तुम्हारे खत में नया इक सलाम किसका था

वह दौर कुछ और था जब अलसाई आँखों से नींद के पहरे हटते और "आँख खुलती थी तो सूर्य प्राची से निकलकर अंगनाई को तरुण कर जाता था, पखेरुओं के पाँखों पर भोर की लाली के साथ ही पूरा आकाश उतर आता था, सरोवरों में खिले पद्म-पद्मजा की प्रातः अभ्यर्थना हेतु स्वयमेव पवन के संग मादक अंगड़ाई ले झुक जाते थे, वेग से भागती धाराएँ स्नेहभीगी तटों की रेत पर आत्मीय पदचिह्नों को खोजने, ठिठककर कुछ पल निश्चल ठहर जाती थीं, पनघटों के मौन को अपनी अंजुरियो में समेट वाणी देतीं, नववधुएँ थिरकते कदमों से घड़े में भर घर ले जाती थीं, दालान के नीम पर चहकते कौओं से अतिथि के आगमन की सूचना मिलती और सुदूर परदेश में बैठे प्रियतम की बाट जोहती दो आँखे या सीमा पर तैनात बेटे के खत के इंतजार में पिघली माँ की दो अंखियाँ खाकी वर्दी वाले डाकिये को देवता मान चिट्ठी पढ़वाने की अभ्यर्थना करती थी। जब से आंगन घरों से लुप्त हो गए, दालान सिमट गए, वातानुकूलित कक्षों की पर्दा संस्कृति में भोर की पहली किरण अब नहीं आती, ठीक उसी तरह अब चिठी-पत्री, खत का दौर भी बीत गया। मोबाइल, इंटरनेट, वाट्सएप की त्वरित द्रुतगति के सन्देश ने जगत् की दूरिया तो पाट दी, परंतु भीतर की आत्मीयता, संवेदनाएँ मर गयीं। आपाधापी के युग में मशीनी उपकरणों का अभ्यस्त मनुज भी संवेदनहीन रोबोटिक मानव ही बनता जा रहा है। अजीम शायर मुनव्वर राना ने इसे कुछ यूं बयान किया है- अब घोसलों की कोई हकीकत नहीं रही। दुनियाँ सिमट के छोटे से इक सिम में आ गई।



अब आज के दौर मे जब हम सन्देश हेतु ई-मेल, फैक्स, मोबाइल, आदि का प्रयोग करते हैं, हमें कोई इंतजार भले न करना पड़ता हो, लेकिन वह आत्मीयता महसूस नहीं होती जो खत से होती थी। हालांकि तकनीक क्रांति ने हमारे जीवन को बड़ा सुलभ बना दिया है। दूर रह रहे अपनों से हम फटाफट बातें करने लगे हैं, यहाँ तक कि वीडियो कॉलिंग, कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अपने सम्मुख देखने का लाभ भी ले सकते हैं, बड़े-बड़े कागज़ात एक पल में ई-मेल के जरिये एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे हैं, जिन्हें डाक के जरिये भेजने में कई दिन लग जाते थे। दोस्ती, जानपहचान, संबंधों और रिश्तों का पूरा सागर सिकुड़कर एक मोबाइल में ही कैद हो गया है, परन्तु रिश्तों में अब वह गहराई नहीं रह गई जो खतों के ज़माने में हुआ करती थी। मोबाइल और इंटरनेट-संस्कृति के रिश्ते भी आभासी दुनिया के आभासी रिश्तो के मानिंद ही रह गए हैं। जितने घण्टों और क्षणों में जुड़ते हैं, उतने ही समय में टूट भी जाते हैं। मानो जैसे पूरी दुनिया इस छोटे-से डिब्बे कंप्यूटर में समा गई है। पर यह भी सच है कि खत की अहमियत कई मायनों में ज्यादा थी, क्योंकि उससे हमारे अहसास जुड़े थे। दरसल पत्रों और संवेदनाओं का बड़ा गहरा रिश्ता होता है। कई बार पत्रों में कैद भावनाएँ इतनी जीवंत हो उठती हैं कि रिश्तों में पसरता अविश्वास या दूरियाँ नज़दीकियों में बदलने लगती हैं!


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