उपेक्षा की दुनिया में गुम तिरहुत रेलवे

सन् 1860 में महाराजा महेश्वर सिंह के देहावसान के बाद लक्ष्मीश्वर सिंह के नाबालिग होने के कारण दरभंगा कोर्ट ऑफ़ वार्ड्स के अधीन चला गया था और यहाँ ब्रिटिश शासन की ओर से मुजफ्फरपुर के डिप्टी कलेक्टर मिस्टर सी.पी. कैस्पर्ज के निर्देशन में मिस्टर जेम्स फरलाँग मैनेजर मुकर्रर हुए और 1879 ई. में लक्ष्मीश्वर सिंह के दरभंगा के महाराजा बनने तक दरभंगा में अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियंत्रण बना रहा।


कोर्ट ऑफ वास की अवधि में तिरहुत के क्षेत्र में दो बार भयंकर अकाल पड़ा था। पहला 1865-1866 और दूसरा 1874, पहले अकाल के कारण जहाँ एक ओर हज़ारों आदमी भूख से मर गये तो दूसरी ओर सैकड़ों ने धर्म बदल लिया। कई हिंदू मुसलमान हो गये और कई भूख के मारे ईसाई हो गये। दूसरे अकाल के समय लार्ड नार्थब्रुक गवर्नर जनरल थे तो सर रिचर्ड टेम्पल लेफ्टिनेंट गवर्नर। अकाल का प्रबन्ध दिसम्बर, 1873 में आरम्भ हुआ। दरभंगा सबडिवीजन में केन्द्र-स्थल दरभंगा था और इसके अधिकारी मिस्टर ए.बी. मैक्डोनाल्ड ज्वाइंट मजिस्ट्रेट थे, बारह सर्किलें दरभंगा के अधीन अकाल के व्यवस्था के लिए कायम हुई थीं।



इसी अकाल में एक कड़ी रेलवे, सड़क की बहुत जल्दी, एक महीना में स्थान वाजिदपुर, याने गंगा नदी के किनारे से, दरभंगा में लक्ष्मण सागर तक पहुँचा दी गयी। जल्दी के चलते ऊँची-नीची जमीन का ध्यान किए बिना सड़क की जमीन पर तख़्ती पर रेलें बिछाकर गाड़ी चला दी गयी। एक दिन में कई-कई बार वाजिदपुर से उस गाड़ी पर गल्ला आता था और दरभंगा के सर्किलों में भेजा जाता था। दरभंगा में अकाल के प्रबन्ध हेतु रेलगाड़ी पहली बार अप्रैल, 1874 में जारी हुई।


दिनांक 01 अप्रैल, 1874 को अकाल की सारी सर्किलें बन्द कर दी गयीं, इसी समय सरकार ने तिरहुत को दो भागों में विभाजित किया। पहले भाग का नाम मुजफ्फरपुर रखा तथा दूसरे भाग का नाम जिला दरभंगा हुआ। 01 दिसम्बर, 1874 को वायसराय सर लॉर्ड नार्थब्रुक अकाल पीड़ित रिआया तथा देश की हालात का निरीक्षण करने के लिए पहले-पहल दरभंगा में कन्हैया मिश्र के पोखरे पर पधारे, तीसरे दिन कोर्ट ऑफ वार्ड्स के स्कूल तथा अस्तबल का निरीक्षण कर लड़कों को पचास रुपये का ईनाम देकर रेलगाड़ी से कलकत्ता चले गए।


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