‘सॉफ्ट राष्ट्र’ और ‘सॉफ्ट शक्ति' के बीच झूलता भारत

भारत की समस्या यह है कि हमने कभी-भी अपने पर की गई कार्रवाई के खिलाफ किसी देश पर कोई भी कीमत नहीं थोपी है।' भूतपूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सतीश चन्द्र ने ये शब्द कुछ वर्ष पूर्व कहे थे। ‘बस हम चुप रहते हैं और जो कुछ भी हमारे साथ होता है, उसे स्वीकार कर लेते हैं।' सुभाष चन्द्र के इन शब्दों में भारतीय उच्च वर्ग के लोगों और आम आदमी की भावनाओं की गूंज सुनाई पड़ती है। बहुत-से भारतीय यह मानते हैं कि देश के बाहरी शत्रु, प्रतिद्वंद्वी और दोस्त कोई भी हमें धौंस दिखा सकते हैं, क्योंकि सुभाष चन्द्र के शब्दों में हम ‘सॉफ्ट राष्ट्र' हैं। इसके अलावा यदि साफ़-साफ़ बात की जाए तो अधिकांश भारतीय भी यही सोचते हैं।



 सन् 1960 में सर 1990 के अंत तक भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर सुभाष चन्द्र का यह मूल्यांकन बिल्कुल सही प्रतीत होता है। बहरहाल इतना अंतर ज़रूर पड़ा है कि अब भारतीय ‘चुप नहीं बैठते । शीत युद्ध के अंत तक वाशिंगटन सी और अन्य स्थानों पर बसे उच्च वर्ग लोग भारत की विदेश-नीति के बारे में नकारात्मक और यही घिसी-पिटी धारणा ही रखते थे और भारत को एक ‘सॉफ्ट राष्ट्र' मानते रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि भारत कानूनी ढर्रे पर चलनेवाला एक दब्बू देश है और इसे विश्व-मंचों पर पदासीन कठोर रुखवाले और वास्तविकता में जीनेवाले देश गंभीरता से नहीं लेते हैं।


लेकिन शीत युद्ध को समाप्त हुए दो दशक से अधिक समय बीत गया है और 1990 में भारत की छवि के बारे में सही प्रतीत होनेवाला यह विश्लेषण आज पुराना लगने लगता है। एक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने निश्चय ही यह पाया है कि लगभग एक दशक से भारत की विदेश नीति का आधार गुटनिरपेक्ष आंदोलन न होकर नाटकीय रूप में दावोस हो गया है। लेकिन कहीं गहरे स्तर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी विदेश नीति के अपने लक्ष्यों को बदल लिया है। विश्वभर के देश और यहाँ तक कि अमेरिका भी बुश/चेनी परीक्षण के बाद अब 'सॉफ्टनेस' को 'कमजोरी' या 'कठोरता’ को 'शक्ति' का पर्याय नहीं मानते। इसके बजाय प्रोफेसर जोजफ न्ये के नपे-तुले शब्दों में, ‘सॉफ्ट शक्ति' को जुटाने के लिए वे सक्रिय रूप से कार्य करने के लिए भी उत्सुक हैं।


इसलिए भारत के राष्ट्रीय ब्राण्ड मैनेजरों' के लिए आज मुख्य चुनौती सुभाष चन्द्र के शब्दों में कथित परंपरागत ‘सॉफ्टनेस' को छोड़ने को नहीं है, बल्कि उसमें अत्यधिक सुधार करने से बचने की है।


सॉफ्ट शक्ति क्या है?


शक्ति वह क्षमता है जिससे आप दूसरों को अपनी इच्छानुसार वह सब कुछ करने को भी मजबूर कर देते हैं जिसे वे अन्यथा न भी करते। शक्ति के मूलतः दो रूप हैं : कठोर और सॉफ्ट। उनके बीच का अंतर उनकी आपेक्षिक क्रूरता में निहित नहीं है। बल्कि उनकी आपेक्षिक यथार्थता में निहित है। किसी को नष्ट करने की धमकी देने के बजाय उसे आर्थिक प्रलोभन देना भी शक्ति का ‘कठोर' रूप ही है। इसके विपरीत ‘सॉफ्ट' शक्ति का वह रूप है जो अमूर्त होता है। इसका संबंध उससे नहीं जिस पर आपका स्वामित्व है, बल्कि उससे हैजिसका आप प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे शब्दों में अमूर्त या सॉफ्ट शक्ति वह क्षमता है जिससे आप दूसरों को अपनी इच्छानुसार काम करने पर मजबूर कर देते हैं, क्योंकि आपको देखने का उनका नजरिया ही वही है। किसी राष्ट्र की अमूर्त शक्ति की तुलना किसी फिल्मी सितारे की उस शक्ति से की जा सकती है जिससे वह लोगों को किसी खास ब्राण्ड के किसी भी साबुन या फ्राइड चिकन को खरीदने के लिए विवश कर सकता है। अमूर्त शक्ति का एक और हल्का पक्ष भी है जिसे मैं ‘अमूर्त असहायता' का नाम देता हूँ। अमूर्त असहायता एक ऐसी विडम्बनापूर्ण स्थिति है जिसमें आप असहाय होकर दूसरों को देखते रहने के लिए विवश होते हैं और उन्हें देखने के कारण ही आप वह सब कुछ करने पर विवश होते हैं जिसे आप नहीं करना चाहते। राष्ट्र की अमूर्त असहायता उन फ़िल्मी सितारों की तरह होती है, जिनसे आज के पत्रकार कुछ भी कहलवाने में कामयाब हो जाते हैं।


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