भारतीय मानसिकता का दर्पण : ‘तुलसी तत्त्व चिन्तन

कुछ समय पूर्व तक उत्तर भारत के घर की पहचान दो चीजों से होती थी- तुलसी के श्रीरामचरितमानस तथा तुलसी के पौधे से। बेटियों को विवाह के अवसर पर श्रीरामचरितमानस की प्रति सुन्दर कपड़े में लपेटकर दी जाती थी। वर्तमान युग में अनेक महान पुरुष महात्मा गाँधी, सन्त विनोबा भावे, डॉ. राममनोहर लोहिया, राजगोपालाचार्य, श्रीरामचरितमानस से प्रेरणा प्राप्त करते थे। उदाहरण के लिए जब विश्वप्रख्यात एच.जी. वेल्स ने महात्मा गाँधी से मानव अधिकारों के लिए प्रारूप भेजने को कहा, तो उन्होंने उत्तर में लिखा कि मानव अधिकारों की घोषणा बनाने से पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ को मानव-कर्तव्यों की घोषणा करनी चाहिए। जब वैल्स ने मानव-कर्तव्यों की घोषणा भेजने का आग्रह किया, तब गाँधी जी ने तुलसी के श्रीरामचरितमानस की एक प्रति भेज दी तथा लिखा कि रामायण हम भारतीयों के कर्तव्यों का घोषणा-पत्र है। इसी प्रकार जब एक अमेरिकी रिपोर्टर ने गाँधी जी से पूछा, आपके सत्याग्रह की प्रेरणा क्या है? तो उन्होंने उत्तर दिया ‘तुलसीकृत रामायण।'



इसी भाँति एक बार पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपना एक ग्रन्थ ‘ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' आचार्य विनोबा भावे को भेंट की। कुछ दिनों बाद दोनों की प्रयाग में भेंट हुई। पं. जवाहरलाल नेहरू ने उनसे पूछा कि उक्त पुस्तक कैसी लगी? श्री भावे ने अनमने भाव से कहा, ‘इसका उत्तर कल दूंगा।' अगले दिन प्रयाग में एक जनसभा थी जिसमें पंडित नेहरू भी उपस्थित थे। श्री विनोबा भावे ने भाषण सुनने आये श्रोताओं से पूछा, क्या आपने औरंगजेब का नाम सुना है? सुना हो तो हाथ ऊँचा करें। कुछ गिने- चुने व्यक्तियों ने हाथ उठाए। फिर उन्होंने पूछा ‘क्या आप अकबर के बारे में जानते हो? कुछ अधिक व्यक्तियों ने हाथ उठाये। तीसरी बार पुनः पूछा ‘क्या आप श्रीरामचरितमानस के बारे में जानते हैं? एकाएक सभी के हाथ उठ गये। पं. नेहरू को अपने ग्रन्थ का जवाब मिल गया। वास्तव में उस विशाल ग्रन्थ में औरंगजेब को लगभग दस पृष्ठ, अकबर को बाइस पृष्ठ दिये गये थे, जबकि तुलसी तथा उनके श्रीरामचरितमानस को केवल चार पृष्ठ। जबकि देश का जनमानस तुलसी को जानता है, न कि अकबर या औरंगजेब को। डॉ. राममनोहर लोहिया ने एक अक्टूबर 1960 को कहा था, ‘‘राम जैसा मर्यादित जीवन कहीं नहीं, न इतिहास में न कल्पना में ही।'' उन्होंने चित्रकूट में प्रथम अन्तरराष्ट्रीय रामायण मेला की नींव सम्पादित कर एक महान् राष्ट्रीय जागरण का कार्य किया।


विख्यात विद्वान् डॉ. सुशील कुमार पाण्डेय ‘साहित्येन्दु' भारत के एक जाने माने प्रबुद्ध साहित्यिक चिन्तक, गम्भीर विचारक तथा गहन शोधकर्ता हैं। तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस विश्व में सुन्दरतम उपहार है। डॉ. पाण्डेय ‘मानस के हंस हैं जो उसमें से दिव्य मोतियों को चुन-चुनकर विश्व के करोड़ों मानवीय भावनाओं का प्रतीक बन गये हैं। डॉ. पाण्डेय की कृति ‘तुलसी तत्त्व चिन्तन भारतीय मानसिकता का दर्पण तथा भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है कि यहाँ अनेक समस्याओं का समाधान भी है तथा भविष्य के लिए एक चैतन्ययुक्त समाज की प्रखर आशा भी। डॉ. पाण्डेय ने इस ग्रन्थ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में अनेक गहन शब्दों, साधु एवं सन्त, बुध, तप, भक्ति, संस्कार, धर्म, संस्कृति, आदि गूढ़ विषयों को सरल, सरस, सुबोध वाणी में व्यक्त किया है। तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस की वर्तमान में प्रासंगिकता का सुन्दर विवेचन करते हुए अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक प्रश्नों को स्पर्श किया है। संक्षिप्त में यह एक उत्तम समीक्षा, व्यवहारिक-समाधान तथा साहित्यिक संदेश है। यह स्तुत्य प्रयास है तथा इसके लिए लेखक को कोटिशः बधाई।