महर्षि वाल्मीकि संस्कृत-साहित्य जगत् में आदिकवि के रूप में सुप्रतिष्ठित एवं सुपरिचित हैं। उनका तपःप्रभाव लोकप्रसिद्ध है। संस्कृत-साहित्य में आदिकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को सारा संसार एक श्रेष्ठ कवि के रूप में अत्यन्त गौरव प्रदान करता है। ब्रह्मा तक उनको बहुमान की दृष्टि से देखते थे। जैसे वाल्मीकीयरामायण (बालकाण्ड, 2.26) में कहा गया है
वाल्मीकये महर्षये सन्दिदेशासनं ततः।
वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी का यह दिव्य वरदान मिला था कि श्रीरामायण में वे जो लिखेंगे, उनमें से एक बात भी मिथ्या नहीं होगी
न ते वागनृता काव्ये काचिदत्र भविष्यति।
-वही, बालकाण्ड, 2.35
उपर्युक्त वाक्य से यह सिद्ध होता है कि रामायण एक सत्यार्थ-प्रतिपादक काव्य है। तथा भारतीय संस्कृति के मुख्य तत्त्वों को प्रतिपादित करनेवाला यह काव्य महर्षि वाल्मीकि का अमर काव्य है। ऋषिप्रवर वाल्मीकि वेदादि सर्वशास्त्र के ज्ञाता तथा महान् तत्त्ववेत्ता थे। अतः उनका यह महाकाव्य सम्पूर्ण वेदार्थों की सम्मति के अनुकूल है। श्रीरामायण का महत्त्व इस बात से स्पष्ट होता है कि इसको वेद का रूपान्तर कहकर प्राचीनों ने प्रशंसा की है। जैसे महाभारत को ‘पञ्चमवेद' कहकर महत्त्व दिया जाता है, वैसे ही इसको वेद का रूपान्तर कहकर महत्त्व दिया जाता है। जैसे कहा गया है
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च सम्मतम्।
यः पठेद् रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
-वही, बालकाण्ड, 1.98
अर्थात्, वेदों के समान पवित्र, पापनाशक और पुण्यमय इस रामचरित को जो पढ़ेगा, वह सब पापों से मुक्त हो जायेगा। साथ- साथ आयु बढ़ानेवाली इस वाल्मीकीय- रामायण कथा को पढ़नेवाला मनुष्य मृत्यु के अनन्तर पुत्र, पौत्र तथा अन्य परिजन वर्ग के साथ ही स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होगा। ब्रह्मजी के शुभ आशीर्वाद से महर्षि वाल्मीकि को तथा उनके द्वारा विरचित रामायण काव्य को संसार में सुयश, कीर्ति एवं गौरव प्राप्त हुए। यह सुप्रसिद्ध श्लोक स्पष्ट कहता है
यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले।
तावद् रामायण कथा लोकेषु प्रचारिष्यति॥
वही, बालकाण्ड, 2.36-37
अर्थात्, इस संसार में जब तक नदियों और पर्वतों की सत्ता रहेगी, तब तक संसार में रामायण कथा का प्रचार-प्रसार होता रहेगा।
अब यह प्रश्न उठता है महर्षि वाल्मीकि ने इस अनुपम ग्रन्थ का प्रणयन क्यों किया? क्या अपने महान् आदर्श को प्रदर्शित करने के लिए या फिर समग्र संसार के मनुष्यों को समुचित शिक्षा देने के लिये राम, लक्ष्मण, सीता आदि सत्पात्रों के द्वारा इस श्रेष्ठ ग्रन्थ की रचना की? केवल जनकल्याण ही उनका मुख्य उद्देश्य था; क्योंकि ऋषि लोग हमेशा मंगल की कामना करते हैं- भद्रमिच्छन्ति ऋषयः। वाल्मीकि भी एक ऋषि थे, अतः वे भी प्राणियों का दुःख, कष्ट को समाप्त करके उनको सुख, शान्ति प्रदान करने के लिए चिन्तित थे। इस महान् पवित्र लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए ब्रह्मा जी ने उनको रामायण काव्य रचना करने के लिए दिव्य वरदान भी दिया, जिसके फलस्वरूप वे सर्वश्रेष्ठ आर्ष काव्य रामायण लिखने में समर्थ हुए।
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