क्यों कहते हैं गाय को माता?

अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा एक पुस्तक Cow is Wonderful Laboratory अर्थात् गाय एक अद्भुत प्रयोगशाला है, प्रकाशित की गयी। इस पुस्तक की चर्चा करने का उद्देश्य उन विद्वान् लोगों को आइना दिखाने का प्रयास है जो भारतीय धर्मग्रंथों, शास्त्रों एवं प्रचलित मान्यताओं का विरोध करते हैं और इतिहास से खिलवाड़ कर अंग्रेजी व मुस्लिम काल में लिखे गए झूठे व बेबुनियाद ग्रंथों को सही मानकर उनका आचरण करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सभी जीव-जन्तुओं तथा दुग्धधारी पशुओं में केवल गाय ही एक ऐसा पशु है जिसकी 180 फुट लम्बी आँत होती है। जो गाय द्वारा खाए गए भोजन को पचाने में सहायक होता है। गाय की रीढ़ की हड्डी के भीतर सूर्यकेतु नामक नाड़ी होती है जिस पर सूर्य की किरण के स्पर्श से स्वर्ण तत्त्व का निर्माण होता है। गाय के एक किंटल (100 किलोग्राम) दूध में एक माशा स्वर्ण पाया जाता है। गाय के दूध व घी का रंग पीला होने का भी यही कारण है। यह पीलापन कैरोटीन तत्त्व के कारण होता है। शरीर में कैरोटीन की कमी होने पर ही मुख, फेफड़े तथा मूत्राशय में कैंसर होने के अवसर ज्यादा होते हैं। यह कैरोटीन तत्त्व गाय के दूध में भैंस के दूध से 10 गुणा ज्यादा होते हैं। एक बात और जिसे वैज्ञानिकों से शोध किया कि भैंस के दूध को गर्म करने पर पौष्टिक तत्त्व खत्म हो जाते हैं जबकि गाय के दूध को गर्म करने पर वे खत्म नहीं होते।



वैज्ञानिकों ने गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध किया और पाया कि गाय के सींग शक्तिशाली एंटीना की तरह काम करते हैंऔर इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित कर लेती है और वही ऊर्जा हमें गोमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, शोध से यह भी पता चलता है कि गोमूत्र में कारबोलिक एसिड होती है जो कीटाणुनाशक होती है तथा शुद्धता एवं स्वच्छता बढ़ाती है। इसके अलावा भी अनेक परीक्षणों से पता चला है कि गोमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटैशियम, सोडियम तथा लैक्टोज़ आदि तत्त्व होते हैं जो मनुष्य के शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाते हैं। गाय के गोबर तथा मूत्र को मिलाने से प्रोपलीन ऑक्साइड गैस बनती है जो बरसात लाने में सहायक मानी जाती है और एक दूसरी गैस इथलीन ऑक्साइड भी पैदा होती है जो ऑपरेशन थियेटर में काम आती है।


नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट, करनाल (हरियाणा) से प्रकाशित एक आलेख में गाय के घी का वैज्ञानिक विश्लेषण बताया गया है। इसके अनुसार इस घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूटिक एसिड, वीटा कैरोटीन-जैसे तत्त्व पाए जाते हैं, जो शरीर में पैदा होनेवाले कैंसरकारक तत्त्वों से लड़ने की क्षमता रखते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा यह भी माना गया कि गाय के 10 ग्राम घी को दीपक में जलाने, गोबर के जलते उपलों पर डालने अथवा यज्ञ में आहुति डालने से लगभग एक टन प्राणवायु उत्पन्न होती है तथा उससे वायुमंडल में एटोमिक रेडिएशन का प्रभाव कम हो जाता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भोपाल में 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से गैसरिसाव के समय देखने को मिला। जिन घरों में गाय के गोबर, मूत्र, दूध व घी का प्रयोग था, वहाँ उस गैस का प्रभाव कम पाया गया था।


गाय के दूध का रासायनिक विश्लेषण करने पर उसमें 87.3% पानी, 4% प्रोटीन्स, 4% वसा, 4% कार्बोहाइड्रेट्स, 0.7% मिनरल्स तथा ऊर्जा यानी कैलोरी 65% पाई जाती है। इसके अलावा भी कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, क्लोरीन, लौह तत्त्व व विटामिन ए, बी, सी, डी भी पाए जाते हैं तथा विटामिन ए की अधिकता होती है जो शरीर को र सशक्त बनाने में अधिक सहायक है।


रूसी वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि गाय के दूध और घी में strontian नामक तत्त्व है जो अणु-विकिरण का प्रतिरोधक है। गाय के दूध में सेरीब्रोसाड्स तत्त्व है, जो बुद्धि के विकास में सहायक है। गाय का दूध शीतल होने के कारण पित्त-विकार, अल्सर, एसिडिटी तथा दाह-रोगों में लाभदायक, सुपाच्य, माताओं, दुर्बल, वृद्ध, बीमार व बच्चों के लिए गुणकारी है। जलोदर नामक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए पानी पीना सख़्त मना होता है, मगर वह भी गाय का दूध पीकर स्वस्थ हो सकता है।


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