इतिहास को सहेजती गोत्र-प्रणाली

 जो समाज अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी नहीं रखता, । अपने पुरखों की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण न कर उन्हें भूल जाता है, वहाँ समाजीकरण में अत्यंत वीभत्स दृश्य पैदा होते हैं और अंततः विप्लव या आतंक का कारण बनते हैं। प्राचीन भारतीय मनीषी इस मनोवैज्ञानिक सत्य से भली-भाँति परिचित थे, इसलिए उन्होंने आरम्भ से ही उसे वंशावली-लेखन के रूप में सहेजने की वैज्ञानिक विधा का प्रणयन किया। इसके प्रमाण वैदिक वाङ्मय- ब्राह्मण-ग्रंथों और पुराणों में वर्णित वंशावलियाँ हैं जो भारत के प्राचीन इतिहास का आधार बनीं। हमारी ऋषिपरम्परा अपूर्व मनस्वी, तेजस्वी मेधा का साक्षात् थी, अतः उन्होंने वंशावली-लेखन को अत्यन्त प्राचीन काल से ही वैज्ञानिक रूप से अतीत से साक्षात्कार करानेवाली विधा के रूप में विकसित किया। सृष्टिरचना से लेकर अपने पूर्वजों के समय की इतिहास की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक घटनाओं का वर्णन करते हुए उस व्यक्ति का वंशक्रम भोजपत्रों, ताम्रपत्रों, हस्तलिखित पोथियों में आलेखित करना हमारी ऋषि-परम्परा का पुरुषार्थजनित वह कर्म था जिससे सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकात्मता का संचार हुआ। भारतीय वंशावली लेखन परम्परा व्यक्ति के इतिहास को शुद्ध रूप से सहजकर रखने की गौरवशाली प्रणाली है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति या वर्ग, वंशावलियों का वैज्ञानिक पद्धति से विश्लेषण करते हुए इनका उपयोग सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक व विविध तथ्यों का समावेश पोथियों या बहियों के रूप में कर भावी पीढ़ी के लिए इतिहास सुरक्षित रख सकता है। मानव इतिहास के विभिन्न पक्षों- मूल वर्ण, कुल, जाति उद्भव, पूर्वज आदि की जानकारी हमें इन्हीं वंशावलियों से होती है। प्राचीन भारतीय वंशावली लेखन- परम्परा की जड़ें तीर्थस्थल नैमिषारण्य में एकत्र आर्यावर्त के 88 हजार ऋषियों से श्रीसूतजी का कलिकाल में मनुष्य के कल्याण से जुड़ा वार्तालाप में भी खोजा जाना चाहिये। भारतीय पुराण तो वंशावलियों के वे खजाने हैं जिनसे हमारी पहचान है और इसी से भारतीय इतिहास का निर्धारण हुआ है।



अतीत से साक्षात्कार कराती ये वंशावलियाँ हमारे पूर्वजों की वे थाती हैं, जिनके गर्भ में हमारी कितनी ही राष्ट्रीय समस्याओं, अनेकता, खण्डता, सामाजिक विषमता का समाधान छुपा है। भारत में वंशावली-लेखन अत्यन्त प्राचीन और वैज्ञानिक परम्परा के रूप में विकसित हुआ। ये वंशवृक्ष अतीत से साक्षात्कार कराते हैं। वस्तुतः प्रकृति में प्रत्येक जीव व अजीव का अपना महत्त्व होता है, उसकी उत्पत्ति व विकास की गाथा ही वंशावली है! भारतीय सन्दर्भ में वंशावली का सीधा सम्बन्ध समाज की वंश-परम्परा, रीति- रिवाज, संस्कृति, गोत्र, प्रवर, शाखा, प्रशाखा, वेद, उपवेद, ईष्ट, भैरव, जीवन- मृत्यु आदि विशेषताओं की व्याख्या से है।


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