गौ का आवास (गौशाला) कैसे बनायें?

गौशाला के का स्थान का चयन


गौशाला का स्थान समतल तथा शेष जगह से कुछ ऊँचा होना आवश्यक है ताकि वर्षा का पानी, मल-मूत्र तथा नालियों का पानी आदि आसानी से बाहर निकल सके। यदि गौशाला गहरे स्थान पर बनाई जाती है, तो इसके चारों ओर पानी तथा गंदगी एकत्रित होती रहती है जिससे गौशाला में बदबू रहती है। गौशाला के स्थान पर सूर्य के प्रकाश का होना भी आवश्यक है। धूप कम-से-कम तीन तरफ़ से लगनी चाहिये। गौशाला की लम्बाई उत्तर-दक्षिण दिशा में होने से पूर्व व पश्चिम से सूर्य की रोशनी खिड़कियों व दरवाजों के द्वारा गौशाला में प्रवेश करेगी। सर्दियों में ठंढी व बर्फीली हवाओं से बचाव का ध्यान रखना भी जरूरी है।


स्थान की पहुँच


गौशाला का स्थान पशुपालक के घर के नज़दीक होना चाहिए ताकि वह किसी भी समय आवश्यकता पड़ने पर शीघ्र गौशाला पहुँच सके। व्यापारिक माप पर कार्य करने के लिए गौशाला का सड़क के नज़दीक होना आवश्यक है ताकि दूध ले जाने, दाना, चारा व अन्य सामान लेन-ले जाने में आसानी हो तथा खर्चा भी कम हो।



गौशाला में बिजली, पानी की सुविधा


गौशाला में बिजली व पानी की उपलब्धता का भी ध्यान रखना आवश्यक है; क्योंकि डेयरी के कार्य के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा आवश्यक होती है। इसी प्रकार वर्तमान समय में गौशाला के लिए बिजली का होना भी आवश्यक है; क्योंकि रात को रोशनी के लिए तथा गर्मियों में पंखों के लिए इसकी जरूरत होती है।


चारे, श्रम तथा विपणन की सविधा 


गौशाला के स्थान का चयन करते समय चारे की उपलब्धता का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, क्योंकि चारे के बिना गौपालन असम्भव कार्य है। हरे चारे के उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में सिंचित कृषियोग्य भूमि का होना भी आवश्यक है। चारे की उपलब्धता के अनुरूप ही गौ की संख्या रखी जानी चाहिए। गौमाता की सेवा और देखरेख के लिए सेवक की उपलब्धता भी उस स्थान पर होनी चाहिए क्योंकि बिना सेवक के पड़े पैमाने पर डेयरी का कार्य चलना अत्यन्त कठिन होता है। डेयरी-उत्पादन, जैसे- दूध, पनीर, खोया आदि के विपणन की सुविधा भी पास में होनी आवश्यक है। अतः स्थान का चयन करते समय डेयरी-उत्पाद के विपणनसुविधा को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।


गौशाला का वातावरण 


गौशाला एक साफ़-सुथरे वातावरण में बनानी चाहिए। प्रदूषित वातावरण गौमाता के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है, जिससे दुग्ध उत्पादन में कमी हो सकती है। गौशाला के आसपास जंगली जानवरों का प्रकोप बिल्कुल नहीं होना चाहिए।


गौशाला बनाने की विधि


गौशाला सामान्यतः दो प्रकार का होती है : (क) बंद आवास तथा (ख) खुला आवास।।


बंद आवास


इस विधि में गौ को बाँधकर रखा जाता है। तथा उसे उसी स्थान पर दाना-चारा दिया जाता है। गौ का दूध भी उसी स्थान पर निकाला जाता है। इसमें गौ को यदि चरागाह की सुविधा हो, तो केवल चराने के लिए ही कुछ समय के लिए खोला जाता है अन्यथा वह एक ही स्थान पर बँधी रहती है।


इस प्रकार के आवास में कम स्थान की आवश्यकता है, गौ को अलग-अलग खिलाना-पिलाना संभव है, गौ की बीमारी का आसानी से पता लग जाता है तथा गौएं आपस में लड़ाई नहीं कर सकतीं। उपर्युक्त लाभों के साथ-साथ इस विधि में कुछ कमियाँ भी हैं, जैसे- आवास-निर्माण अधिक खर्चीला होता है, स्थान बढ़ाए बगैर गौ की संख्या बढ़ानी मुश्किल होती है और गौ को पूरी आजादी नहीं मिल पाती।


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