साँप-सीढ़ी या मोक्षपटम्?

बचपन में हम सभी ने साँप-सीढ़ी का खेल जरूर खेला होगा। इस खेल में 1 से लेकर 100 तक के खाने बने होते हैं। बोर्ड पर ढेर सारे साँप और सीढ़ियाँ बनी होती हैं। साँप के मुँह पर पहुँचने पर खिलाड़ी को साँप की पूँछवाले खाने पर आना पड़ता है, वहीं सीढ़ी चढ़कर खिलाड़ी कई खाने ऊपर भी पहुँच सकता है। इसमें साँप की संख्या, सीढ़ियों से ज्यादा होती है। हममें से ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि यह खेल विदेशों से आया है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह खेल विदेशों से नहीं आया, बल्कि यह भारत की ही देन है? और इसका जैसा रूप आज हमारे सामने है, यह इसका बदला हुआ रूप है।



किसने बनाया इस खेल को?


प्राचीन भारत में इस खेल को ‘मोक्षपटम्' के नाम से जाना जाता था। इसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जाता रहा है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि महाराष्ट्र के 13वीं शताब्दी के सन्त-कवि ज्ञानेश्वर (12751296) ने इस खेल को बनाया था। इस खेल को बनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सत्कर्म और सद्धर्म की शिक्षा देना था। सीढ़ियाँ अच्छे कर्म को दर्शाती थीं, वहीं साँप हमारे बुरे कर्म को दर्शाते थे। हमारे अच्छे कर्म हमें 100 के करीब लेकर जाते हैं, जिसका अर्थ था मोक्ष। वहीं बुरे कर्म हमें कीड़े-मकोड़े के रूप में दुबारा जन्म लेने पर मजबूर करते हैं। पुराने खेल में साँपों की संख्या सीढ़ियों से अधिक होती थी। इससे यह दर्शाया गया था कि अच्छाई का रास्ता बुरे रास्ते से काफी कठिन है।


किसने दिया इस खेल को नया रूप?


यह खेल 1892 में इंग्लैण्ड पहुँच गया। इसे शायद इंग्लैण्ड के शासक अपने साथ ले गए थे और उन्होंने इसे स्नैक्स एण्ड लैडर्स' कहकर प्रचारित किया। 1943 में ये खेल सं.रा. अमेरिका पहुँचा और वहाँ इसे मिल्टन ब्रेडले (1836-1911) ने एक नया रूप देकर इसे थोड़ा आसान बनाया।


डेनमार्क के कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ क्रॉस-कल्चर एण्ड रीजनल स्टडीज़ के पीएच.डी. शोधकर्ता जेकब सचमिट मैडसन ने मोक्षपटम् खेल पर काफ़ी तथ्य जुटाए हैं। उनके शोध का विषय है। री-डिस्कवरिंग दी रिलीजियस ओरिजिन्स ऑफ स्नेक्स एण्ड लैडर्स। जेकब ने भारत के शहरों में घूम-घूमकर कपड़े और कागज़ पर निर्मित मोक्षपटम् और बोर्ड-गेम के 200 से अधिक नमूने एकत्र किए हैं। इनमें सर्वाधिक पुराना मोक्षपट 17वीं शती का है और इसकी सबसे ज्यादा प्रतियाँ गुजरात और राजस्थान में मिली हैं। इनमें वैष्णव, जैन, वेदांत और सूफी । सम्प्रदाय से सम्बन्धित साँप-सीढ़ियाँ सम्मिलित हैं। जेकब द्वारा किए गए शोध से सामने आया है कि संत ज्ञानेश्वर की कालावधि में साँप-सीढ़ी का खेल ‘मोक्षपटम्' के रूप में पहचाना जाता था। कहीं इसे 'ज्ञान-चौपड़ या ‘परमपद-सोपान' भी कहा गया है।


जेकब ने कोटा संग्रहालय में सुरक्षित दो मोक्षपटों का अध्ययन किया। इनमें 52 नम्बर के ब्लॉक का अर्थ होता है हिंसा। यहाँ साँप का अर्थ होता है शाप, जो आपको सीधा 35वें घर अर्थात् नरक में ले जाता है। इसी तरह 37वें घर का अर्थ होता है ज्ञान। यहाँ से वरदान की सीढ़ी मिलती है, जो सीधा 66वें घर आनन्दलोक में ले जाती है।


जेकब को गुजरात के एल.डी. म्यूजियम ऑफ इण्डोलॉजी में जैन-सम्प्रदाय की एक साँप-सीढ़ी मिली है। इसी तरह जयपुर में महाराजा सवाई मानसिंह म्यूजियम में वैष्णव सम्प्रदाय की साँप-सीढ़ी मिली है। ये दोनों 19वीं शती की हैं।


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