कैसी होगी भविष्य की रेलगाड़ी

रेलगाड़ी से आना-जाना सस्ता तथा बहुत ही आरामदायक होता है। सड़क से सफ़र करना भी बहुत प्रचलित है, परंतु सड़क के टूटने-फूटने तथा बाढ़ या भूस्खलन के समय क्षतिग्रस्त होने से बहुत परेशानी पैदा होती है। सड़क पर जाम तथा क्रॉसिंग होने के कारण तेज गति से नहीं चला जा सकता। बस या कार से लंबा सफ़र करना, ऊबाऊ, घुटनभरा तथा एक्सीडेंट की संभावनावाला और महंगा होता है। दूसरी ओर रेल का सिस्टम इस प्रकार बना होता है कि ट्रैक की खराबी से गाड़ी कभी-कभार ही रुकती है, इसके सफ़र में झटके नहीं लगते और लंबा सफर भी आराम से पूरा हो जाता है, डिब्बे के अंदर घुटन नहीं होती तथा शौच की सुविधा भी होती है। रेल-यात्रा में जाम या क्रॉसिंग की ज्यादा समस्या नहीं रहती। इसका किराया सस्ता बैठता है तथा एक्सीडेंट होने की संभावनाएँ कम रहती हैं। ज्यादातर बसों में लेटकर यात्रा नहीं की जा सकती, परन्तु रेलगाड़ी में यह सम्भव हैं।


यदि स्पीड की बात करें, तो सड़क की तुलना में रेल से दुगनीतिगुनी स्पीड में यात्रा की जा सकती है। फिर भी पांच सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा में अच्छी-से-अच्छी ट्रेन से भी घंटों का समय खराब होता है। भागमभाग की आधुनिक जीवनशैली में समय बहुत कम पड़ता जा रहा है। इसलिए लम्बी यात्राओं को हवाई जहाज से करने का प्रचलन बढ़ रहा है। परन्तु सब जगह उपलब्ध न होने तथा महंगी होने के कारण हवाई जहाज से यात्रा करना आम आदमी की पहुँच से बाहर है। इन परिस्थितियों में इंजीनियर तथा वैज्ञानिक रेलगाड़ी को ही सुरक्षित तरीके से अधिक तेज चलाने के नये-नये तरीके खोजने में लगे हैं।



वर्तमान में दुनिया की लगभग 99 प्रतिशत रेलगाड़ियाँ पटरी के ऊपर टिककर चलती-दौड़ती हैं। इंजन की शक्ति बढ़ाकर इनको तेज तो दौड़ाया जा सकता है, परन्तु इस दशा में एक तो ये रेलगाड़ी, पटरी से उतर जाती है, दूसरे अधिक गति से दौड़ाने पर वायु का प्रतिरोध तथा घर्षण बहुत बढ़ जाता है; और तीसरे रेल तथा पटरी में टूट-फूट बहुत बढ़ जाती है। एक ही ट्रैक पर दोनों दिशाओं में गाड़ी चलाने के कारण रेलगाड़ी को पर्याप्त गति नहीं मिल पाती और कभी-कभी गाड़ियाँ आपस में टकरा भी जाती हैं। इन सभी कारणों से पटरियों पर टिककर चलनेवाली साधारण रेलगाड़ियों को 250 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की गति पर चलाना व्यावहारिक रूप से अत्यधिक कठिन तथा दुर्घटना को निमंत्रण देने जैसा हो जाता है।


विगत कुछ दशकों से इंजीनियर उपर्युक्त कमियों को दूर करने में लगे हैं। उनका मुख्य लक्ष्य रेलगाड़ी को पटरियों से कुछ ऊपर उठाकर चलाना है। ऐसा हो जाने पर, उपर्युक्त में से अनेक कमियाँ दूर होते हुए गति आशातीत रूप से बढ़ जाती है। इस दिशा में तीन नये प्रकार के रेल-सिस्टमों पर तेजी से अनुसंधान किए जा रहे हैं। इनको मैग्लेव, वैक्ट्रेन तथा हाईपरलूप के नाम से जाना जा रहा है। इन तीनों में मैग्लेव को जर्मनी, चीन और जापान में सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है तथा वैक्ट्रेन और हाइपरलूप अभी अनुसंधान एवं विकास के दौर में हैं। कुछ सालों में इनके भी चल जाने की प्रबल सम्भावनाएँ बन रहीं हैं। इन सभी को प्रायः इनके मार्ग में आनेवाली सड़कों तथा अन्य रेल-लाइनों के ऊपर से निकाला जाता है अन्यथा की स्थिति में नीचे से, ताकि क्रॉसिंग पर इन्हें रोकना न पड़े।


इस प्रकार की ट्रेन दौड़ते समय पटरी से 1 से.मी. से 10 से.मी. तक ऊपर उठी रहती है और हवा में तैरती हुई सी चलती है। ट्रेन को ऊपर उठाने का कार्य शक्तिशाली चुंबकों द्वारा किया जाता है। पटरी से कुछ ऊपर उठी हुई गाड़ी को आगे बढ़ाने तथा दौड़ने का कार्य भी इन्हीं चुम्बकों की चुंबकीय शक्ति के द्वारा किया जाता है। यह क्रिया/सिद्धान्त मैग्नेटिक लेविएसन कहलाता है। ज्यादातर लोग जानते हैं कि चुंबक में दो सिरे/ध्रुव होते हैं। एक को नॉर्थ पोल और दूसरे को साउथ पोल कहते हैं। यदि दो चुंबकों के समान ध्रुवों को नज़दीक लाया जाए, तो वे एक-दूसरे को दूर धकेलते हैं और विपरीत/अलग-अलग ध्रुवों को नजदीक लाया जाए तो वे एकदूसरे को अपनी-अपनी ओर खींचते हुए आपस में चिपकने की कोशिश करते हैं। इन्हीं गुणों का प्रयोग मैग्लेव में किया जाता है।


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