ज्योतिष में भी है गाय का उच्च स्थान स्वप्न में गो-दर्शन

ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि विवाह-जैसे मंगलकार्यों के लिए गोधूलि वेला सर्वोत्तम मुहूर्त होता है, संध्या काल में जब गाय जंगल से चरकर आती है तब गाय के खुरों से उड़नेवाली धूल समस्त पापों का नाश करती है। नवग्रहों की शांति के लिए भी गाय की विशेष भूमिका होती है। मंगल के अरिष्ट होने पर लाल रंग की गाय की सेवा और गरीब ब्राह्मण को गोदान करने से खराब मंगल का प्रभाव भी क्षीण हो जाताहै। इसी तरह शनि की दशा, अन्तर्दशा और साढ़े साती के समय काली गाय का दान मनुष्यों को कष्टों से मुक्ति दिलाता है। बुध ग्रह की अशुभता के निवारण हेतु गायों को हरा चारा खिलाने से राहत मिलती है।


पितृदोष होने पर गाय को प्रतिदिन या अमावस्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाना चाहिए। गाय की सेवा-पूजा से लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर भक्तों को मानसिक शांति और सुखमय जीवन होने का वरदान देती है।



वास्तु-दोषों का निवारण करती है गाय


समरांगणसूत्रधार के अनुसार भवन-निर्माण का शुभारम्भ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को रखना चाहिए जो सवत्सा यानि बछड़ेवाली हो। नवजात बछड़े को गाय जब गाय दुलारकर चाटती है, तब उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहाँ के समस्त दोषों का निवारण स्वतः ही हो जाता है। महाभारत में कहा गया है कि गाय जहाँ बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, वह उस स्थान के सारे पापों को मिटा देती है


निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम्।


विराजयति तं देशं पाप्मानं चापकर्षति॥


-अनुशासनपर्व, 51.32


अत्रिसंहिता ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं है, उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा? गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। जिन घरों में गाय की सेवा होती है, ऐसे घर सर्वबाधाओं और विघ्नों से मुक्त हो जाते हैं। विष्णुपुराण के अनुसार जब श्रीकृष्ण द्वारा पूतना का दुग्धपान करने के बाद नन्ददम्पति ने गाय की पूँछ घुमाकर उनकी नजर उतारी थी। कूर्मपुराण में कहा गया है। कि कभी गाय को लाँघकर नहीं जाना चाहिए। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ होता है।