक पैर पड़ जाने से जूते मिट्टी से लथपथ हो गये और कीचड़ की कुछ छींटे उसकी धोती और कुर्ते को गंदा कर गई। कितने दिन बाद अवसर मिला है गाँव की ओर मुँह करने का! तीन कोस की दूरी होती ही क्या है। महन्त के खेत तो आ ही गये हैं। इस जगह तो वह प्रतिदिन अपनी गाय-भैंस चराने आया करता था। इसी खेळ (पशुओं को धर्मार्थ पानी पिलाने और नहलाने के लिए जल से भरी लम्बी हौदी) में तो वे पानी पीती थी। कौन-सा दिन होता था जब यहाँ दगड़े के किनारे दोनों तरफ खड़े जामुन के पेड़ों से टपकी जामुन न खाई जाती हों। अंधेरे में भी उसे लगा जामुन टपक रहीं हैं। खेत की मुंडेर के परली तरफ राख में से आग झाँख रही थी। भरोसे शायद यहाँ नहीं दीखता। रोटी- पानी के लिये गाँव की ओर गया होगा, वरना भरोसे हो और हुक्के की गुड़गुडाहट न हो। गंगा की इच्छा हुई दो मिनट रुककर सांस ले ले। परन्तु देर करने से क्या लाभ? चार फर्लाग ही तो ओर चलना शेष है। फिर कल सुबह दिशा-जंगल के लिए इधर आना ही है। 4-5 मिनट में क्या वह सुनेगा और क्या भरोसे सुनायेगा। इतनी देर में तो हुक्का भी गर्म नहीं होगा।


गलियारे में पड़ी चारपाइयाँ खर्राटे भर रहीं थीं। गाँव में लोग प्रायः जल्दी ही सो जाते हैं। इधर कुत्ता क्या भौंका, सारे गाँव के कुत्ते ही जैसे दाँत किटकिटाने लगे। गंगा मुस्करा दिया- ये बेचारे क्या जानें मैं न चोर हूँ, न कोई अज़नबी। तो क्या मेघराज के कालू को आवाज दें। हाँ! मेघराज का ही तो मकान है। अरे पक्का बना लिया दीखता है। दरवाजे की महराब तो बड़े जंचाव की डाली है। कालू को आवाज़ दूंगा तो अभी पूँछ हिलाता । हुआ आयेगा। बड़ा हिला हुआ था उसके साथ। तड़के अंधेरे पैरों की आवाज सुनी नहीं कि लपलप करता पैरों से चिपट जाता था। मैं भी तो आधा सेर आटे की दो रोटियाँ उसी को चढ़ाता था। परन्तु अब आवाज़ दी तो क्या दूंगा उसे खाने को? थैले में केले हैं, रोटी तो नहीं। अच्छ! रामू दादा का, बल्ले का, अल्लाह बख्श का; ये तो सभी के मकान पक्के बन गये हैं। तो क्या अगर मैं 7-8 वर्ष से यहाँ नहीं आया, तो इनके मकान कच्चे ही पड़े रहते? गंगा सोचता जाता था, आगे बढ़ता जाता था।


वह अपने पुराने मकान का ताला खोलकर सो रहे या चाचा बीरबल को जगाकर अपने आने की सूचना दे दें! बता देना अच्छा है। उसके पीछे उसके मकान की देखभाल उसी ने रखी है। अचानक बिना बताये ताला खोलना बीरबल को चौंकाना होगा। उसने राम-राम की। बीरबल शायद गहरी नींद में था। तभी उसने राम-राम का जवाब नहीं दिया, उठा और गंगा को गले लगा लिया। जाने कितनी रात गये तक दोनों बातें करते रहे। सूर्य निकलने में कोई दो घंटे ही बचे होंगे। गंगा चारपाई पर पड़ा अलसाई आँखों से आकाश की ओर देख रहा थाकाले-काले बादल चारों ओर तैरते दिखाई दे रहे थे। सावन की सुबह थी। हवा बड़ी सुहानी लग रही थी। शहर में इतने दिन रहते हुए हो गये थे, परन्तु सुबह-सवेरे उठने की उसकी आदत पहले जैसी ही बनी हुई थीगाँव में रहता था तो हमेशा दो गाय-भैंस रखता था। भैंस का दूध दूधिया ले जाते थे, गाय का उसके छोटे भाई करतार के बच्चों के काम आ जाता था। उसका अपना कोई परिवार था नहीं। विवाह तो हुआ था परन्तु पत्नी विवाह के 7 वर्ष बाद ही निःसन्तान स्वर्ग सिधार गई थी। गाँववालों ने गंगा से दूसरा विवाह करने को बहुत कहा, परन्तु वह नहीं माना। वह जानता था विवाह की उम्र उसकी नहीं, करतार की थी। 


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