गीता एक समग्र जीवन-दर्शन

श्री मद्भगवद्गीता महर्षि वेदव्यास-कृत | महाभारत के भीष्मपर्वान्तर्गत अध्याय 25 से 42 तक यानी कुल 18 अध्यायों में वर्णित है। इसमें कुल 700 श्लोक हा इन 700 लीका में मानव-जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अमृतोपदेश । भरा हुआ है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं महान् दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन नेभगवद्गीता पर भाष्य लिखते समय इस पुस्तक की भूमिका में लिखा है- ‘भगवद्गीता जीवन के लक्ष्यों को हृदयंगम करने में महत्त्वपूर्ण सहायता देती है। विदित हो कि डॉ.राधाकृष्णन ने इस पुस्तक को महात्मा गाँधी को समर्पित किया है। महात्मा गाँधी ने भी गीता के सम्बन्ध में अपने विचार को अभिव्यक्त करते हुए 'यंग इण्डिया' में लिखा था- ‘जब निराशा मेरे सामने आ खड़ी होती है और जब बिल्कुल एकाकी मुझको प्रकाश की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ती, तब मैं गीता की शरण लेता हूँ। जहाँ-तहाँ कोई-न- कोई श्लोक मुझे ऐसा दिखाई पड़ जाता है कि मैं विषम परिस्थितियों में भी तुरन्त मुस्कुराने लगता हूँ। मेरा जीवन बाह्य विपत्तियों से भरा रहा है; और यदि वे मुझ पर अपना कोई दृश्यमान अमिट चिह्न नहीं छोड़ जा सकी, तो इसका सारा श्रेय भगवद्गीता की शिक्षाओं को है।' ।



भगवद्गीता पर आद्य शंकराचार्य अपनी टीका की भूमिका में लिखते हैं- 'यह प्रसिद्ध गीताशास्त्र सम्पूर्ण वैदिक शिक्षाओं के तत्त्वार्थ का सार संग्रह है। इसकी शिक्षाओं का ज्ञान सब मानवीय महत्त्वाकांक्षाओं की सिद्धि करानेवाला है।


इसीलिए गीता के ज्ञान की महानता को स्पष्ट करते हुए कहा गया है


सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।


पार्थो वत्सः सुधीर्थोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्॥


-गीतामाहात्म्य, 6


  इस ज्ञानपरक उपमा में यह बतलाया गया है कि सभी उपनिषदें गाय हैं, श्रीकृष्ण इन उपनिषद् रूपी गायों के दोग्धा हैं, अर्जुन जो मानवमात्र के प्रतिनिधि हैं, वे बछड़ा और उस अमृततुल्य दुग्ध का आस्वादन करनेवाले भोक्ता हैं। उस अमृतोपम ज्ञानरूपी दुग्ध का नाम ही 'गीता' है। इस तरह आध्यात्मिक वाङ्मय का सार-संग्रह ही गीता है। गै शब्दे धातु से सूत्र स्थागापापचो भावे (अष्टाध्यायी, 33.95) से स्त्रीलिंग भाव में ‘क्तिन् प्रत्यय लगकर । 'गीत' शब्द निष्पन्न होता है और पुनः ‘टाप् प्रत्यय लाग कर 'गीता' शब्द। बनता है, जिसका अर्थ मुख से उच्चरित होने से सम्बन्धित है। भगवद्गीता पर अनेक विद्वान् । आचार्यों ने अपनी लेखनी उठायी है, | जिनमे शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, श्रीधर स्वामी, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, बालगंगाधर टिळक, महात्मा गाँधी, राजगोपालाचार्य, संत विनोबा, श्रीअरविन्द-प्रभृति अन्य कई महान् दार्शनिक-विचारक भी शामिल हैं।


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