स्वाधीनता संग्राम और गोरक्षा

भारत अनादि काल से धर्मप्राण देश होने के कारण गौमाता के प्रति असीम श्रद्धा-भक्ति रखता रहा है। भारत में राष्ट्रवीरों ने गोरक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष किया है। गोमाता की रक्षा के लिए और जरासंध से मथुरा, वृंदावन तथा गोकुल को बचाने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण द्वारका चले गये, इसीलिए उन्हें रणछोड़ कहा गया।


शिवाजी महाराज ने सोलह वर्ष की अवस्था में बीजापुर में एक गोहत्यारे का सिर काट डाला था और खून से रंगी तलवार लेकर नवाब के सम्मुख जा खड़े हुए। गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने तो सिख-पंथ की स्थापना ही गौघात मिटाने के उद्देश्य से की थी। उन्होंने इष्ट देवी से अरदास में वर भी माँगा- गौघात का दुःख जगत से मिटाऊँ। महाराजा रणजीत सिंह ने शासन की बागडोर संभालते ही राज्य में पहला कार्य गोहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का किया।



प्रथम स्वाधीनता समर गौमाता की हत्या से उत्पन्न आक्रोश का परिणाम था। जब अंग्रेज़ सरकार ने कारतूसों में गाय की चर्बी का प्रयोग शुरू किया, तो गोभक्त भारतीय सैनिक यह सहन नहीं कर पाये। वीर मंगल पाण्डे ने बैरकपुर छावनी में खुला विद्रोह किया। इस विद्रोह की सजा उस गोभक्त सैनिक ब्राह्मण को फाँसी के रूप में दी गयी। वीर सावरकर ने अपने ‘1857 का प्रथम स्वातन्त्र्य समर' नामक पुस्तक में अनेक तथ्य प्रस्तुत कर यह स्पष्ट किया है कि हिंदू सैनिक सब कुछ सहने को तैयार थे, लेकिन गाय की चर्बीयुक्त कारतूस नहीं। बैरकपुर छावनी में जैसे ही ये कारतूस दिए गये, गोभक्त मंगल पाण्डे खुली परेड में बंदूक लेकर गरज पड़े। अंग्रेजु सार्जेन्ट मेजर ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। इसी बीच मंगल पाण्डे ने अंग्रेज अफ़सर पर गोली दागकर उसे मार डाला। परिणामतः मंगल पाण्डे को फाँसी की सजा दी गयी। देश और धर्म के लिए, गोप्रेम के लिए वीर मंगल पाण्डे की यह स्वातन्त्र्य समर की प्रथम आहुति थी।


असहयोग आन्दोलन के दौरान गोपाष्टमी के पावन पर्व पर दिल्ली के पटौदी हाउस में महात्मा गाँधी की उपस्थिति में हुए एक सम्मेलन में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में कहा गया था- अंग्रेजी राज्य में गोहत्या होती है, अतः इसे सहयोग नहीं किया जाये। महात्मा गाँधी ने अपने ‘नवजीवन' पत्र के अंक में लिखा‘गोरक्षा का प्रश्न स्वराज के प्रश्न से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।


महान् स्वाधीनता सेनानी लाला हरदेव सहाय ने तो देश के स्वाधीन होने के बाद भी गोहत्या का कलंक जारी रहते देखकर अपनी पार्टी-पद से त्यागपत्र देकर अपना जीवन गोरक्षा के पावन उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया।


आर्य समाज के जन्मदाता स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ‘गौकरुणानिधि नामक पुस्तक में गौ-महिमा का अपार वर्णन किया है। इस प्रकार भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पीछे गोभक्ति तथा गोरक्षा की भावना का बहुत बड़ा योगदान रहा है।


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