गुरुकुल शिक्षा पद्धति भारत के पुनरुत्थान की सुगबुगाहट का आख्यान

खबर है कि आगामी अप्रैल महीने में महाकाल की नगरी उज्जैन में एक ऐसा अद्भुत कार्यक्रम सम्पन्न होने जा रहा है, जिससे देश-दुनिया के लोग पृथिवी के सर्वाधिक पुरातन-सनातन राष्ट्र भारतवर्ष को परम वैभव का अभीष्ट सिद्ध करने के निमित्त भारतीय पैरों पर पुनः खड़ा हो उठने का बौद्धिक उद्यम करते देख सकेंगे। भारत के पुनरुत्थान हेतु आयोजित होनेवाले उस तीन-दिवसीय बौद्धिक उद्यम की सुगबुगाहट सुनाई पड़ने लगी है, जो वास्तव में भारत की भवितव्यता के आकार लेने की आहट है। जी हाँ! वही भवितव्यता, जिसे श्रीअरविन्द व युग-ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य ने चेतना के सर्वोच्च स्तर पर जाकर अपनी-अपनी दिव्य-दृष्टि से काल के भावी प्रवाह का अवलोकन कर वर्षों पूर्व ही उद्घाटित कर रखा है कि 21वीं शती का प्रथम दशक बीतने के साथ ही भारतीय ज्ञान- विज्ञान का नवोन्मेष आरम्भ हो जाएगा और फिर आनेवाले दशकों में भारत अपनी समस्त सांस्कृतिक-आध्यात्मिक समग्रता के साथ सारी दुनिया पर छा जाएगा तथा सम्पूर्ण वसुधा का नेतृत्व करेगा। तो भारतीय ज्ञान- विज्ञान के उत्कर्ष-उन्नयन के जो मूल स्रोत विगत दो शताब्दियों से अंग्रेजों की षड्यंत्रकारी मैकाले शिक्षा-पद्धति की भीषण व्याप्ति और स्वातन्त्र्योत्तर भारत-सरकार की पश्चिमोन्मुख शिक्षा-नीति के कारण मृतप्राय होकर तथाकथित आधुनिकता के गर्द-गुबार में ओझल हो चुके हैं, उन ‘स्रोतों के पुनर्जीवन एवं देश की चालू शिक्षा-पद्धति के भारतीयकरण हेतु एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन उज्जैन की धरती पर होने जा रहा है। भारत सरकार के केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संरक्षण में होनेवाला वह आयोजन है- देश-दुनिया में अब तक बचे- खुचे अथवा नये खुले भारतीय गुरुकुलों का महासम्मेलन, जिसमें भारत की उस महान् प्राचीन शिक्षा-पद्धति के आधुनिकीकरण, वैधानिकीकरण व वैश्वीकरण के बाबत शासनिक सूत्र-समीकरण तैयार किये जाएँगे, जो पद्धति अंग्रेजों द्वारा अवैध करार दिए जाने के कारण निस्तेज होकर अप्रासंगिक हो चुकी थी। इस हेतु उस कार्यक्रम में लगभग 1,200 गुरुकुलों के संचालक, विद्यार्थी व उनके अभिभावक और गुरुकुलीय शिक्षा- पद्धति के चिन्तक-विचारक-विद्वन्मण्डली भाग लेनेवाली है। है न अद्भुत कार्यक्रम! अद्भुत ही नहीं, ऐतिहासिक भी है वह आयोजन; क्योंकि उससे भारत की नयी पीढ़ियों की दशा-दिशा तय करने के बावत शिक्षा की उस भारतीय रीति-नीति-पद्धति को शासनिक आकार दिए जाने का प्रारूप निर्धारित होगा, जिसकी अपेक्षा अगस्त, 1947 के बाद से ही देश के राष्ट्रवादी चिन्तकों व सांस्कृतिक संगठनों की ओर से की जाती रही है, किन्तु सरकार द्वारा इसकी उपेक्षा ही होती रही थी।



मालूम हो कि भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रहने के पश्चात् भारत की राष्ट्रीय चेतना को उभारने-झकझोरने की तपश्चर्या में प्रवृत्त हो ब्रह्म-सत्ता से साक्षात्कार कर लेने के कारण ‘महर्षि' कहे जानेवाले श्रीअरविन्द और ‘युग-ऋषि' कहे गए श्रीराम शर्मा आचार्य ने विभिन्न आध्यात्मिक प्रयोगों से यह प्रतिपादित किया हुआ है कि अन्न, मन, प्राण, विज्ञान, आनन्द, चित् व सत् नामक सात कोषों से निर्मित मानव-शरीर का मस्तिष्क, चेतना के विभिन्न आयामों से, जो हमारी भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे हैं, जुड़ सकता है। पश्चिम का विज्ञान तो आर्थिक लाभ के लिए सिर्फ भौतिक जगत् के उपयोग पर अत्यधिक जोर देता रहा है, जिसके कारण आध्यात्मिक जगत् की सम्भाव्यता जो मानव शरीर तथा मस्तिष्क से गहराई के साथ जुड़ी है, लगभग पूरी तरह से उपेक्षित रही। पश्चिमी भौतिक विकासवाद से मनुष्य ने प्रथम चार कोषों को चेतन करने में सफलता पा ली है, किन्तु अन्तिम तीन कोषों को वह किस प्रकार चेतन करेगा, इस पर पश्चिम का पदार्थविज्ञान मौन ही है। किन्तु भारत के योग-अध्यात्म विज्ञान से मनुष्य अपनी चेतना का श्रीकृष्ण के अधिमानसिक स्तर तक विकास करके सभी कोषों पर विजय प्राप्त कर सकता है। ऋषि-द्वय ने उपर्युक्त सातों कोषों के पूर्ण विकास को लक्ष्य कर वेदविहित ज्ञान के आलोक में पुरुषार्थचतुष्ट्य चतुष्पदी शिक्षा का वैज्ञानिक दर्शन प्रस्तुत कर बताया कि इस प्राचीन भारतीय शिक्षा-पद्धति से व्यक्ति अपनी चेतना के विकास की ‘सुपर माइण्ड' व 'सुपर मैन' अथवा ‘सुपरचेतन अवस्था प्राप्तकर न केवल तमाम भौतिक उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है, बल्कि दैवीय शक्तियों से भी ओत-प्रोत हो सकता है। इन दोनों ऋषियों ने चेतना के सर्वोच्च स्तर से देश-दुनिया की भवितव्यताओं को अपनी-अपनी दिव्य-दृष्टि द्वारा देख रामकृष्ण परमहंस के जन्मोपरान्त 175 साल की अवधि को युगसन्धि-काल बताते हुए उसके समाप्त होते ही परमात्म सत्ता की योजनानुसार भारत के सर्वांगीण पुनरुत्थान की बहुविध गतिविधियों के परिणाम आने और आगामी कुछ ही दशकों के पश्चात् सनातन-धर्माधारित भारतीय ज्ञान विज्ञान को वैश्विक विस्तार मिलने की घोषणा कर रखी है।


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