भारतीय ज्योतिष से उद्भूत है रमल ज्योतिष

आदिकाल से ही मनुष्य अपने शुभाशुभ भविष्यफल को जानने के लिए उत्कण्ठित रहा है। अपनी इस रुचि एवं दिलचस्पी का मार्ग उसे ज्योतिषविद्या में दिखाई देता है। शिक्षाकल्पोव्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिषमिति (मुण्डकोपनिषद्, 1.1.5)- इन षड्वेदांगों में यद्यपि ज्योतिष को अन्तिम स्थान प्रदान किया है, किन्तु निम्नलिखित श्लोक से ज्योतिष की महत्ता प्रतिपादित होती है।


यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।


द्वद्वेदाङ्गाशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्धनि स्थितम्॥


। अर्थात्, जिस प्रकार मयूर के मस्तक पर स्थित कलंगी, नाग के मस्तिष्क पर मणि सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त है, उसी प्रकार वेदांगों में ज्यातिष को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।



ज्योतिष वह ज्ञान है जो जीवन के समस्त पक्षों को उजागर करने का सामर्थ्य रखता है। ज्योतिषशास्त्र दिग्भ्रमित जीवनरूपी नाव को सही दिशा दिखाने में पूर्णतः सक्षम है। ज्योतिष की प्रचलित अनेक शाखा-प्रशाखाओं में रमल भी ज्योतिष का एक प्रकार है। भविष्य-कथन की विभिन्न पद्धतियों में से 'रमल' एक पुरातन पद्धति है। ‘रमल' प्रश्नों के उत्तर देने में और भविष्य-कथन करने में पूर्णरूपेण है। ‘रमल' शब्द अरबी भाषा से संबंधित है जिसका अर्थ है ‘गोपनीय बात अथवा वस्तु को प्रकट करना।' व्याकरण के अनुसार रमल उस विद्या का नाम है जिससे भूत, भविष्य एवं वर्तमान का ज्ञान हो सकता है। नाम से विदेशी प्रतीत होनेवाली इस विद्या का जन्म भारत देश में ही हुआ है। एक मतानुसार पार्वती के द्वारा भगवान् शिव से प्रश्न विद्या के ज्ञान के बारे में सवाल किए जाने पर भगवान् शिव के मस्तक पर स्थित चन्द्रमा से अमृत की चार बूंदें गिरी, जो क्रमशः अग्नि, वायु, जल और पृथिवी तत्त्व की प्रतीक थीं। इन्हीं बिन्दुओं पर आधारित रमल-ज्योतिष में सोलह शक्लों के रूपक बने जो इस विद्या के आधार-स्तम्भ हैं। भारत में जन्मी यह विद्या यहीं से अरब देशों में गई एवं वहाँ खूब प्रचलित हुई।


रमल (अरबी ज्योतिष) में रमल ज्योतिषाचार्य को प्रश्नकर्ता की जन्म कुण्डली की आवश्यकता नहीं होती हैऔर न ही प्रश्नकर्ता का नाम, माता-पिता का नाम, घड़ी, दिन, वार एवं समय की आवश्यकता होती है। प्रश्नकर्ता द्वारा अभीष्ट प्रश्न मन-वचन व श्रद्धाभाव से रमलाचार्य के पास लेकर जाया जाता है; क्योंकि ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है कि श्रद्धा एवं विश्वास का भाव प्रश्नकर्ता के मन में होना अतीव आवश्यक है।


रमल पासा


रमल (अरबी-ज्योतिष) शास्त्र में प्रश्नकर्ता की प्रत्येक समस्या का समाधान व मार्गदर्शन ‘पासे डालकर किया जाता है। इन पासों को अरबी-भाषा में ‘कुरा कहा जाता है। रमल-पद्धति में रमल कुण्डली बनाने की सर्वश्रेष्ठ विधि ‘पासा' द्वारा ही मानी गई है। यह पासा अष्टधातु का तथा 12 तोले से कम नहीं होना चाहिए। वह दिन जब सायन मेष की संक्रांति हो अर्थात् दिन व रात बराबर हों, उस दिन सोना, चाँदी, लोहा, तांबा, जस्ता, सीसा व पारा को एकसाथ गलाकर 8 पासे बनाए जाते हैं। पासों के मध्य में आर-पार छेदकर दो तारों में चार-चार पासों को इस प्रकार डाल देते हैं कि वे तार के चारों ओर आसानी से घूम सकें।


रमलाचार्य द्वारा प्रश्नकर्ता के हाथ पर पासों को रखकर किसी विशेष स्थान पर डलवाया जाता है और उनसे प्राप्त हुई शक्ल (आकृति) का रमल ज्योतिषीय गणित के अनुसार प्रसार अर्थात् ‘जायचा बनाया जाता है। उस जायचा के माध्यम से प्रश्नकर्ता के समस्त प्रश्नों का समाधान व मार्गदर्शन तत्काल ही प्राप्त होता रहता है। यह प्रक्रिया सदैव ही सूर्योदय के पश्चातू व सूर्यास्त के पूर्व की जाती है।


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