भारत में खेलों के प्रोत्साहन हेतु एक दृष्टि

विश्व का प्रथम खेल स्टेडियम आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व भारत के गुजरात राज्य में स्थित ‘धौलावीरा' नामक जगह पर बना। इस विशाल स्टेडियम में पाँच हजार दर्शकों के बैठने की सुनियोजित व्यवस्था थी। यह इस बात का प्रमाण है कि भारत में खेलों के प्रति रुचि का इतिहास बहुत पुराना है।


प्राचीन भारत में खेल और धार्मिक गतिविधियाँ निकट से जुड़ी थीं। अथर्ववेद का मंत्र कहता है- 'कर्तव्य मेरे दाहिने हाथ में है और जीत का फल मेरे बायें हाथ में है। यह उस ओलम्पिक शपथ के समान है। जो कहती है कि मेरे देश के सम्मान और खेल की महिमा के लिए।



शरीर माद्यंखलु धर्मसाधनम् कहकर भारतीय मनीषियों ने स्वास्थ्य को दैहिक ही नहीं, वरन् दैविक व भौतिक उत्थान की कुञ्जी भी माना है। इसी तरह के सन्दर्भ गरुडपुराण आदि अनेक ग्रंथों में भी मिलते हैं। गरुडपुराण में आया है


क्षयेत्सर्वदाऽऽत्मानमात्मा सर्वस्य भाजनम्।


रक्षणे यत्नमातिष्ठेज्जीवन् भद्राणि पश्यति॥


पुनर्ग्रामः पुनः क्षेत्रं पुनर्वित्तं पुनर्गहम्।


पुनः शुभाशुभं कर्म न शरीरं पुनः पुनः॥


तोपितं स्याद्धर्मार्थं धर्मो ज्ञानार्थमेव च।


ज्ञानं तु ध्यानयोगार्थमचिरात् प्रविमुच्यते॥


आत्मैव यदि नात्मानमहितेभ्यो निवारयेत् ।


कोऽन्यो हितकरस्तस्मादात्मानं तारयिष्यति॥


अर्थात्, शरीर को स्वस्थ रखें, क्योंकि यह सभी कर्मों का साधन है। शरीर के संरक्षण हेतु यत्न करना चाहिए, क्योंकि जीवन रहेगा तो शुभ-अशुभ अनेक कर्मों के अवसर प्राप्त होते रहेंगे। गाँव, जमीन, सम्पत्ति, मकान, आदि फिर जोड़ सकते हैं। इसी प्रकार शुभ- अशुभ कर्म भी बार-बार होते रहेंगे, लेकिन मनुष्य शरीर पुनः मिलना दुर्लभ है। धर्म-कर्म के लिए शरीर की रक्षा करो। ज्ञान के लिए धर्म-कर्म करो। ध्यान व योग के लिए ज्ञान प्राप्त करो। तुम स्वयं अपना हित नहीं करोगे तो दूसरा कौन करेगा?


इसीलिए मनुष्य को अपना हितैषी होना चाहिए। पुराणों में धर्मराज के नगर का वर्णन नासिकेत इस प्रकार करते हैं- ‘‘हे विप्रो ! मैंने उस नदी के तीर भाग में मन्दिरों को देखा, धर्मपालन करनेवाले मुनष्यों को मैंने वहाँ क्रीड़ा करते हुए देखा है। जहाँ शीतल मन्द सुगन्धित वायु उनकी सेवा करती है तथा दिव्य रूपवती स्त्रियाँ श्रेष्ठ पुरुषों के साथ खेल के मैदानों में खेलती हैं। ऐसी सुन्दर स्त्रियाँ पतियों के साथ उस पुष्पोदक नदी के तटभाग में आनन्द से रहती हैं।''


आगे और----