‘गो-विशेषांक

भारत का हिंदू समाज गौ को परम्परा से माता मानता आया है, परन्तु गौ केवल हिंदुओं की माता ही नहीं है। अपितु गौवें समस्त विश्व की माता हैं- गावो विश्वस्य मातरः। गाय समान रूप से विश्व के मानवमात्र का पालन करनेवाली माँ है। गो के शरीर में 33 करोड़ देवता निवास करते हैं, इसलिए एक गाय की पूजा करने से स्वयमेव करोड़ों देवताओं की पूजा हो जाती है। माताः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः, अर्थात् गाय सब प्राणियों की माता है और प्राणियों को सब प्रकार के सुख प्रदान करती है। गाय को किसी भी रूप में सताना घोर पाप माना गया है। ऋग्वेद में गाय को अघ्न्या कहा है, यानि जो मारी न जाये। अथर्ववेद में गाय को धेनुः सदनम् कहा गया है - गाय संपत्तियों का घर है।



शिवाजी महाराज को समर्थ रामदास की कृपा से ‘गोब्राह्मणप्रतिपालक' उपाधि प्राप्त हुई। दशम गुरु गोविन्द सिंह ने ‘चण्डी दी वार' में दुर्गा भवानी से गो-रक्षा की मांग की है यही देहु आज्ञा तुर्क गाहै खपाऊँ। गऊघात का दोष जग सिङ मिटाऊं। यही आस पूरन करो तू हमारी, मिटे कष्ट गौअन, छटै खेद भारी॥ स्वामी दयानन्द सरस्वती ‘गो करुणानिधि' में कहते हैं, 'एक गाय अपने जीवनकाल में 8,10,660 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है, जबकि उसके मांस से 50 मांसाहारी केवल एक समय अपना पेट भर सकते हैं।' गाँधीजी ने कहा है‘गोरक्षा का प्रश्न स्वराज्य के प्रश्न से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। लोकमान्य टिळक ने कहा था कि स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद कलम की एक नोक से गोहत्या पूर्णतः बंद कर दी जाएगी। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था, 'भारत में गोपालन सनातन-धर्म है। पूज्य देवराहा बाबा कहते थे, ‘जब तक गोमाता का रुधिर भूमि पर गिरता रहेगा, कोई भी धर्मिक तथा सामाजिक अनुष्ठान सफल नहीं होगा।' भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार कहते थे, जब तक भारत की भूमि पर गोरक्त गिरेगा, तब तक देश सुख-शांति और धन-धन्य से वंचित रहेगा।' जयप्रकाश नारायण जी कहते थे, ‘हमारे लिए गोहत्या बन्दी अनिवार्य है। 1857 का स्वातंत्र्य संग्राम गोरक्षा के निमित्त ही लड़ा गया था।


गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। वह सृष्टि का आधार है। गाय के दूध से कई तरह के उत्पाद बनते हैं। गोबर से ईंधन व खाद मिलती है। इसके मूत्र से दवाएँ व उर्वरक बनते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं। गाय के दूध में रेडियो विकिरण (एटामिक रेडिएशन) से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है। जिन घरों में गाय के गोबर से लिपाई-पुताई होती है, वे घर रेडियो विकिरणों से सुरक्षित रहते हैं। गाय कैसा भी तृण पदार्थ यहाँ तक कि विषैला भी खाए, फिर भी उसका दूध शुद्ध होता है।


दुर्भाग्य से अपने देश में गोहत्या और गोमांस-निर्यात चरम पर है तथा इसकी रोकथाम के लिए कोई अखिल भारतीय कानून नहीं है। कुछ ही राज्यों ने अपने-अपने यहाँ गोहत्या-बन्दी का कानून बनाया है। तुष्टीकरण की नीति के चलते गो को हिंदुओं की माँ मानकर उसके समूल नाश का राजनीतिक कुचक्र चल रहा है, जो पुण्यभूमि भारत को विनाश की ओर ले जा रहा है।


गो के धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक महत्त्व पर विशेष सामग्री समेटे ‘दी कोर' का आगामी नवम्बर, 2017 अंक 'गो-विशेषांक' के रूप में प्रकाशित होगा।