काँग्रेस-महापुरुष टीपू सुल्तान!

टीपू सुल्तान का जन्मोत्सव मनाकर कर्नाटक के सत्ताधारी काँग्रेसी जान-बूझकर साम्प्र- दायिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं, ताकि काँग्रेस की मुस्लिमपरस्त छवि उभरे। टीपू इतना पुराना इतिहास नहीं कि आम लोगों के बीच उसकी लीपा-पोती हो सके। बुद्धिजीवियों की बात दीगर है, जो कृत्रिम निष्कर्षों का अंधविश्वास अधिक रखते हैं।


दक्षिणी लोग जानते हैं कि टीपू का शासन हिंदू-जनता के विनाश और इस्लामी प्रसार के सिवा कुछ न था। अंग्रेजों से उसकी लड़ाई अपनी सत्ता के लिए थी। इसीलिए टीपू ने अन्य विदेशियों को यहाँ हमला करने का न्योता दिया, जिसकी मदद से उसने भारतीय जनता को रौंदा था। फ्रांस ही नहीं, टीपू ने ईरान, अफगानिस्तान को भी हमले के लिए बुलाया था। अतः अंग्रेजों से टीपू की लड़ाई को देशभक्ति' कहना अधकचरे बुद्धिजीवियों की भूल है।



हिंदू-जनता पर टीपू की क्रूरता के असंख्य विवरण मिलते हैं। पुर्तगाली यात्री बालोमियो ने सन् 1776 से 1789 के बीच के प्रत्यक्षदर्शी वर्णन लिखे हैं। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘बोयज टु ईस्ट इण्डीज' 1800 में ही प्रकाशित हो चुकी थी। अभी भी वह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से हाल में छपी है। टीपू और फ्रांसीसियों के संयुक्त अभियान का वर्णन करते हुए बालोमियो ने लिखा, 'टीपू एक हाथी पर था, जिसके पीछे एक हजार सैनिक थे। कालीकट में अधिकांश पुरुषों और स्त्रियों को फाँसी पर लटका दिया गया। पहले माँओं को लटकाया गया जिनके गले से उनके बच्चे बाँध दिए गए थे। बर्बर टीपू ने हिंदुओं और ईसाइयों को हाथी के पैरों से नंगे शरीर बाँध दिया और हाथियों को तब तक इधर उधर चलाते रहा जब तक उन बेचारे शरीरों के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो गये। मन्दिरों और चर्चा को गंदा और तहसनहस करके आग लगाकर खत्म कर दिया गया।


हमारे प्रसिद्ध इतिहासकार के.एम. पणिक्कर (1894-1963) ने ‘भाषापोषिणी' पत्रिका के अगस्त, 1923 अंक में टीपू का एक पत्र उद्धृत किया है। सैयद अब्दुल दुलाई को 18 जनवरी, 1790 को लिखित पत्र में टीपू के शब्द थे : ‘नबी मुहम्मद और अल्लाह के फ़ज़ल से कालीकट के लगभग सभी हिंदू इस्लाम में ले आए गए। महज कोचीन राज्य की सीमा पर कुछ अभी भी बच गए हैं। उन्हें भी जल्द मुसलमान बना देने का मेरा पक्का इरादा है। उसी इरादे से मेरा जिहाद है।'


अगले दिन, 19 जनवरी, 1790 को बज जुमा खान को टीपू ने लिखा, 'तुम्हें मालूम नहीं है कि हाल में मालाबार में मैंने गज़ब की जीत हासिल की और चार लाख से अधिक हिंदुओं को मुसलमान बनाया। मैंने तय कर लिया है कि उस मरदूद ‘रामन नायर' (त्रावनकोर के राजा, जो धर्मराज के नाम से प्रसिद्ध थे) के खिलाफ जल्द हमला बोलूंगा। चूंकि उसे और उसकी प्रजा को मुसलमान बनाने के ख्याल से में बेहद खुश हूँ, इसलिए मैंने अभी श्रीरंगपट्टम् वापस जाने का विचार खुशीखुशी छोड़ दिया है।'


ऐसे विवरण अंतहीन हैं। बॉम्बे मलयाली समाज द्वारा प्रकाशित 'टीपू सुल्तान : विलेन और हीरो' (वायस ऑफ़ इण्डिया, दिल्ली, 1993) में अनेक प्रमाणिक सन्दर्भ दिए गए हैं। टीपू के समकालीन साफ़ दिखाते हैं कि उसका मुख्य लक्ष्य हिंदू-धर्म का नाश तथा हिंदुओं को इस्लाम में लाना था। मीर हुसैन अली किरमानी की पुस्तक ‘निशान-ए-हैदरी' (1802) में इसका विवरण हैं। इसके अनुसार टीपू ने श्रीरंगपट्टन में एक शिव मन्दिर तोड़कर उसी जगह जामा मस्जिद (मस्जिदे आला) बनवायी।


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