गागटोन दुर्ग के अद्भुत ज्योतिषी

विगत वर्षों में यूनेस्को के विश्व- धरोहर में सम्मिलित राजस्थान के झालावाड़ जिले का उत्तरी भारत का एकमात्र जलदुर्ग गागरोन अपनी अनेक रोमांचक कथाओं के लिए इतिहासप्रसिद्ध रहा है। इस दुर्ग के बारे में न केवल भारतीय इतिहासकारों ने, वरन् ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी प्रामाणिक रूप से रेखांकित कर उसका उल्लेख गजेटियर में किया है। पूरे देश में एकमात्र यह ऐसा दुर्ग है जो बगैर नींव के नुकीली चट्टानों पर विगत 1000 वर्षों से अडिग खड़ा है। मध्य काल में यह दुर्ग * भारत के समस्त दुर्गों के कण्ठहार का बिचला मोती (नगीना)' कहलाता था।



प्राचीन काल में इस दुर्ग क्षेत्र की हिंदू ज्योतिषीय मान्यता का उल्लेख बड़ी प्रामाणिकता के साथ मिलता है। इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया (राजस्थान), 1961 ई. एवं गागरोन मोनोग्राफ-सेन्सस ऑफ़ इण्डिया 1961 ई. के अध्ययन से सूचना मिलती है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र ‘गर्गारण्य' नाम से प्रसिद्ध था तथा यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण के पुरोहित महर्षि गर्गाचार्य का निवासस्थान था। यहाँ से ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया जाता था- The village (gagron) is beliered to be very ancient and it is said to have been called "Gargashtar' after Gargacharya the purohit of Shri Krishna who lived here. other, identify it as the Gargratpur of ancient writing from which the Hindu astronomer Garga calculated longitude.


गागरोन दुर्ग क्षेत्र में ज्योतिष ज्ञान की ऐसी सुदीर्घ परम्परा देश आजाद होने तक प्रचलित रही और वहाँ के महान् ज्योतिषी पंचांगों के माध्यम से देशभर में अपना ज्योतिषी ज्ञान प्रसारित करते रहे थे। 


उन्नीसवीं शती में गागरोन दुर्ग ज्योतिषशास्त्र का प्रसिद्ध केन्द्र था। यहाँ का शतवर्षीय पंचांग उस समय काशी और उज्जैन के पंचांगों के समानान्तर हुआ करता था। ऐसा भी कहा जाता है कि गागरोन जिस अक्षांश पर बना हुआ है, वह कोण ज्योतिष गणित के लिए भौगोलिक रूप से उपयोगी था और इसी पक्ष से यहाँ पंचांग बनाने की सुविधा प्राप्त होती रही। तब यह दुर्ग कोटा राज्य में था।


कोटा-महाराव उम्मेद सिंह (प्रथमतथा उनके प्रधानमंत्री झाला जालिम सिंह को शिकार का बहुत शौक था। एक बार दोनों शिकार के निमित्त कोटा से गागरोन दुर्ग के पास के जंगल में आये। उन्होंने दुर्ग के समक्ष अपना डेरा स्थापित किया। दोनों नित्य शाम को जंगल में घेरा डलवाते, परन्तु शेर घेरे में नहीं आने से चिन्तित थे। निकट के ग्राम लक्ष्मीपुरा के एक देवी मन्दिर में महाराव ने शिकारप्राप्ति हेतु मनौती मांगी तथा देवी के समक्ष मन्दिर के जीर्णोद्धार की गुहार लगायी। दूसरे दिवस सन्ध्या के समय जब दोनों शिकार हेतु जंगल में जाने लगे, तब जालिम सिंह की दृष्टि गागरोन के ज्योतिषी पर जा टिकी। वे नदी में स्नान व संध्या वंदन कर दुर्ग में लौट रहे थे। उन्होंने ज्योतिषी से कहा, “पण्डित जी सुना है गागरोन के ज्योतिषी बहुत प्रसिद्ध हैं। तब आज बताईये हमें शिकार में क्या मिलेगा?'' पण्डित जी ने तत्काल ही झाला को उत्तर दिया- ‘‘शेरशेरनी का जोड़ा।'' झाला ने पण्डित जी का जवाब सुनकर कहा- “जानते हो न पण्डित जी, आप किसके बात कर रहे हैं?'' पण्डित जी ने पुनः आत्मविश्वास और ज्योतिषविद्या के बल पर झाला से स्पष्ट कहा कि मैंने जो उत्तर दिया है, उसकी परीक्षा तो रात्रि में हो जायेगी।'' अपना उत्तर देकर पण्डितजी दुर्ग में चले गये और झाला आश्चर्यचकित हो चुपचाप उन्हें जाते हुए देखते रहे। और फिर उसी रात्रि को निकट के मशालपुरा के शिकार हांके में महाराव और झाला ने शेर- शेरनी का शिकार किया। महाराव ने फिर वहाँ देवी के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया, जिसमें आज भी उनका पाषाण पर शिलालेख उत्कीर्ण है।


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