भारतीय डाक संवेदनाओं के साथ सदियों का सफर...

भारत में प्राचीन काल से ही संचार-माध्यमों की आधारभूत आवश्यकता रही। सदियों से मानव समाज ने संचार व अभिव्यक्ति के लिए कई विशेष माध्यमों को भी अपनाया। प्रागैतिहासिक तथ्यों को देखा जाए, तो पायेंगे कि मध्यप्रदेश के भीमबेटका में अनेक चित्र पाए गये। यह संचार व अभिव्यक्ति का आदिम स्वरूप था। वैदिक काल में यह व्यवस्था वाचिक रूप में मिलती है। द्वितीय नगरीय क्रान्ति या यूं कहा जाये कि मौर्य काल के विशाल साम्राज्य व केन्द्रित प्रशासन की सफलता का श्रेय कुशल व प्रभावशाली गुप्तचर एवं सूचना-संचार प्रणाली का विकास था। मौर्य-काल के इतिहास से ज्ञात होता है कि यह व्यवस्था संगठित थी जो सूचनाओं के माध्यम से प्रशासकीय नियन्त्रण का एक तंत्र थी। इन सूचना-वाहकों को या गुप्तचरों के प्रमुख को सर्पमहामात्य कहा जाता था। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के संदेशवाहकों एवं गुप्तचरों का उल्लेख मिलता है- 1. संस्था और 2. संचरा।



संस्था 5 प्रकार के थे- 1. कापटिक रूप, 2. उदास्थित, 3. गृहपतिक, 4. वैदेहक और 5.तापस। संचरा में भ्रमणशील गुप्तचर आते थे। इसके 4 प्रकार थे- 1. सत्री, 2. तीक्ष्ण, 3. रशद और 4. परिव्राजिका।।


कुछ ऐसे भी थे जो अन्य देशों में नौकरी कर लेते और सूचनाएँ भेजते थे। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि गुप्तचरों द्वारा यह व्यवस्था प्रशासनिक क्षेत्र तक ही सीमित थी। सिकन्दर ने भारत से यूनान तक संचार की पुख्ता व्यवस्था की थी।


सल्तनत काल की प्रशासनिक-व्यवस्था साम्राज्य के विभिन्न भागों में संपर्क स्थापित करनेवाली डाक-पद्धति के कारण सुगम हो गयी थी। अलाउद्दीन ने घुड़सवारों व लिपिकों को डाक चौकियों पर नियुक्त किया, जो सुल्तान को समाचार पहुचाते थे। अलाउद्दीन की डाक-सेवा पर्याप्त कुशलता से कार्यरत थी और सुल्तान के विभिन्न नियमों को लागू करने में सहायक होती थी। सुल्तान को विद्रोह तथा युद्ध-अभियानों के समाचार शीघ्रता के साथ प्राप्त होते थे। डाक-प्रणाली को पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने का श्रेय गयासुद्दीन तुगलक (1321-1325) को प्राप्त है। मुस्लिम शासनकाल में इस व्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न शासकीय विभाग मिलते हैं :


दीवान-ए-इंशा : इस विभाग का प्रमुख कार्य शाही पत्रों को तैयार करना था। सुल्तान के आदेशों एवं व्यक्तिगत पत्रों का प्रारूप यही विभाग तैयार करता था।


दीवान-ए-रसालत : यह विभाग पड़ोसी राज्यों को भेजे जानेवाले पत्रों का प्रारूप तैयार करता था।


दीवान-ए-बरीद : डाक विभाग बरीद-ए-मुमालिक नामक मंत्री के अधीन था। इसके अधीन गुप्तचर, संदेशवाहक एवं डाक-चौकियाँ होती थीं। इस काल के डाक-विभाग की कार्यकुशलता का विवरण मोरक्कोनिवासी इल्नबतूता (1304-1368) ने दिया है। कई इतिहासकारों का मानना है कि 1541-45 ई.में शेरशाह सूरी ने भी डाक विभाग की स्थापना की थी।


अकबर (1556-1605) के शासनकाल के प्रस्तुत विवरणों से शाही डाक-व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है


दरोगा-ए-डाकचौकी : यह मुगलकाल के डाक विभाग का प्रधान अधिकारी होता था। इसकी सहायता के लिए वाकया-नवीस, सवानेह निगार व खुफ़िया नवीस तथा हरकारे नामक कर्मचारी होते थे। इनकर्मचारियों की सहायता से वह प्रान्तों के विभिन्न भागों में होनेवाली घटनाओं की जानकारी एकत्र कर उसकी सूचना बादशाह को प्रेषित करते थे। प्रान्तों के विभिन्न भागों में डाक ले जाने की व्यवस्था भी दरोगा- ए-डाकचौकी ही करता था।


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