जनता-जनार्दन का विश्वास बने भारतीय टेल

उपाध्यक्ष महोदय ! इस रेल बजट की जो अनुपूरक मांगें हैं, मैं उस पर कुछ विचार व्यक्त करने के लिए सदन में खड़ा हुआ हूँ। मैं माननीय त्रिवेदी जी से प्रार्थना करूंगा कि वे भारत के छः लाख गाँवों में बसनेवाले जो 85 प्रतिशत लोग हैं, गाँव के गरीब, मजदुर, किसान हैं, जो हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा रेल में सफ़र करते हैं, सबसे ज्यादा कष्ट उठाते हैं, उनकी दशा-दिशा और उनकी सुविधाओं पर प्राथमिक तौर पर अवश्य विचार करेंगे।


महोदय, मैं खोजने लगा कि रेल के बारे में कहाँ से शुरू करूं। वर्ष 1939 में मेरा जन्म हुआ था। वर्ष 1939 में जब अंग्रेजी राज था, तब भारतवर्ष के रेल में अठारह हजार कुल डिब्बे थे और उसमें यात्रा करनेवाले यात्रियों की संख्या कुल मिलाकर सालभर में 60 करोड़ के आसपास होती थी। आज की तारीख में आपके पास कितने डिब्बे हैं और साल में कितने यात्री सफ़र करते हैं और एक डिब्बे पर औसतन एक साल में कितने यात्री आते हैं, इसी से अंदाजा लग जाएगा कि भारतीय रेल कीक्या व्यवस्था है, क्या दुर्व्यवस्था है।



दूसरी बात, मैं यह कहना चाहूँगा कि जब हमारा देश गुलाम था, उस समय फर्स्ट क्लास, सेकण्ड क्लास, इंटर क्लास और थर्ड क्लास- ये चार तरह के डिब्बे होते थे। एक नंबर में सबसे संपन्न वर्ग के लोग होते थे, दूसरे में अपर मीडिल क्लास के होते थे, तीसरे में मिडिल क्लास के लोग होते थे और चौथे में समाज का लोअर आर्थिक क्लास होता था। इसलिए वे चार श्रेणी बनाए गए। देश आजाद हुआ तो भारत सरकार को धन्यवाद देना चाहिए कि आजाद भारत में रेल में उन चार श्रेणियों को समाप्त करके केवल दो श्रेणी रखी गयी- प्रथम श्रेणी और द्वितीय श्रेणी। तीसरे क्लास के डिब्बे पर जो तीन लकीरें पड़ी हुई थीं, उसमें से एक लकीर को हटा दिया गया। केवल एक लकीर हटाकर तीसरे क्लास को सेकण्ड क्लास बना दिया गया और दो क्लास रखे गए- प्रथम श्रेणी और द्वितीय श्रेणी। इसलिए कि भारत में उस समय सोचा गया कि दो क्लास ही रखा जाए, समाज को जाति और वर्ग के आधार पर नहीं, समाज को केवल आर्थिक आधार पर बांटा जाए- संपन्न और निम्न वर्ग। यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन धीरे-धीरे जब रेल चलने लगी तो उस रेल में फर्स्ट क्लास के साथसाथ एसी टू टियर आकर जुड़ गया। माननीय सदस्यों को यह जानकारी होनी चाहिए कि जब गाड़ी में एसी टू टियर लगा था तो एम.पी. को एसी टू टियर में चढ़ने की सुविधा नहीं थी। वे साधारण फर्स्ट क्लास में चढ़ सकते थे, एसी टू टियर में नहीं चढ़ सकते थे। लेकिन, बाद में चलकर यह सुविधा प्राप्त हुई। फिर एसी टू टियर के बाद एसी फर्स्ट आ गया, एसी श्री टियर आ गया। जेनरल फर्स्ट क्लास अभी भी कुछ गाड़ियों में चलते हैं और उसके साथ-साथ स्लीपर क्लास आ गया। स्लीपर के बाद एक क्लास और आया जिसका नाम है ठसाठस क्लास। उस ठसाठस क्लास की यात्रा हम लोग नहीं कर पाते हैं। मंत्री जी, मैं आपसे कहना चाहता हूं कि इंसान सब बराबर हैं, परमात्मा ने हर इंसान को बराबर बनाया है, चाहे उसने भले ही किसी जाति या धर्म में जन्म लिया हो। चाहे वह बिरला सेठ या किसी मजदूर के घर में जन्म ले, लेकिन प्रकृति ने हर इंसान को प्राकृतिक जरूरतें बराबर दी है। एसी फर्स्ट क्लास में बीस लोग यात्रा करें और वहाँ चार शौचालय हैं। एसी टू टियर में 46 लोग यात्रा करें, वहाँ भी चार शौचालय हैं। एसी स्लीपर में 96 लोग यात्रा करें, वहाँ भी चार ही शौचालय हैं। ठसमठस क्लास में असंख्य यात्रा करते हैं, वहाँ भी चार ही शौचालय होते हैं। जहाँ बीस व्यक्ति यात्रा करें, वहाँ भी चार शौचालय हैं, 46 व्यक्तियों के लिए भी चार शौचालय हैं, 96 लोगों के लिए भी चार ही शौचालय हैं और ठसमठस क्लास में जो यात्रा कर रहा है, उसके लिए भी चार ही शौचालय हैं। क्या यह रेलगाड़ी इंसानों के लिए है या शैतान के लिए है? एसी फर्स्ट में भी वही इंसान चलता है, जिसके दो हाथ- पैर हैं, वहीं नाक और कान है, उसे भी शौचालय की उतनी ही सुविधा चाहिए, जितनी उनको चाहिए। लेकिन हमने ऐसा सोचा है कि एसी प्रथम में जो चलते हैं, वे भारत के इंसान हैं और जो ठसाठस क्लास एवं स्लीपर में चलते हैं, शायद आज की रेल ने उनको इंसान का दर्जा भी नहीं दिया। ये देंगे भी कैसे!


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