सवारी गाड़ी से पहले चली थी मालगाडी...

वस्तुतः वर्ष 1837-38 में उत्तर-पश्चिमी प्रांत (अब उत्तरप्रदेश) में भयानक सूखा पड़ा था। तब ईस्ट इण्डिया कम्पनी को राहत-कार्यों पर करीब एक करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। ऐसे में तत्कालीन सरकार ने गंगा से नहर निकालने का निर्णय लिया और इसकी जिम्मेदारी कर्नल कटले को सौंपी। रिपोर्ट के अनुसार कटले के सामने रुड़की के पास बहनेवाली सोलानी नदी चुनौती बन गयी।


समस्या यह थी कि नहर को नदी के बीच से कैसे लाया जाए। इसका उन्होंने नायाब हुल तलाशा। तय किया गया कि नदी के ऊपर पुल (एक्वाडक्ट यानी जलसेतु) बना नहर को गुजारा जाए। पुल-निर्माण के लिए नदी में खंभे बनाए जाने थे और इसके लिए खुदाई करनी थी। तय किया गया कि भारी मात्रा में निकलनेवाले मलबे को कलियर के पास डाला जाए। समस्या यह थी घोड़े और खच्चरों से इस पर भारी लागत आने के साथ ही समय भी ज्यादा लगना था। कटले ने इसके लिए रेलट्रैक बनवाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने लन्दन से उपकरण मंगवाए और वहीं के विशेषज्ञों से रुड़की में ही इंजन और चार वैगन तैयार करायी। इंजन का नामकरण उत्तर-पश्चिमी प्रांत के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जेम्स थॉमसन के नाम पर किया गया।



हालांकि बाद में इसको स्वीडन की प्रसिद्ध गायिका जेनी लिंड के नाम पर रखा गया। भाप से चलनेवाले इस इंजन की सहायता से दो वैगनों में एक बार में 180 से 200 टन मिट्टी ढोई गयी। इंजन की रफ्तार थी 6.4 किलोमीटर प्रति घंटा और पूरे एक साल तक यानी दिसंबर 1852 तक यह पटरियों पर दौड़ता रहा। दो साल बाद 1854 में गंगनहर का निर्माण पूरा हो गया। नहर को बनने में 12 साल लगे। 


स्टेशन में है जेनी लिड इंजन का मॉडल


भारतीय रेल के 150 वर्ष पूरे होने पर वर्ष 2003 में जेनी लिंड इंजन का मॉडल रुड़की रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया गया। अमृतसर-स्थित रेल-कारखाने में तैयार इस मॉडल से कुछ वर्ष पहले तक प्रत्येक शनिवार और रविवार शाम चार से छह बजे तक छुक-छुक आवाज़ भी सुनी जा सकती थी। लेकिन रखरखाव के अभाव में अब यह शांत खड़ा रहता है।


देश की पहली सवारी गाड़ी बम्बई से ठाणे के मध्य चली


अप्रैल के महीने में बम्बई का मौसम काफी गर्म और उमसभरा होता है, लेकिन 16 अप्रैल 1853 की इस गर्मी को भूलकर बोरीबन्दर के पास जमा लोग एक अभूतपूर्व घटना के साक्षी बनाने को उत्सुक थे।


एक अस्थायी ढाँचा खड़ा कर रेल का स्टेशन बनाया गया, जहाँ से हिंदुस्तान में एक नये युग (रेल-युग) की शुरूआत होनेवाली थी। आयोजन की महत्ता को देखते हुए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा कर दी गई थी। बोरीबंदर स्टेशन की जगह बाद में बॉम्बे विक्टोरिया टर्मिनस नाम से भव्य स्टेशन बना, यह अब एक विश्व-धरोहर इमारत है, इसे अब मुम्बई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कहते हैं।


आगे और----