डाक-टिकटों का चित्र-विचित्र दुनिया

दुनिया का पहला डाक टिकट



पेनी ब्लैक, दुनिया की पहली चिपकनेवाली डाक टिकट थी जिसका प्रयोग सार्वजनिक डाकप्रणाली में किया गया था। इसे ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की संयुक्त राजशाही द्वारा 1 मई, 1840 को जारी किया गया था, ताकि इसका प्रयोग उसी वर्ष 6 मई से किया जा सके। इस पर इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया का चित्र छपा था। लंदन के सभी डाकघरों को इसकी आधिकारिक खेप समय से प्राप्त हो गयी, लेकिन यूनाइटेड किंगडम के बाकी हिस्सों में इस नयी डाक टिकट के उपलब्ध होने तक लोग डाकसेवाओं का नकद भुगतान ही करते रहे। कुछ डाक-कार्यालय जैसे कि बाथ ने, अनधिकृत रूप से टिकट की बिक्री 2 मई से ही शुरू कर दी।


 एक बार डाक टिकट के प्रयोग के बाद इस पर लाल स्याही से निरस्त करने का चिह्न अंकित किया जाता था। हालांकि इसे देखना कठिन था और यह आसानी से दूर किया जा सकता था। इस प्रकार की प्रयुक्त डाक टिकटें बहुत दुर्लभ तो नहीं हैं, फिर भी इनका बाजार मूल्य, कुछ पाउंड से लेकर 1,000 ब्रिटिश पाउंड के बीच है।


सिंध डाक



सिंध डाक, एक प्राचीन भारतीय डाक प्रणाली और एशिया की पहली चिपकनेवाली, लाख-निर्मित डाक टिकट थी, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान उसके अन्तर्गत आनेवाले समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता था। यह डाक टिकट जुलाई, 1852 में सिंध के चीफ कमिश्नर बार्टल फ्रेरे ने जारी किया था। डाक टिकट का नाम ‘सिंध डाक' तत्कालीन भारत के सिंध इलाके में प्रयोग में आनेवाली डाक-प्रणाली, जिसे हिंदी में डाक कहा जाता है, के नाम पर रखा गया था जिसमें हरकारे डाक लेकर दौड़ा करते थे और उनका भुगतान उनके द्वारा तय की गई कुल दूरी और उठाई गई कुल डाक के अनुसार किया जाता था। इस डाक-टिकट के ठप्पे का निर्माण लन्दन की बैंकनोट-निर्माता कम्पनी ‘डे ला रू' ने 1852 में किया था। आधा आने मूल्यवाले ये डाक टिकट 1866 तक उपयोग में थे। सम्प्रति यह डाक टिकट अत्यन्त दुर्लभ है और सौ से भी कम उपब्ध है। इसकी कीमत आज 10 लाख रुपये तक ऑकी गई है।


ईस्टइण्डिया कम्पनी द्वारा जारी भारतीय डाक-टिकट


दिनांक 01 अक्टूबर, 1854 को पहले अखिल भारतीय डाक टिकट जारी हुए थे।


स्वाधीन भारत के डाक-टिकट



स्वाधीन भारत का पहला डाक टिकट साढ़े तीन आना राशि का था। इस पर 'जय हिंद' शब्द अंकित थे। उस समय भारतीय मुद्रा में आना का प्रचलन था, साढ़े तीन आना यानि चौदह पैसा। यह डाक टिकट 21 नवम्बर, 1947 को जारी हुआ था। इस टिकट पर राष्ट्रध्वज का चित्र लगा हुआ था। डाक टिकट की यह राशि 1947 तक आना में ही रही, जब रुपए की कीमत आना की जगह बदलकर '100 नये पैसे' में कर दी गयी। वैसे 1964 में पैसे के साथ जुड़ा ‘नया शब्द भी हटा दिया गया। 1947 में एक रुपया 100 पैसे का नहीं बल्कि 64 पैसे यानि 16 आने का होता था और इकन्नी, चवन्नी और अठन्नी का ही प्रचलन था। 


पन्द्रह अगस्त, 1947 को नेहरू जी ने आजादी के बाद, लाल किले से अपने पहले भाषण का समापन 'जय हिंद' से किया। डाकघरों को सूचना भेजी गई कि नये डाक टिकट आने तक, चाहे अंग्रेज़ राजा जॉर्ज की मुखाकृतिवाले डाक टिकट उपयोग में आए, लेकिन उस पर 'जय हिंद' की मुहर अवश्य लगाई जाए। 31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही।


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