अनमोल ज्योति

महिला सेवा समिति की ओर से पाँच-दिवसीय नेत्र-जाँच शिविर का आयोजन किया गया था। शिविर में मरीजों के "खाने-पीने का प्रबंध महिला सेवा समिति की ओर से था। बनाने की सेवा सीआईएसएफ के जवानों ने ली थी। बर्तनों की सेवा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से थी।


सुबह के पाँच बज रहे थे जब गर्विता अस्पताल पहुँची। जाते ही चाय बनाने को कहा तो सीआईएसएफ की महिला जवान सेल्यूट कर चाय बनाने में लग गई।


आज गरीब लोगों के लिए नेत्र-शिविर में आँखों के मुफ्त आपरेशन का पहला दिन था। अस्पताल में लगभग ढाई सौ मरीज भर्ती थे। उनमें से बीस मरीजों का ऑपरेशन सुबह चार बजे हो चुका था।



रात से भर्ती मरीजों में से कुछ जाग गए थे, कुछ अभी सोए। हुए थे।


वातावरण में चाय के उबलने की गंध हवा में घुलकर गर्विता के नथुनों से टकराई तो उसने गहरा श्वास भरा- चलो चाय तो तैयार हो गई। गर्विता ने कदम टेंट की ओर बढ़ाए, तभी सामने से सेवा समिति की अन्य महिलाओं ने प्रवेश किया।


कनक बोली क्या बात है गर्विता, तुम तो बहुत जल्दी आ गई । लगता है मरीजों की फिक्र में ठीक से सोई भी नहीं।


गर्विता बोली- अरे नहीं, नींद जल्दी खुल गई तो सोचा चलकर चाय बनवा लेती हूँ। तुम सभी पहुँचोगी, जल्दी से बांट देंगे।


अंजू जरा चाय की बाल्टी लो, जीनत तुम ग्लास ले लो, रंजना तुम बिस्कुट लेकर चलो मेल वार्ड में, कनक और मैं फिमेल वार्ड में जा रहे हैं।


गर्विता ने सोए हुए मरीजों को अपनी सुरीली आवाज़ में जगाना शुरू किया- मोरी अम्मा उठ जा, दादी उठ जा, देख चाय आई, साथ में बिस्कुट लाई। गर्विता ने वृद्धा लीला के हाथ में बिस्कुट रखा, तो सिकुड़नभरे एक कमजोर हाथ का अपने हाथ पर स्पर्श महसूस हुआ देखा तो एक बहुत ही वृद्ध महिला लीला, जिसकी झुर्रियों से मुंदी पड़ रही आँखों में दो अश्रु-बिन्दु झिलमिला रहे थे, गर्विता के मन को अंदर तक द्रवित कर दिया।


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