एशिया एवं भारत की प्रथम नॆरोगेज रेलसेवा

वर्ष 2010 एवं 2011 पश्चिम रेलवे एवं भारतीय रेल के लिए एक गौरवपूर्ण वर्ष है। वर्ष 2010-11 में जहाँ पश्चिम रेलवे अर्थात् बीबी एवं सीआईआर के द्वारा चलाई गई प्रथम रेलगाड़ी के 150 वर्ष पूर्ण हुए, जिसके अन्तर्गत बड़ी लाइन की प्रथम रेलगाड़ी 9 जनवरी, 1861 को भरूच से बड़ौदा के बीच चलाई गई थी और इसी दिन प्रथम बड़ी लाइन के पहली रेलवे स्टेशन बड़ौदा रेलवे स्टेशन का उद्घाटन भी हुआ था। इसके अन्तर्गत 9 जनवरी, 2011 को 150 गौरवपूर्ण वर्ष पूर्ण हो गये। उसी वर्ष पश्चिम रेल ने भी अपनी स्थापना का 60 वर्ष पूर्ण किया। इन ऐतिहासिक घटनाओं में प्रथम बड़ी लाइन की रेलगाड़ी चलाने में तथा मियागाम और डभोई के बीच चलाई गई प्रथम नैरोगेज रेल सेवा की शुरूआत कराने का प्रमुख श्रेय बड़ौदा के गायकवाड़-राजघराने को जाता है। बड़ौदा के महाराजा बीबी एवं सीआईआर को काफ़ी सस्ते दामों में जमीन देने, आर्थिक सहयोग एवं निर्माण सहयोग देने में अग्रणी थे, जिसके कारण ये रेल-लाइने सफलतापूर्वक बन सकीं तथा उन्होंने अपनी रियासत के अनेक शहरों को नैरोगेज रेल लाइन से जोड़ते हुए इन सभी शहरों को बीबी एवं सीआईआर की बड़ी लाइन से सम्पर्क स्थापित कराया, जिसके कारण बड़ौदा रियासत के दूर-दराज के नगर भी मेन रेलवे लाइन से जुड़ गये। रेल- वे तथा अपनी प्रजा के प्रति गायकवाड़ महाराजाओं के इसी लगाव ने आज पश्चिम रेलवे को काफ़ी ऊँचाई तक ले जाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।



। बड़ौदा रियासत रेलवे का इतिहास


बड़ौदा के शासक सर खाण्डेराव गायकवाड़ (1828-1870) ने सर्वप्रथम अपने राज्य के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र डभोई की बीबी एवं सीआईआर के मेन लाइन के रेलवे स्टेशन मियागाम से जोड़ने के लिए हल्की रेलवे लाइन के रूप में नैरोगेज रेल लाइन बनाने का निर्णय वर्ष 1860 में लिया, जिसके फलस्वरूप 20 मील लम्बी रेलवे लाइन डभोई से बनाने का कार्य शुरू हुआ। इस प्रकार की हल्की रेल लाइन बनाने के लिए काफी समर्थन मिला।


पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में सर्वप्रथम ऐसी घटना थी, जिसमें किसी स्थानीय शासक ने अपनी रेलवे लाइन बनाने का निर्णय लिया था। इसका पूरा श्रेय खाण्डेराव गायकवाड़ को जाता है, जिन्होंने डभोई से मियागाम तक 2 फुट 6 इंच चौड़ाई वाली नैरोगेज लाइन वर्ष 1862 में बनवायी। इसकी शुरूआत ट्राम-वे के रूप में की गई थीइससे भारत के अन्य राज्यों में भी इसी तरह की रेल-लाइन बनाने को प्रोत्साहन मिला। बड़ौदा रियासत द्वारा अपनी रेलवे को प्रशासनिक यूनिट के रूप में चलाने के लिए पाँच मण्डलों- पहला बड़ौदा डिवीज़न में डभोई और पेटलाद लाइन, दूसरा काडी डिवीज़न, तीसरा अमरेली डिवीज़न, चौथा ओखा मण्डल तालुका तथा पाँचवाँ नवसारी मण्डल में बाँटा गया था, जिसमें नैरोगेज रेल सेवा बड़ौदा तथा नवसारी मण्डल में चलाई गई थी तथा बड़ी लाइन में आनन्द से पेटलाद, तारापुर से खम्भात, मीटरगेज-लाइन में काडी डिवीजन में महेसाना ग्रुप ऑफ़ लाइन्स, अमरेली डिवीज़न में खिजडिया-धारीविसावद लाइन, ओखा मण्डल तालुका में द्वारका-ओखा लाइन, नैरोगेज़ में बड़ौदा मण्डल का डभोई एवं पेटलाद तथा नवसारी मण्डल में कोसाम्बा-उपरपाड़ा एवं बिलीमोरा से वैधाई नैरोगेज रेल लाइन शामिल थी। इन सभी रेललाइनों का स्वामित्व बड़ौदा रियासत का था तथा इनमें स्थानीय स्टेट का भी योगदान था। इन सभी की प्रशासनिक देखभाल सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा की जाती थी तथा 30.9.1921 तक इनके प्रबन्धन का कार्य बीबी एवं सीआईआर द्वारा किया जाता था। इसके बाद इसे बड़ौदा स्टेट ने अपने अधीन ले लिया। 1 अगस्त, 1949 को इसे सरकार ने बीबी एवं सीआईआर में शामिल कर लिया तथा 5 नवम्बर, 1951 को इसे पश्चिम रेलवे का गठन होने पर पश्चिम रेलवे में मिला लिया गया।


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