सभी उपदेशकों ने मानव जाति को यह उपदेश देने की कोशिश की है कि अपने अंदर कैसे देखें। अपने अंदर देखने का अर्थ है आध्यात्मिकता के क्षेत्र में प्रवेश करना। हमारे साथ समस्या यह है कि हम हर चीज को ब्राण्ड बनाने की कोशिश करते हैं। हम आध्यात्मिकता को ब्राण्ड बनाते हैं, हम धर्मों को ब्राण्ड बनाते हैं जैसे हिंदू-धर्म (हिंदुत्व), मुस्लिम धर्म (इस्लाम), बौद्ध (भारतीय बौद्ध, तिब्बती बौद्ध, जापानी बौद्ध, श्रीलंका के थेरवादी बौद्ध, थाई बौद्ध) इत्यादि और सही मार्गदर्शन एवं दिशा देने के लिए धर्म एवं आध्यात्मिकता के इन साधनों का उपयोग करने के बजाय, हम उन्हें पेटेंट करना शुरू कर देते हैं और खुद को बौद्धिक आध्यात्मिकता और बौद्धिक विश्लेषण के गहरे सागर में ढकेल देते हैं। हम आध्यात्मिकता को इसमें आत्मसमर्पण के जरिए समझने की कोशिश करने के बजाय इसका बौद्धिकता के साथ विश्लेषण करते हैं। हम आध्यात्मिकता का विश्लेषण सागरों और झूठी संतुष्टि की विशाल गहराइयों में खुद को खींचते हुए चर्चा का विषय बना देते हैं।
बौद्धिक विश्लेषण हमें फिर भी खुद को अपने स्व (अहम्) से ऊपर उठाते हुए अपने को बुद्धिजीवी के तौर पर विचार करने का खूबसूरत मंच प्रदान करता है। यह अनुभव किया गया है कि अच्छे वक्ता और तर्कशास्त्री किसी भी व्यक्ति को अन्य धर्म की तुलना में किसी खास धार्मिक दृष्टिकोण के प्रभाव के बारे में समझा सकते हैं। यह हमें विश्वास दिला सकता है और हम उस दृष्टिकोण के प्रति झुकाव महसूस करना शुरू कर देते हैं। हम भटक जाते हैं और फोकस खो देते हैं। किसी विशेष धर्म में अच्छाई ढूँढ़ने और खुद के विकास के लिए उस धर्म की अच्छी प्रथाओं को इस्तेमाल करने के बजाय, हम उसमें सम्मिलित हो जाते हैं और उस धर्म के ब्राण्ड एम्बेस्डर्स बन जाते हैं। तिब्बती बौद्ध/भारतीय बौद्ध/कैथोलिक पादरी आदि का तगमा हमारे ऊपर हावी होने लगता है। लोग हमारे पास आने लगते हैं, हमारे अनुयायी बनने लगते हैं, हमें लेबलिंग करना शुरू कर देते हैं, हमें व्याख्यान देने/चर्चाओं में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने लगते हैं। और हम खुद को तेजी से विकसित होता हुआ महसूस करने लगते हैं। सेमीनारों में लोगों की हौसला आफजाई हमारे कानों को बहुत मधुर लगती है और भक्ति के साथ प्रगति करने के बजाय हम अपने ज्ञान के आधार और हमारी वाक्पटुता के हुनर की प्रशंसा से उत्पन्न भावनाओं के सात समंदर में गोते लगाना शुरू कर देते हैं। हमें इस तरह की भावनात्मक स्थितियों के प्रति सतर्क रहना होगा। ऐसी मनोस्थिति में भावनाएँ आपके लिए स्वयं को स्वयं में ढूँढ़ने (आध्यात्मिकता) के बजाय बौद्धिक आध्यात्मिकवादी बनने की एक अलग ही दिशा में ले जाने के लिए लॉन्ची पैड तैयार करने में सफल हो जाती हैं।
इसका अर्थ है कि भावनाएँ हालांकि क्षेत्र के आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने में हमारी मदद करने के लिए अच्छी साधन हैं, बौद्धिक अज्ञानता में कोई भी छोटी-सी गलतफहमी के कारण हमें कुछ और अवतारों के द्वारा स्वयं की अनुभूति/वास्तविकता की स्थिति में पहुँचने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ सकते हैं।
इसीलिए, भावनात्मचक मंच को इस्तेमाल करते हुए चेतना की स्थिति को उत्पन्न करने की दौड़ बेहद सटीकता के साथ शुरू की जानी है। ऐसा प्रतीत होता है। कि शैक्षणिक संस्थानों ने गुरुकुलों की प्राचीन भारतीय प्रणाली सहित प्रमाणित पद्धतियों को अपना लिया है, शैक्षणिक प्रणाली को चेतना के विमान पर अपने आप को ऊपर उठाने के हमारे प्रयास में मामूली बदलावों के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। उपस्थिति, व्यावसायिकता, परिशुद्धता और उत्कृष्टताजैसे तत्त्व हमारी चेतना की स्थितियों के स्तर को पुनः पारिभाषित करने और उन्नत बनाने के लिए किए जानेवाले हमारे अभ्यासों में असरदार हो सकते हैं।
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