राष्ट्रीयता की महत्ता उजागर करनेवाली फ़िल्म ‘चक दे इण्डिया

दी-सिनेमा में खेल-विषयक फिल्मों में 'चक दे! इण्डिया' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यशराज फिल्म के बैनर तले 2007 ई. में निर्मित इस फ़िल्म का केन्द्रीय विषय ‘हॉकी' खेल है। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। कई दशक तक इस खेल में भारत का वर्चस्व स्थापित रहा। कालान्तर में इसमें गिरावट आयी। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द, रूप सिंह, के.डी. सिंह ठाकुर, अजीतपाल सिंह-जैसे खिलाड़ियों पर गर्व करनेवाले लोग इस खेल के प्रति उदासीन हो गए। फिल्म की कहानी दमदार है। भारत का श्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी कबीर खान अति उत्साह में पाकिस्तान के विरुद्ध पेनाल्टी-स्ट्रोक को गोल में बदलने में विफल रहता है। भारत मैच हार जाता है।



खेल को खेल-भावना की तरह लेने के बदले मीडिया ने साम्प्रदायिक रंग देकर इस हार को षड्यंत्र बता दिया। दुष्परिणामस्वरूप कबीर खान के घर-मकान को उपद्रवियों ने उजाड़ दिया। इतना ही नहीं, उसे देश का गद्दार बना दिया गया। मीडिया की इस काली करतूत से सिद्ध होता है कि अफवाह में कितना बल है। एक कुशल और अच्छे खिलाड़ी का कॅरियर सिर्फ मुसलमान होने के चलते समाप्त हो गया। ऊपर से उसे 'गद्दार' का असहनीय बोझ लेकर प्रतिदिन अपमान सहना पड़ा। जीवट और साहस के धनी कबीर खान ने प्रतिबद्ध खिलाड़ी की तरह विपरीत और प्रतिकूल परिस्थिति का सामना किया। उसने अपने ऊपर लगे कलंक को हटाने के लिए समय की प्रतीक्षा की। लगभग सात वर्षों के बाद कबीर खान को एक सुअवसर मिला। उसे भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रशिक्षक (कोच) नियुक्त किया गया। यह कठिन कार्य था।


कबीर खान टीम की खिलाड़ियों से परिचय प्राप्त करता है। वह कठोर अनुशासन, अभ्यास और समर्पित भाव से टीम को विश्व चैम्पियन बनाकर अपने ऊपर लगे कलंक को समाप्त करना चाहता है। इसके विपरीत महिला खिलाड़ियों में टीम-भावना का अभाव था, अनुशासन की कमी थी, सीनियर खिलाड़ियों की दादागिरी थी, आपसी टकराव और प्रदेशवाद का बोलबाला था। कबीर खान के समक्ष अलग-अलग प्रांतीय खिलाड़ियों को भारतीय टीम के रूप में पिरोने और एकजुट करने की चुनौती थी। प्रशिक्षक कबीर खान ने खिलाड़ियों को अभ्यास शुरू कराया। सीनियर और मनमानी करनेवालों को यह पसन्द नहीं हुआ। विशेषकर सीनियर खिलाड़ी बिंदिया (शिल्पा शुक्ला) ने विरोध किया। प्रशिक्षक को हटाने के लिए खिलाड़ियों का हस्ताक्षरयुक्त आवेदन-पत्र अधिकारियों को दिया गया। प्रशिक्षक, खिलाड़ियों को व्यक्तिवाद से मुक्त कर टीमभावना से युक्त कराना चाहता था। राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत होकर ही अच्छे खेल से मैच जीता जा सकता है।


कबीर खान की विदाई वाली पार्टी में होटल में एक मनचला युवा पंजाबी खिलाड़ी बलवीर को छेड़ता है। लड़की उसे पीट देती है। हंगामे के बीच अन्य लड़के हमला करना चाहते हैं। सभी महिला खिलाड़ी मिलकर युवकों को पीट-पीटकर भगा देती हैं। यहाँ से खिलाड़ियों के बीच आपसी एकता का भाव मजबूत होता दीख पड़ता है। अधिकारियों के हस्तक्षेप को दूर करने के लिए महिला टीम का मुकाबला पुरुष टीम से करवाया जाता है। हॉकी एसोसिएशन के अधिकारियों की दृष्टि में महिलाएँ स्तरीय खेल खेलने में सक्षम नहीं हैं। उपेक्षित दृष्टि के कारण महिलाओं को पुरुषों की छींटाकशी भी झेलने पर मजबूर होना पड़ता है। एक क्रिकेट खिलाड़ी अपनी प्रेमिका, जो महिला टीम की एक सदस्य है, को अपने से हीन मानता है। विजयी टीम के सदस्य के रूप में वापस आने पर वह महिला अपने प्रेमी को खुलेआम अस्वीकार कर देती है। यह महिला के आत्मविश्वास का जबर्दस्त प्रमाण है।


 


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