खोते बचपन को सम्भालता गुरुकुलम्

वीडियो गेम्स, इलेक्ट्रॉनिक गेम्स, मोबाइल गेम्स, टैबलेट, लैपटॉप, चायनीज़ खिलौने, मशीनगन-जैसे यान्त्रिक खेल आज बड़ी शान से ‘गेम्स जोन' में बस गई है। गिल्ली-डण्डा, कबड्डी, हुतूतू, कपड़े से बना दुल्हा-दुल्हन, काँच की बोतलें, पुराने टुकड़े, पेंसिल, ये सब कहाँ गये? कैसा बचपन का ‘कुबेर-भण्डार' था। रोटी, मकई रोटी, दूध, मक्खन-मिश्री, सरसों की सब्जी, लहसुन की चटनी, गुड़, तिल के लड्डू, हलवा, बेर, इमली, ये सब कौन खा गया? पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, मंचूरियन, हॉटडॉग, सैण्डविज, डोसा, इडली, गोलगप्पे की आज बहार आई है। बचपन आज रोता है। बाहर से उजाला , मगर भीतर से अँधेरा है। तब याद आती है वह ग़ज़ल- ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो,


ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो, चाहो तो छीन लो, मुझसे मेरी जवानी,


मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी,


घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना, वो ख्वाबें, वो खिलौनों की जागीर अपनी,


बड़ी खूबसूरत थी, बचपन की जिन्दगानी।



साबरमती, अहमदाबाद-स्थित हेमचन्द्राचार्य संस्कृत पाठशाला (गुरुकुलम्) ने खोते बचपन को बचाने के लिए दो सौ से ज्यादा बिसरी हुई, बिछड़ी हुई खेलों को गोद लिया है। हर दिन सुबह-शाम गुरुकुलम् के छात्र इस भव्य-प्राचीन खेलों की मस्ती लूटते हैं। क्या आपने ऐसा नजारा देखा है?


साबरमती गुरुकुलम् का देशी-बिसरी हुई खेलों का कुबेरी वैभव


1. दौड़


2. दो हाथ बंधन दौड़


3. दो हाथ गरदन दौड़


4. दो हाथ पाँव पकड़कर दौड़ना


5. लंगड़ी दौड़


6. मेढ़क दौड़


7. लम्बी कूद ।


8. नींबू-चम्मच दौड़


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