आणविक जैविकी, डी.एन.ए. एवं ऋग्वेद से अनुमान

कितना उत्तेजक और गौरवपूर्ण लगता है कि पृथिवी के चार अरब वर्षों के इतिहास में हम आज जीवित हैं! मैं और आप इतने भाग्यशाली हैं कि लगभग पचासी करोड़ से अधिक प्रजातियों में हम महतु चेतना संपन्न प्राणी, मनुष्य के रूप में हैं। सात अरब से अधिक जनसंख्यावाली इस पृथिवी पर निश्चित ही हम बहुत भाग्यशाली हैं। पृथिवी के इस सम्पूर्ण इतिहास में हम उस काल में पैदा हुए, जब हमसे बस कुछ हजार मील दूरी पर रह रहे हमारी ही प्रजाति के दो सदस्यों ने संभवतः ब्रह्माण्ड के महानतम, सबसे आश्चर्यजनक और फिर भी सबसे सरलतम रहस्य डी.एन.ए. संरचना की खोज की।


आइये आपको एक नितान्त भौतिकवादी फिर भी वैज्ञानिक इतिहास- यात्रा पर ले चलें।



सम्भवतः 1794 ई. के जाड़े के प्रारम्भ में एक डॉक्टर ने अपनी एक नयी कविता लिखनी शुरू की थी। कविता के प्रारम्भिक प्रारूप में कुछ पंक्तियाँ लिखी गईं कि क्या हम मान लें कि जीवन की उत्पत्ति एक जीवित धागे से हुई? इस चिकित्सक कवि का नाम था येरेस्मस डार्विन और लगभग 65 वर्षों के बाद उस कवि डॉक्टर का पोता चार्ल्स डार्विन उस धागे के रहस्य के और करीब पहुँचा।


फिर भी कोई धागा कैसे जीवन्त हो सकता है। वास्तव में जीवन को पारिभाषित करना आपदायुक्त अति दुष्कर कार्य है। जीवन कई बार अंधों के गाँव में आये हुये उस हाथी की तरह है, जिसने उसकी पूँछ पकड़ी तो उसे हाथी झाडू की तरह लगा; जिसने पेट पकड़ा, उसे एक बड़े ड्रम जैसा! अस्तु।


जीवन को यदि समग्र वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो हम कह सकते हैं कि जीवन के सभी लक्षणों में दो लक्षण अति महत्त्वपूर्ण हैं : 1. अपने जैसा ही प्रतिरूप बनाना, और 2. कोशिका के भीतर या दो से अधिक कोशिकाओं के मध्य व्यवस्था या क्रमबद्धता का निर्माण।


एक शशक को देखिये। शशक अपने जैसे ही एक और प्राणी को जन्म देता है, परन्तु इसके साथ ही वह और इससे अधिक भी बहुत कुछ करता है। घास खाकर उसे मांस में परिवर्तित करता है। और उपापचयी ऊर्जा का निर्माण भी करता है। इस तरह से हम देख सकते हैं कि शशक और उसकी सभी कोशिकाएँ उष्मागतिकी के प्रथम नियम ऊर्जा-सरंक्षण के सिद्धान्त का तो अनुपालन करती हैं, किन्तु द्वितीय नियम ‘येंट्रापी सिद्धान्त' का उल्लंघन करती हैं। वास्तव में यहाँ पर येरविन स्क्रोडिंजर का वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण कथन कि ‘जीवित कोशिकाएँ क्रमबद्धता और अनुक्रम का वातावरण से अनुप्रेरण करती हैं' पूर्णतः सत्य है।


इन दोनों ही विशेषताओं के लिये जो मूलभूत कारण है, वह है ‘सूचना' । यदि प्रतिरूप-निर्माण की बात करें, तो यह प्रत्यक्ष है कि एक सम्पूर्ण वयस्क शशक के निर्माण के लिये आवश्यक सूचनाएँ उसके भ्रूण में निहित हैं। साथ-साथ ही उपापचय- संबंधी व्यवस्था-निर्माण की भी सारी सूचनाएँ उसके पास हैं।


गुणसूत्र, जो डी. एन.ए. के धागों से बने हैं, उनके पास सारी सूचनाएँ हैं जो रासायनिक संदेशों के रूप में लिखी हैं। जहाँ एक रासायनिक अणु एक अक्षर को प्रदर्शित करता है, जैसे- आंग्ल भाषा में 26 अक्षर हैं, इस वर्णमाला में केवल 4 अक्षर हैं- एडीनिन, ग्वानिन, साइटोसिन और थाइमिन। G


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