प्रकृति की क्रीडास्थली केरल

मानव का प्रकृति-प्रेम शाश्वत है। युगों-युगों से प्रकृति मानव को युगों-युगों से प्रकृति मानव को लुभाती व रिझाती रही है। कर्मसंकुलता तथा तनावग्रस्तता से जब मानवमन ऊब जाता है, तब प्रकृति की शरण में जाकर उसे राहत एवं शान्ति मिलती है। नैसर्गिक सौन्दर्य को निहार उसका अंतस सुमन-सम खिल उठता है। विविधवर्गी एवं बहुरूपा प्रकृति उसे चकित व भावाभिभूत कर देती है। तन्मयता के ऐसे क्षणों में प्रकृति अनन्त का आभास कराती है। मानव की बहुत-सी वृत्तियाँ है, जो समय के साथ-साथ झड़ने लगती हैं, लेकिन प्रकृति को समीप से देखने की लालसा कभी कम नहीं होती। इसी के वशीभूत हो मैंने गत नवम्बर मास में सपत्नीक केरल की यात्रा की।


केरल भारत के सर्वाधिक सुंदर प्रदेशों में गिना जाता है। यह भारत के दक्षिणी- पश्चिमी छोर पर मालाबार कोस्ट पर बसा है। इसे ‘परमात्मा की अपनी स्थली' कहा जाता है। गॉड्स ओन कंट्री! नेशनल जियोग्राफिकल ट्रेवलर' पत्रिका के अनुसार केरल विश्व के दस अतिमनोरम प्राकृतिक स्थलों में समादृत है।



तीन-चार दशक पहले तक केरल भारत का अल्पज्ञात पर्यटन स्थल था। तब पर्यटकों को उत्तरी भारत के पर्वतीय स्थल ही भाते थे, लेकिन अब केरल अत्यंत लोकप्रिय पर्यटक-प्रदेश बन चुका है, जहाँ प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ लीला कर रही है। ‘बैक वाटर्स' (अप्रवाही जल) वहाँ की अपनी ही विशिष्टता है। झीलों की बहुलता के कारण उसे पूर्व का वेनिस' भी कहा जाता है।


कोच्चि, जिसे पहले कोचीन भी कहा जाता था, केरल के मध्य में स्थित है। यह 'केरल पर्यटन संकुल' का प्रारम्भिक बिंदु है। हम दोनों 22 नवम्बर, 2017 की शाम को विमान द्वारा दिल्ली से कोच्चि पहुँचे। हवाई अड्डे से कोच्चि शहर तक टैक्सी से पहुँचने में प्रायः एक घंटा लग गया। हमने सात दिन के लिए टैक्सी पहले से ही बुक करा ली थी। उस रात को कोच्चि में रहने के बाद सुबह हम मुन्नार के लिए चल पड़े। 1,700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह एक अत्यंत रमणीय पर्वतीय स्थल है। जो कोच्चि से 140 कि.मी. दूर है। यह केरल के इड्डुक्कि जिले में पड़ता है। यहाँ के चाय-बागान अत्यंत मोहक हैं। पर्वतों की ढलानें ऐसे लगती हैं, मानो उन पर हरे रंग की मृदुल मखमल बिछा दी गई हो। तलहटी पर पसरे चाय के बागानों पर दृष्टि टिकती है, तो हटने का नाम महीं लेती। हरे-भरे पर्वतों से लिपटे घुमावदार रास्ते भी कम रोमांचक नहीं। कई स्थलों पर टैक्सी रुकवाकर हम प्रकृति के रमणीक दृश्यों को निहारते रहे। मुन्नार तो मनभावन है ही, उसके रास्ते भी कम चित्ताकर्षक नहीं।


कोच्चि से मुन्नार जाते हुए चीपपटा एवं चलार के जलप्रपात मार्ग में पड़ते हैं। इन नयनाभिराम झरनों को करीब से देखते के लिए पर्यटक यहाँ अवश्य ठहरते हैं। हम भी यहाँ रुके। कुछ जिंदादिल जलधारा के नीचे नहा रहे थे। हँसते हुए आपस में मस्ती कर रहे थे। कुछ जूते उतारकर चट्टानों के बीच बहते पानी में पैर लटकाए बैठे थे। झरनों के पास जाने पर उनकी फुहारों से दिव्य स्पर्श-सुख की अनुभूति हुई। इन झरनों के पास सड़क पर जलपान व हस्तशिल्प के उत्पादों की दुकानों पर बड़ी रौनक थी। बच्चे आइसक्रीम का मजा ले रहे थे और बड़े चाय अथवा कॉफ़ी पीकर तरोताजा हो रहे थे। सभी पर्यटक पिकनिक के मूड में दिखाई दे रहे थे। इन जलप्रपातों की ऊँचाई ज्यादा नहीं है। इनसे कही ऊँचे व विराट् प्रपात मुन्नार के आसपास हैं, लेकिन सबसे पहले दिखाई देने के कारण इन झरनों का आकर्षण बढ़ गया था।


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