हस्तमुद्राओं द्वारा चिकित्सा

ईश्वर ने मानव शरीर को बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से रचा है। इस शरीर की रचना पाँच तत्त्वोंआकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथिवी से मिलकर हुई है। मनुष्य के हाथ की पाँच अंगुलियों में बहुत गहरा विज्ञान समहित है। अनेक विद्वानों, ज्योतिषियों, चिकित्सकों ने अपने-अपने ढंग से खोज करके तथ्य प्रस्तुत किए है। इन सभी तथ्यों की अपनी महत्ता है।


प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार मनुष्य की चारों उंगलियों एवं अंगूठे भी पाँच तत्त्वों में बँटे हैं: अंगूठा-अग्नि तत्त्व, तर्जनी-वायु तत्त्व, मध्यमा-आकाश तत्त्व, अनामिका-पृथिवी तत्त्व तथा कनिष्ठा जल तत्त्व वाली उंगली होती है।



ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अंगूठा-शुक्र, तर्जनी-बृहस्पति, मध्यमाशनि, अनामिका-मंगल तथा कनिष्ठा उंगली के नीचे बुध के क्षेत्र होते हैं, तथा इसमें स्थित विभिन्न प्रकार की रेखाएँ व चित्र जीवन के अनेक रहस्यों को उजागार करते हैं।


कर्मकाण्डानुसार भी हथेली के अनके स्थानों की महत्ता का वर्णन इस प्रकार किया है


कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।


करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥


अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और हाथ के मूल भाग में विष्णु जी निवास करते हैं, अतः प्रातःकाल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।


एक्यूप्रेशर चिकित्सा अनुसार : चारों उंगलियों के अग्रभागों में साइनस के केन्द्र-बिन्दु, अंगूठे के अग्रभाग में सिरदर्द, तथा प्रथम पोर के नीचे चिन्ता, थोड़ा नीचे उदासीनता ठीक करने के केन्द्रबिन्दु तथा हथेली में सभी मुख्य अंगों की विकृति को दूर करने के केन्द्र-बिन्दु होते हैं।


हस्तमुद्राओं का महत्त्व


हाथ की उंगलियों तथा अंगूठा द्वारा मुद्राएँ बनाकर हम कई बीमारियों का उपचार कर सकते हैं। ये महत्त्वपूर्ण मुद्राएँ शारीरिक, मानसिक (मन, बुद्धि, भावात्मक सन्तुलन, शक्ति, प्रतिभा) तथा आध्यात्मिक (शान्ति, एकता, ध्यान धारणा, समाधि, आदि) स्तरों में परिवर्तन तथा सन्तुलन में बहुत लाभकारी एवं सहयोगी होती हैं। इनसे शरीर की सभी नलिकाविहीन ग्रंथियों, धमनियों, कोशिकाओं तथा ज्ञानेन्द्रियों में सक्रियता एवं समन्वय आता है। इन मुद्राओं से तीव्र व जीर्ण रोगों को कुछ दिन लगातार प्रयास करने करके कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। इन मुद्राओं को लगाने से शरीर में कोई नुकसान एवं दुष्प्रभाव का डर नहीं है।


वैसे तो ये मुद्राएँ 24 प्रकार की होती हैं। इन मुद्राओं का अपना महत्त्व है। दिन-रात में 24 घंटे की चौघड़िया होती है, विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, जैन-मत में 24 तीर्थंकर बताए गए हैं तथा गायत्री-मन्त्र भी 24 अक्षरों से युक्त है। तो आइये, हाथ की कुछ महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक मुद्राओं के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।


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